विवेक उपाध्याय, जबलपुर। हरियाणा में कांग्रेस की करारी शिकस्त के बाद अब मप्र के उप-चुनाव को लेकर नेता सक्रिय हो गये हैं। कांग्रेस के सर्वेसर्वा राहुल गांधी और कमलनाथ की लंबी मुलाकात के बाद जबलपुर सहित पूरे महाकोशल में चर्चाओं का दौर शुरु हो गया है। उम्मीद है कि मप्र के विधानसभा चुनाव के बाद से हाशिये में पड़े कमलनाथ को अब एक बार फिर से संगठन में बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है। जबलपुर में नाथ के समर्थकों की बांछें खिली हुई हैं,लेकिन फिलहाल वे अपनी खुशी जाहिर करने में कंजूसी बरत रहे हैं।
फिर पटवारी क्या करेंगे
लंबे अर्से से कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष की कुर्सी संभालने वाले जीतू पटवारी की भूमिका उप-चुनाव में क्या होगी, इसे लेकर पार्टी में ही पूर्वानुमानों का दौर चल पड़ा है। वरिष्ठ कांग्रेसी कह रहे हैं कि जीतू पटवारी इतने समय में भी अपनी कार्यकारिणी का गठन तक नहीं कर सके हैं,जिससे उनकी स्थिति साफ हो जाती है। कई बार कार्यकारिणी की लिस्ट दिल्ली जा चुकी है,लेकिन अब तक हरी झंडी नहीं मिल सकी है।
ऐसे समझिए जबलपुर की तस्वीर
जबलपुर में कांग्रेस की स्थिति एकदम स्पष्ट है कि बिना कमलनाथ की आज्ञा के जबलपुर के कांग्रेसी कोई काम नहीं करते। कमलनाथ के विधानसभा और लोकसभा में निष्क्रिय होने की स्थिति में कांग्रेस के क्या हाल हुये, ये किसी से छिपा नहीं है। जबलपुर और महाकोशल के प्रमुख जिले कमलनाथ के प्रभाव वाले ऐसे जिले हैं,जहां बिना नाथ के सब फीका है। कमलनाथ के फिर से एक्टिव होने की खबर से वे सारे चेहरे खिल उठे हैं,जो अब तक लग रहा था कि राजनीति से संन्यास ले लेंगे। बहुत मुम्किन है कि संगठन में प्रभावी कमलनाथ से राहुल गांधी इसलिए मिले हों ताकि मप्र के उप-चुनावों में कम से कम संगठन के स्तर पर बिखराव दिखाई न दे।
बढ़ जाएगा गुटीय असंतुलन
कांग्रेस के पार्टी पदाधिकारियों का दावा है कि कमलनाथ के सक्रिय हो जाने से न केवल जबलपुर,बल्कि पूरे महाकोशल में कांग्रेस साफतौर पर दो भागों में बंट जाएगी। हालाकि,सीनियर कांग्रेसी अभी भी दिल से पटवारी को प्रदेशाध्यक्ष मानने तैयार नहीं हैं इसलिए नाथ के आने से उनके दिल को तसल्ली मिलेगी। हालाकि, उनके लिए जरूर थोड़ी परेशानियां खड़ी होंगी, जो कमलनाथ के बहुत नजदीक नहीं हैं या उन्होंने किसी दूसरे गुट या नेता को अपना मान रखा है। पार्टी सूत्रों का दावा है कि कांग्रेस के आलाकमान को सारी बातों की खबर है,लेकिन चूंकि चुनाव में एकतरफा हार से बचने के लिए नाथ को मनाना जरूरी हो गया है वरना कांग्रेस की राजनैतिक जमीन और खिसकती जाएगी।
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