उज्जैन। राष्ट्रीय पुस्तक न्यास नई दिल्ली द्वारा मध्य प्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी, जिला प्रशासन एवं विक्रम विश्वविद्यालय के सहयोग से उज्जैन पुस्तक मेले का आयोजन किया जा रहा है जिसकी दूसरी शाम गुरु सिद्धेश्वर सेन कृत राजा हरिश्चंद्र माच का मंचन हुआ।
सत्यवादी राजा हरीश्चन्द्र 99 यज्ञ कर लेते हैं और 100 वें यज्ञ की ओर बढ़ते हैं। ऐसे में ऋषि विश्वामित्र को लगता है यदि यह यज्ञ संपन्न हो गया तो राजा हरीश्चन्द्र इन्द्र का आसन छीन लेंगे। इससे भयभीत होकर विश्वामित्र कुटिलतापूर्वक उनका राजपाट ले लेते हैं और हरीशचन्द्र को चाण्डाल के पास नौकरी करनी पड़ती है। पत्नी तारा और बेटे रोहित को भी ब्राह्मण को बेचना पड़ता है। रोहित की सांप के काटने से मृत्यु हो जाती है।
तब शमशान में रोहित को जलाने में कठिनाइयां आती हैं और पत्नी तारा पर भी हरीशचन्द्र को तलवार उठानी पड़ती है। इससे विगलित हो भगवान विष्णु प्रकट होते हैं और उन्हें उनका राजपाट और पुत्र के प्राण वापस करते हैं। माच के प्रारंभ में मालवा की करीब 300 साल पुरानी माच परंपरा का अनुसरण करते हुए पुस्तक मेले के पंडाल में खंब यात्रा निकाली गई जिसमें समस्त कलाकारों के साथ अटलबिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय भोपाल के कुलपति प्रो. खेमसिंह डहेरिया, विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा, आर पी तिवारी, प्रो. शैलेंद्र पाराशर डॉ. देवेंद्र जोशी, अंकुर मंच के हफीज खान आदि उपस्थित रहे। इस अवसर पर माच कलाकार जगदीश देवड़ा एवं टीकाराम भाटी का शॉल, श्रीफल भेंट कर सम्मान किया गया। अंकुर रंगमंच समिति के कलाकारों द्वारा बाबूलाल देवड़ा एवं हफीज खान के निर्देशन में माच प्रस्तुत किया गया। जिसमें बाबूलाल देवड़ा, सुधीर सांखला एवं विष्णु चंदेल के अभिनय को खूब सराहा गया। कार्यक्रम का संचालन पांखुरी जोशी ने किया।
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