मुंबई। भारतीय सिनेमा के इतिहास में शोमैन कहे जाने वाले राजकपूर की पारिवारिक पृष्ठभूमि भले ही फिल्मी रही हो, लेकिन उन्होंने अपनी जगह स्वयं के संघर्ष से हासिल की। दो राय नहीं कि राजकपूर (Raj Kapoor) (1924-1988) हिन्दी सिनेमा के महान अभिनेता, निर्माता एवं निर्देशक थे।
उन्नीसवीं सदी के चालीस और पचास के दशक में जब भारतीय सिनेमा आरंभिक दौर में था और देश अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हुआ था, जब आर्थिक और तकनीकी संसाधनों की कमी थी उस दौर में राजकपूर की श्वेत-श्याम फिल्मों में विषय चयन, सम्पादन, गीत-संगीत, संवाद, विचारधारात्मक परिपक्वता जैसे तत्व हमें आश्चर्यचकित करते हैं। भारतीय फिल्मों के इतिहास में उनकी अनेक फिल्में मील का पत्थर हैं। आज उनका शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा है लेकिन उनका क्लासिक काम हमेशा याद किया जाता रहेगा।
लंबे समय तक राज कपूर के सहायक रहे निर्देशक राहुल रवैल बताते हैं, “पापा जी (राज कपूर को सब इसी नाम से संबोधित करते थे) ने इस कहानी को आगे ले जाने की पूरी तैयारी की हुई थी। फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ चल जाती तो इसके सीक्वल की कास्टिंग वगैरह वह सब कर चुके थे, लेकिन जब ‘मेरा नाम जोकर’ ही नहीं चली और मामला आर्थिक रूप से इतना गंभीर हो गया कि सब कुछ बिकने तक की नौबत आ गई तो पापा जी ने ‘बॉबी’ बनाई।
राहुल रवैल बताते हैं कि यह फिल्म भी जब पापा जी ने अपनी टीम को सुनाई थी, तो लोगों ने उन्हें उस वक्त की हिट जोड़ी धर्मेंद्र और हेमा मालिनी को इसमें लेने की सलाह दी थी। शो मैन की जन्मशती पर राज कपूर की याद में शनिवार को मुंबई में खूब सारे कार्यक्रम हो रहे हैं। राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम ने राज कपूर की याद में खास कार्यक्रम की योजना बनाई है।
कलाकारों की संस्था सिन्टा ने अपने सदस्यों की मदद से राज कपूर की फिल्मों के संगीत पर एक शाम आयोजित की है। पूरा कपूर परिवार यहां शाम को अंधेरी के एक सिनेप्लेक्स में मौजूद रहेगा, जहां तीन अलग-अलग स्क्रीन्स पर राज कपूर की तीन कालजयी फिल्मों के शोज समानांतर चल रहे होंगे। इस खास कार्यक्रम में सिर्फ आमंत्रित लोगों को ही सिनेमाघर के भीतर पहुंचने की अनुमति रहेगी।
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