नई दिल्ली । राहुल गांधी (Rahul Gandhi)का आरक्षण की सीमा (Extent of reservation)बढ़ाने का दांव बता रहा है कि योगी आदित्यनाथ (yogi adityanath)के ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ स्लोगन ने विपक्ष की फिक्र बढ़ा (Opposition’s concern increased)दी है. राहुल गांधी का आरक्षण की सीमा बढ़ाने का दांव बता रहा है कि योगी आदित्यनाथ के ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ स्लोगन ने विपक्ष की फिक्र बढ़ा दी है।
देश में बढ़ती जातीय राजनीति RSS और बीजेपी के लिए सिरदर्द बनती जा रही थी, लेकिन योगी आदित्यनाथ के एक ही दांव ने विपक्षी खेमे को बड़े असमंजस में डाल दिया है – और आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से ज्यादा बढ़ाने की घोषणा वाला राहुल गांधी का बयान भी यही इशारा कर रहा है।
बांग्लादेश में मचे बवाल का उल्लेख करते हुए योगी आदित्यनाथ ने अगस्त, 2024 में कहा था, ‘कोई राष्ट्र तभी मजबूत रह सकता है… जब हम एकजुट, और धर्मनिष्ठ रहेंगे… बंटेंगे तो कटेंगे’ – और उसके बाद से तो ये बीजेपी का नया नारा ही बन गया।
अब तो लगता है, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के स्लोगन ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ की काट खोजना विपक्ष के लिए मुश्किल साबित हो रहा है, क्योंकि सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं, झारखंड और महाराष्ट विधानसभा चुनावों में भी ये नारा अपना असर दिखाने लगा है।
राहुल गांधी के रायबरेली दौरे की खास बातें
बीते दो महीनों से योगी आदित्यनाथ के भाषणों में ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ का किसी न किसी बहाने जिक्र जरूर सुनाई दे रहा है, जो एक तरीके से हिंदू समाज को एकजुट रहने का संदेश देने की कोशिश है. योगी आदित्यनाथ का बयान आने के बाद लखनऊ में जगह-जगह बीजेपी नेताओं की ओर से इस नारे वाले पोस्टर भी लगाये गये थे. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव को देखते हुए मुंबई और ठाणे में भी योगी आदित्यनाथ के स्लोगन वाले पोस्टर देखे गये थ।
वैसे यूपी में समाजवादी पार्टी की तरफ से जवाबी पोस्टर भी लगाये गये, जिन पर लिखा था – ‘ना बंटेंगे ना कटेंगे, मठाधीश सत्ता से हटेंगे.’ सपा नेता अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बयान पर फिर से रिएक्ट किया है, ‘अंग्रेज चले गये और इन्हें छोड़ गये… भारत का समाज ऐसे नारों को समर्थन नहीं देगा।
झारखंड की चुनावी रैली में भी योगी आदित्यनाथ ने लोगों से अपील की कि वे अपनी ताकत का एहसास करायें. बोले, जातियों में बंटना नहीं है… जाति के नाम पर कुछ लोग आपको बांटेंगे… कांग्रेस और विपक्ष यही काम करते हैं… एक दिन ये लोग आपको घर के अंदर घंटी और शंख भी नहीं बजाने देंगे. इसलिए, एक रहिए और नेक रहिए।
अखिलेश यादव ने पहले भी योगी आदित्यनाथ के बयान पर प्रतिक्रिया दी थी, और असदुद्दीन ओवैसी और संजय राउत ने भी – लेकिन, राहुल गांधी ने आरक्षण की सीमा बढ़ाने की बात तेलंगाना जाकर कही है. असल में, तेलंगाना सरकार जातिगत सर्वे कराने जा रही है, जो कर्नाटक के बाद दूसरी कांग्रेस सरकार होगी।
आरक्षण पर राहुल गांधी के बयान का मकसद
आरक्षण को लेकर राहुल गांधी ने अपनी मुहिम पिछले साल संसद के विशेष सत्र में लाये गये महिला आरक्षण विधेयक के साथ ही तेज कर दी थी, और उसी दौरान कांग्रेस ने CWC में जातीय जनगणना कराये जाने का प्रस्ताव भी पास किया था. अप्रैल, 2023 में राहुल गांधी ने अपनी सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा था, ‘जितनी आबादी, उतना हक़! जातीय जनगणना हर वर्ग को सही प्रतिनिधित्व देने का आधार है, वंचितों का अधिकार है।
बाद में 2023 के आखिर में हुए देश के कुछ राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान तकरीबन हर रैली में राहुल गांधी जातीय जनगणना का वादा याद दिलाना नहीं भूलते थे, लेकिन उसका कोई फायदा नहीं मिला. हां, तेलंगाना में कांग्रेस की सरकार जरूर बन गई थी – और अब उसी तेलंगाना में मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी 6 नवंबर से जातिगत सर्वे शुरू कराने जा रहे हैं।
नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के आरक्षण पर एक बयान को लेकर काफी बवाल भी मचा था, जब वो विदेश दौरे पर थे. बाद में राहुल गांधी को सफाई भी देनी पड़ी थी, क्योंकि मायावती जैसी नेता उनके बयान को आरक्षण के खिलाफ समझाने लगी थीं।
तेलंगाना में होने जा रहे जातिगत सर्वे से पहले राहुल गांधी का कहना है कि केंद्र में उनकी पार्टी की सरकार बनेगी तो आरक्षण के लिए निर्धारित 50 फीसदी की सीमा खत्म कर दी जाएगी. राहुल गांधी का कहना है कि भारत में जातिगत भेदभाव शायद दुनिया में सबसे खराब है, इसलिए कांग्रेस 50 फीसदी आरक्षण की सीमा को खत्म कर देगी।
अमेरिकी दौरे में राहुल गांधी ने कहा था कि कांग्रेस आरक्षण खत्म करने के बारे में तब सोचेगी, जब भारत में आरक्षण के लिहाज से निष्पक्षता होगी… और अभी ऐसा नहीं है।
राहुल गांधी का बयान आने के बाद बीएसपी नेता मायावती का कहना था, राहुल गांधी के बयान से साफ है कि उनकी पार्टी बरसों से एससी, एसटी और ओबीसी का आरक्षण खत्म करने की साजिश में लगी है।
जब बवाल मचा तो राहुल गांधी ने सफाई देते हुए कहा था कि उनके बयान को गलत तरीके से पेश किया गया. राहुल गांधी ने उसी वक्त कहा था कि कांग्रेस सत्ता में आने पर आरक्षण की सीमा 50 फीसदी करेगी. राहुल गांधी ने कहा, मैं आरक्षण के खिलाफ नहीं हूं… हम तो सभी की भागीदारी के लिए राजनीति कर रहे हैं।
असल में, राहुल गांधी कांग्रेस के पुराने वोट बैंक को फिर से हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन, राहुल गांधी के आरक्षण वाले इस दांव से क्षेत्रीय दल भी चौकन्ने हो गये हैं – यूपी उपचुनावों में समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस को आईना दिखा दिया है, भले ही उसे हरियाणा चुनाव के बदले के तौर पर देखा जा रहा हो।
जातीय राजनीति के खिलाफ बीजेपी का नया दांव
राहुल गांधी के नेतृत्व में इंडिया ब्लॉक के नेताओं के जातीय जनगणना कराये जाने की मुहिम बीजेपी को लगातार परेशान कर रही थी. पहले तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कास्ट सेंसस को काउंटर करने के लिए अपने हिसाब से जातियां गिनाई थी. मोदी के अनुसार, देश में चार जातियां गरीब, महिलाएं, युवा और किसान हैं – लेकिन इस दांव का कोई खास असर नहीं देखने को मिला।
बाद में केंद्रीय मंत्री अमित शाह को सामने आकर बयान देना पड़ा कि बीजेपी को जातीय जनगणना से कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन इस बारे में पार्टी सही समय पर फैसला लेगी. ये बात अमित शाह ने कई मौकों पर कही है. बीच बीच में ऐसी भी खबरें आती रहीं कि बीजेपी जातीय जनगणना के लिए विचार विमर्श भी कर रही है – लेकिन, योगी आदित्यनाथ के बंटेंगे तो कटेंगे बोल देने के बाद बीजेपी को बड़ी राहत मिली है, और विपक्षी खेमे को थोड़ा परेशान देखा जा रहा है।
अभी झारखंड के चुनाव कैंपेन में योगी आदित्यनाथ लोगों से कह रहे थे, अपनी ताकत का एहसास करवाइये… जातियों में बंटना नहीं है… जाति के नाम पर कुछ लोग आपको बांटेंगे… कांग्रेस और विपक्ष यही काम करते हैं।
बीजेपी के लिए संघ भी परेशान लग रहा था, क्योंकि यूपी में बीजेपी की कम सीटें आने में एक बड़ी भूमिका कास्ट पॉलिटिक्स की भी थी. संघ तो कभी नहीं चाहता कि हिंदू समुदाय अलग अलग जातियों में बंट जाये।
जिस तरह से योगी आदित्यनाथ के ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ नारे को मोहन भागवत और नरेंद्र मोदी ने समर्थन दिया है, लगता है कि इसे कांग्रेस और समाजवादी पार्टी सहित इंडिया ब्लॉक की तरफ से चल रहे जातीय जनगणना के अभियान को काउंटर करने की कोशिश चल रही है1
अब देखना ये है कि ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ विमर्श के बीच राहुल गांधी के 50 फीसदी प्लस आरक्षण की नये सिरे से घोषणा करने के बाद किसे क्या मिलता है? कांग्रेस का पुराना वोटर फिर से उसके सपोर्ट में खड़ा होता है या नहीं? क्षेत्रीय दल कांग्रेस के साथ बने रहते हैं या नहीं? और सबसे बड़ी बात बीजेपी जातीय राजनीति को तरीके से काउंटर कर पाती है या नहीं?
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