मुंबई: महाराष्ट्र (Maharashtra) विधानसभा चुनाव परिणाम से पहले एग्जिट पोल (Exit Poll) की बरी आई तो हरियाणा सबके जेहन में था. एग्जिट पोल से भरोसा उठ ही चुका था. लिहाजा विश्वास की कमी के बीच कुछ एजेंसियां मैदान में उतरी. महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे, देवेंद्र फडनवीस और अजित पवार की तिकड़ी को अधिकतर ने आगे दिखाया. चाणक्य शरद पवार, उद्धव ठाकरे और नाना पटोले के गठबंधन को थोड़ा पीछे. अब नतीजा सामने है हरियाणा जैसा. बीजेपी (BJP) ने भी नहीं सोचा होगा कि वो अकेले 125 से ज्यादा सीटें हासिल करने वाली है. लेकिन असली टेस्ट तो राहुल गांधी (Rahul Gandhi) का हुआ.
लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र की 48 में 30 सीटें जीतने के बाद कांग्रेस गठबंधन जमीनी हकीकत भूल गई. राहुल आरएसएस मुख्यालय नागपुर के रेशिमबाग में संविधान बांटने पहुंच गए जिसमें अंदर के पन्ने कोरे निकले. बीजेपी ने इसे लाल किताब बता दिया. राहुल को लगा संविधान, ओबीसी रिजर्वेशन और जाति गणना ने लोकसभा में काम किया तो विधानसभा की जीत तय है. आलम ये था कि कांग्रेस चुनाव के दौरान भावी सीएम पर चर्चा कर रही थी. जब रिजल्ट सामने आ गए तब पता चल रहा है कि महाराष्ट्र के इतिहास में कांग्रेस की ऐसी दुर्गति आपातकाल के बाद हुए चुनाव मे भी नहीं हुई. इंदिरा गांधी की पार्टी को तब 69 सीटें मिली थीं. आज कांग्रेस 20 सीटों के लिए संघर्ष कर रही है.
अब तो चौक चौराहों पर भी चर्चा है कि अगर फाइट टाइट बताया जा रहा तो समझिए बीजेपी प्रचंड बहुमत की तरफ है. महाराष्ट्र इलेक्शन रिजल्ट से पहले भी ऐसा ही लग रहा था. इसके कई कारण थे. मनोज जरांगे के मराठा आंदोलन के बाद माना जा रहा था कि मराठवाड़ा के इलाके में मराठा सरदार शरद पवार इनके वोट महाविकास अघाड़ी की ओर खींच ले जाएंगे.
उधर राहुल गांधी विधानसभा चुनाव में लोकसभा वाला फॉर्मूला लेकर घूम रहे थे. संविधान को खतरा बता रहे थे. जीतने के बाद जाति गणना का वादा कर रहे थे और ओबीसी रिजर्वेशन लिमिट बढ़ाने की वकालत कर रहे थे. कांग्रेस खुद ही इस बात को भूल गई कि महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. राष्ट्रीय मुद्दों से स्थानीय चुनाव नहीं जीत सकते. राहुल गांधी ने सीट शेयरिंग में तो जबरदस्त सौदा किया और कोटा 100 तक लेकर चले गए लेकिन एजेंडा सेट करने में पीछे रह गए.
दूसरी ओर अश्विनी वैष्णव, विनोद तावड़े, देवेंद्र फडनवीस, भूपेंद्र यादव लोकसभा की हार से सबक लेकर जमीनी मुद्दों पर फोकस कर रहे थे. प्याज एक्सपोर्ट से पाबंदी नरेंद्र मोदी सरकार ने हटाई. सोयाबीन किसानों के लिए फैसले किए गए. एकनाथ शिंदे ने मुख्यमंत्री माझी लड़की बहिन योजना को आगे बढ़ाया. जीत के बाद एकनाथ शिंदे ने भी माना की इस योजना ने जीत में अहम भूमिका निभाई है.
संघ के गढ़ विदर्भ में भाजपा का प्रदर्शन लगातार खराब चल रहा था लेकिन इस बार संघ ने खुल कर बीजेपी के लिए बैटिंग की. देवेंद्र फडनवीस ने खुद एक इंटरव्यू में कहा कि उन्होंने निजी तौर पर संघ से मदद करने को कहा है. ये लोकसभा चुनाव से पहले जेपी नड्डा की लाइन से अलग लाइन थी. तब बीजेपी अध्यक्ष ने कहा था कि बीजेपी को संघ की बैसाखी नहीं चाहिए. उधर रही सही कसर मोदी के एक हैं तो सेफ हैं और योगी आदित्यनाथ के बटेंगे तो कटेंगे वाले नारे ने पूरी कर दी.
अगर ट्रेंड कायम रहा तो ताजा रिपोर्ट के मुताबिक बीजेपी 129 सीटें जीतने जा रही है. ये आज तक का सबसे जबरदस्त परफॉरमेंस होगा. इससे पहले 2014 में बीजेपी ने 122 सीटें जीती थी. शिव सेना 26 और एनसीपी 39 सीटों पर परचम लहरा सकती है. वहीं राहुल गांधी की कांग्रेस 20 सीटों पर सिमटने जा रही है. इस ऐतिहासिक पतन के बाद राहुल ही नहीं बल्कि गांधी परिवार कांग्रेस में अलग-थलग पड़ सकता है. जी-23 फिर से उभर जाए तो बड़ी बात नहीं. ऐसे में सोनिया गांधी के लिए परिवार का पार्टी पर पकड़ सुनिश्चित रखना मुश्किल हो जाएगा. एक विकल्प प्रियंका गांधी है जो वायनाड से जीत रही हैं.
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