– डॉ. दिलीप अग्निहोत्री
तीर की तरह बयान भी कई बार गलत निशाने पर लग जाते हैं। राहुल गांधी के ब्रिटेन से लेकर अमेरिका तक में दिए गए बयानों का भी यही अंजाम हुआ। भारत का नाम लेकर उन्होंने नरेन्द्र मोदी पर निशाना लगाया। लेकिन उनके बयान पश्चिम बंगाल पर फिट हो गए। निशाने पर ममता बनर्जी आ गईं। राहुल गांधी ने विदेशों में आरोप लगाए थे कि भारत में लोकतंत्र को समाप्त किया जा रहा है। वह अपने बयान के समर्थन में कोई उचित प्रमाण नहीं दे सके थे। इसके साथ ही उन्होंने कहा था कि भारत में कुछ लोगों को निशाना बनाया जा रहा है। राहुल के ये बयान भारत पर तो लागू नहीं हुए, लेकिन पश्चिम बंगाल में पूरी तरह चरितार्थ हुए हैं। त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव इसका प्रमाण है। शांति पूर्ण और निष्पक्ष चुनाव कराने में प्रदेश सरकार पूरी तरह विफल रही। हिंसा और उपद्रव के माहौल में निष्पक्ष चुनाव सम्भव भी नहीं होते। इस चुनाव में बैलेट से चुनाव की वास्तविकता भी सामने आ गई है। विगत नौ वर्षों में जहां भी भाजपा विजयी हुई, वहां विपक्ष ने ईवीएम पर हमला बोला।
तब उनका कहना था कि ईवीएम में गड़बड़ी करके भाजपा ने चुनाव जीता है। चुनाव आयोग तक गुहार लगाई गई। चुनाव आयोग ने आरोप सिद्ध करने के लिए विपक्षी पार्टियों को आमंत्रित किया। लेकिन किसी ने चुनौती स्वीकार नहीं की। वैसे चुनाव में जब विपक्षी पार्टियां विजयी होती थीं, तब सर्वाधिक राहत ईवीएम को मिलती थी। वह विपक्षी हमले से बच जाती थी। तब कोई यह नहीं कहता था कि चुनाव बैलेट से होने चाहिए। भला हुआ कि अभी कर्नाटक में कांग्रेस जीत गई। विपक्षी नेता वहां जश्न मनाने पहुंच गए। यदि भाजपा विजयी होती तो अभी तक ईवीएम पर हमले हो रहे होते। उधर, पश्चिम बंगाल में बैलेट से चुनाव की अच्छी दशा दिखाई देती तो देश में बैलेट से चुनाव कराने की मांग हो रही होती। पश्चिम बंगाल के लिए चुनावी हिंसा कोई नई बात नहीं है। यहां तो कम्युनिस्टों की सरकार से लेकर आज तक यही हो रहा है।
विधानसभा चुनाव के दौरान और परिणाम के फौरन बाद पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा का दौर शुरू हुआ था। इसमें सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के लोगों की सहभागिता सामने आई थी। यह भी आरोप था कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस हिंसा को रोकने में कोई गंभीरता नहीं दिखाई। आरोप लगा कि सत्ता पक्ष अपने विरोधियों में भय का संचार करना चाहता था। यह राजनीति की कम्युनिस्ट शैली थी, जिसे तृणमूल ने अपना लिया।
तब लोकसभा सदस्य ज्योतिर्मय सिंह महतो के नेतृत्व में भाजपा सांसदों के एक प्रतिनिधिमंडल ने तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मुलाकात की थी। राष्ट्रपति भवन में हुई इस मुलाकात में सांसदों ने कोविंद को एक पत्र सौंप कर कहा कि पूरे पश्चिम बंगाल में अराजकता और डर का माहौल है। राज्य की कानून-व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त हो चुकी है। पश्चिम बंगाल के जंगल महल क्षेत्र में माओवादियों और अपराधियों की सक्रियता भी दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है जो कि चिंता का विषय है। अपराधियों और नक्सलियों के छुपने के लिए जंगल महल एक सुरक्षित स्थान बन गया है। बावजूद इसके राज्य सरकार और उसके आला अधिकारियों के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही। पुरुलिया कोल माफिया और रेत माफिया प्रशासन की शह पाकर खुले तौर पर अवैध कारोबार कर रहे हैं। जिन परिवारों ने भाजपा का समर्थन किया था उन्हें चुनाव बाद हुई हिंसा में अपने प्रियजनों को खोना पड़ा। राज्य की एक बड़ी आबादी डर के माहौल में जी रही है। भाजपा समर्थक लोगों के साथ अमानवीय व्यवहार किया गया।
इस समय पश्चिम बंगाल की राजनीतिक हिंसा पर एक रिपोर्ट भी जारी हुई थी। इसमें कहा गया था कि यहां चुनाव के बाद से ही हिंसक गतिविधि चलती रही है। इसमें भाजपा का समर्थन करने वाले निशाने पर थे। हिंसक तत्वों को सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस का खुला समर्थन था। यही कारण था कि पुलिस व प्रशासन ऐसी घटनाओं को नजरन्दाज करता रहा। इससे हिंसक तत्वों का मनोबल बहुत बढ़ गया था। पीड़ित लोगों की पुलिस थानों में कोई सुनवाई नहीं थी। वस्तुतः यह हिंसा सुनियोजित थी। इसका उद्देश्य भाजपा समर्थकों में भय फैलाना था।
गृह मंत्रालय की ओर से पोस्ट इलेक्शन वायलेंस पर बनाई गई फैक्ट फाइंडिंग कमिटी में सिक्किम हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रह चुके जस्टिस प्रमोद कोहली, केरल के पूर्व चीफ सेक्रेटरी आनंद बोस, कर्नाटक के पूर्व अतिरिक्त सचिव मदन गोपाल,आईसीएसआई के पूर्व अध्यक्ष निसार चंद अहमद और झारखंड की पूर्व डीजीपी निर्मल कौर शामिल थे। टीएमसी ने विधानसभा चुनाव में विजय मनाने से पहले ही विध्वंस की राजनीति शुरू की थी। ऐसी कोई घटना यदि भाजपा शासित राज्य में हो जाती तो तूफान खड़ा कर दिया जाता। जब बंगाल में दलितों,पिछड़ों, आदिवासियों और महिलाओं के साथ हिंसा होती है तो मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की आवाज भी नहीं निकलती। पंचायत चुनाव में हिंसा और बूथ कैप्चरिंग पर विपक्षी दलों का मौन उनके विचारों को उजागर करने वाला है।
डाॅ. अनिर्बान गांगुली ने कहा कि मतदान से एक दिन पूर्व टीएमसी ने राज्य भर में अपनी मशीनरी का उपयोग करते हुए अपने सशस्त्र गुंडों को तैनात कर दिया। इन दस्तों को विभिन्न इलाके में देखा गया, लेकिन सूचना दिये जाने के बाद भी पुलिस मूकदर्शक बनी रही। मतदान के दिन कई लोगों को केंद्र पहुंचने पर पता चला कि उनका वोट पहले ही डाला जा चुका है, कुछ को वापस लौटा दिया गया और अन्य बिना मतदान किए वापस जाने को मजबूर थे। यह हालात उस वक्त देखने को मिले जब टीएमसी के सशस्त्र गुंडों ने मतदान केंद्रों को अपने कब्जे में लेना आरंभ किया। इस दौरान अन्य दलों के बूथ एजेंटों पर हमला किया गया और मतदान अधिकारियों को भी केंद्रों से बाहर निकाल दिया गया। भाजपा बूथ एजेंटों को बूथों से दूर कर दिया गया। टीएमसी संरक्षण प्राप्त इन बाहरी उपद्रवी तत्वों ने सभी बूथों का नियंत्रण अपने हाथों में ले लिया। ये गुंडे कभी हवा में बंदूक लहराते और कभी फायरिंग करते भी नजर आये। वास्तविकता यह है कि मतदान केंद्रों के सामने कोई कतार नहीं थी। फिर भी राज्य के चुनाव आयोग ने दावा किया कि इन चुनावों में अस्सी प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ। कुल मिलाकर मतदान शांतिपूर्ण और व्यवस्थित रहा।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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