भोपाल: मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी से मुकाबला करने के लिए कांग्रेस कमलनाथ के अगुवाई में हिंदुत्व का दांव खेल रही है. कमलनाथ के हिंदुत्व के साथ धर्मनिरपेक्षता का संतुलन बनाने के लिए राहुल गांधी आज सोमवार को भोपाल में मुसलमानों को साधने के लिए उतरेंगे. राहुल नीमच की जावद और हरदा की टिमरनी विधानसभा सीट पर जनसभा संबोधित करने के बाद शाम को भोपाल के रणभूमि में करेंगे. इस दौरान वो मुस्लिम बहुल इलाकों में रोड शो करके कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाने के साथ-साथ मुसलमानों का विश्वास जीतने की कवायद करेंगे?
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में अब बहुत की कम समय बचा है. 17 नवंबर को वोटिंग होनी है, जिसके चलते 15 नवंबर को चुनाव प्रचार खत्म हो जाएगा. इस तरह से चुनावी प्रचार खत्म होने के महज तीन ही बचे हैं. ऐसे में कांग्रेस भी अपनी पूरी ताकत प्रचार में झोंक रही है. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी पहली बार भोपाल में रोड शो करने के लिए उतर रहे हैं.
राहुल गांधी का भोपाल में रोड शो
राहुल गांधी मध्य प्रदेश के दौरे पर हैं और आज उनके 3 कार्यक्रम हैं. राहुल सोमवार को सुबह 11 बजे नीमच जिले की जावद विधानसभा के दीकन में जनसभा को संबोधित करेंगे. इसके बाद हरदा जिले की टिमरनी विधानसभा के सिराली में जनसभा को संबोधित करने के बाद भोपाल रवाना होंगे. राहुल का पूरा फोकस मुस्लिम मतदाताओं पर है और कमलनाथ उनके साथ भोपाल में रोड शो के दौरान रहेंगे.
राहुल गांधी शाम साढ़े चार बजे के करीब भोपाल पहुंचेंगे, जहां एयरपोर्ट से उतरकर इमामी गेट जाएंगे. इमामी गेट से राहुल गांधी रोड शो शुरू करेंगे और यह पीर गेट, मोती मस्जिद होते हुए काली मंदिर चौराहे पर खत्म होगा. राहुल गांधी करीब दो किलोमीटर के अपने रोड शो में भोपाल दो विधानसभा सीटों (उत्तर और मध्य क्षेत्र) के कांग्रेस प्रत्याशी के लिए वोट मांगेंगे. इसके बाद राहुल गांधी शाम 7 बजे से अशोका गार्डन में नर्मदा चौराहे के पास एक जनसभा को भी संबोधित करेंगे.
कांग्रेस ने उतारा दो मुस्लिम कैंडिडेट
मध्य प्रदेश की 230 सीटों में से कांग्रेस इस बार महज दो मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं. कांग्रेस के दोनों ही कैंडिडेट भोपाल से हैं. भोपाल की मध्य विधानसभा सीट से आरिफ मसूद और भोपाल की उत्तर विधानसभा से आरिफ अकील के बेटे आतिफ अकील को प्रत्याशी बनाया है. कांग्रेस ने 2018 में तीन मुस्लिम प्रत्याशी उतारे थे, जिनमें 2 जीतने में कामयाब रहे थे. इस बार कांग्रेस ने मौजूदा विधायक आरिफ मसूद पर एक फिर से भरोसा जताया है तो दूसरी सीट पर मौजूदा विधायक आरिफ अकील के बेटे पर दांव खेला है. राहुल गांधी रोड-शो के जरिए कांग्रेस के दोनों ही मुस्लिम कैंडिडेट के पक्ष में माहौल बनाने के लिए उतर रहे हैं.
कांग्रेस ने दो सीटों पर मुस्लिम कैंडिडेट पर भरोसा जताया है जबकि बीजेपी ने इस बार किसी भी मुस्लिम को टिकट नहीं दिया. बीजेपी ने 2018 में एक मुस्लिम कैंडेडिट उतारा था. राहुल गांधी गांधी भोपाल की इन दोनों ही सीटों पर प्रचार करके मध्य प्रदेश के 7 फीसदी मुस्लिम मतदाताओं को साधने की कवायद करते हुए नजर आएंगे. राहुल गांधी के रोड शो के रूट का प्लान ऐसा बनाया गया है, जिसके तहत मुस्लिम बहुल क्षेत्रों को कवर किया जा सके. ऐसे में कांग्रेस यह संदेश देने की कोशिश में है कि उनकी पार्टी मुसलमानों के साथ खड़ी है. मध्य प्रदेश में मुस्लिम वोटर्स करीब 22 सीटों पर किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं.
हिंदुत्व के संग सेकलुर का संतुलन
कांग्रेस मध्य प्रदेश में इस बार प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के अगुवाई में खुल कर हिंदुत्व का दांव खेल रही है, जिसके चलते मुस्लिमों से दूरी बनाए हुए है. कांग्रेस ने इस बार मुसलमानों के टिकट में कटौती कर दी है और दो प्रत्याशी उतारे हैं. राज्य के इतिहास में पहली बार इतने कम प्रत्याशी दिए हैं. कांग्रेस ने भोपाल तक ही मुस्लिम कैंडिडेट को सीमित कर दिया है. यही वजह है कि मुस्लिम इलाकों में समीकरण साधने के लिए राहुल गांधी को खुद उतरना पड़ रहा है. राहुल गांधी जिस तरह से भोपाल में अपना रोड शो उत्तर और मध्य सीट तक सीमित कर रखा है, उसके साफ तौर पर समझा जा सकता है कि मुस्लिम मतदाताओं के साथ संतुलन बनाने की रणनीति है.
1962 में चुने गए थे 7 विधायक
मध्य प्रदेश में मुसलमानों की आबादी भले ही 7 फीसदी है, लेकिन 2 दर्जन सीटों पर अहम भूमिका में है. मुस्लिम मतदाता भोपाल की मध्य, भोपाल उत्तर, सिहौर, नरेला, देवास की सीट, जबलपुर पूर्व, रतलाम शहर, शाजापुर, ग्वालियर दक्षिण, उज्जैन नार्थ, सागर, सतना, रीवा, खरगोन, मंदसौर, देपालपुर और खंडवा की विधानसभा की सीटों पर जीत-हार की भूमिका तय करते हैं. इसके बावजूद कांग्रेस महज दो सीटों पर मुस्लिम कैंडिडेट उतारे हैं ताकि बीजेपी के द्वारा लगाए जा रहे तुष्टीकरण के आरोपों का सामना कर सके. कमलनाथ खुलकर हिंदुत्व का दांव खेल रहे हैं और मुस्लिम नेताओं को दूर रखा है.
साल 1962 के विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा सात मुस्लिम विधायक चुने गए थे. 1972 और 1980 में 6-6 मुस्लिम विधायक बने थे, जबकि 1985 में 5 मुस्लिम विधानसभा चुनाव जीते थे. बाबरी विध्वंस के बाद हुए 1993 के एमपी विधानसभा चुनाव में एक भी मुस्लिम विधायक नहीं जीत सका था, लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने अपनी कैबिनेट में मु्स्लिम प्रतिनिधित्व दिया था. ऐसे में कांग्रेस ने इस बार भोपाल की सीटों पर ही मुस्लिमों को टिकट दिए हैं तो ओवैसी ने मुस्लिमों को उनकी हिस्सेदारी के अनुसार टिकट नहीं देने का आरोप लगाते हुए चुनावी मैदान में उतरी है.
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved