आदमी को आदमी बनाने के लिए
जिंदगी में प्यार की कहानी चाहिए
और कहने के लिए कहानी प्यार की
स्याही नहीं, आँखों वाला पानी चाहिए।
सूबे के सीनियर नामवर सहाफी (पत्रकार) राघवेंद्र सिंह की छवि एक दानिश्वर और हस्सास (संवेदनशील) इंसान की है। ये अपने पेशे के ईमानदाराना उसूलों से गहरे बावस्ता हैं…वहीं इनका ज़ाती(व्यक्तिगत) किरदार भी किसी सख़ी इंसान का नुमायां होता है। 35 बरसों से जाईद की अपनी कमिटेड सहाफत में आज राघवेंद्र सिंह का नाम अदब-ओ-एहतराम से लिया जाता है। मियाँ खां दुश्मनों के दुश्मन हों या न हों… बाकी यारों के यार तो हैं। अपनी क़लम से ढेरों मज़लूमों और ज़रूरतमंदों की मदद भी इन्होंने खूब करी। नया इंडिया में इनका कॉलम ‘न काहू से बैरÓ में इनकी सटीक सियासी नुक्ताचीनी से कौन वाकिफ न होगा। वहीं आईएण्डी 24 में इनका शो बाख़बर भी खासा मक़बूल है। बिलाशक सिंह साब मुकम्मल सहाफी हैं। बाकी आज यहां इनकी उस पोशीदा खूबी पर लिखना चाहता हूं जिसकी इजाज़त इन्होंने बमुश्किल दी। राघवेंद्र सिंह मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र बुदनी तहसील के छोटे से गांव डोबी के बाशिंदे हैं।
ये आज भी अपने आबाई गांव से गहरे जुड़े हैं। माशा अल्लाह उस इलाके में इनके पुरखों की अच्छी ज़मीन जायदाद है। अभी चंद रोज़ पेले राघवेंद्र सिंह और इनकी बड़ी बहन मोहतरमा रामेति सिंह साहेबा ने सख़ावत (दानशीलता) की ऐसी मिसाल पेश की जो आमतौर से आसूदाहाल लोगों में कम देखने मे आती है। इन भाई-बहन ने अपने हिस्से की एक एकड़ मौके की ज़मीन सरकार को दान दे दी। डोबी की ये ज़मीन सलकनपुर से जबलपुर जा रहे फोर लेन नेशनल हाइवे पर है। इसकी कीमत 50 लाख बताई जाती है। अपने आबाई गांव के लिए कुछ करने की तमन्ना के चलते इन्होंने इस नेक काम को अंजाम दिया। डोबी में सरकारी अस्पताल बनाने के लिए इस बेशकीमती ज़मीन को स्वास्थ्य विभाग को दान कर दिया गया। इस जमीन के हस्तांतरण की कार्वाई मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. एसके डेहरिया की मौजूदगी में की गई। इस जमीन पे सरकारी कम्युनिटी हेल्थ सेंटर बनेगा। इसके लिए विभाग ने 3 करोड़ का बजट मंज़ूर कर दिया है। हालांकि सीएचसी में 10 बेड होते हैं। राघवेंद्र सिंह ने सीएम साब से कहा है के हाइवे पर होने की वजह से इसे 30 बेड का अस्पताल बनाएं। इसके बनने से डोबी और अतराफ़ के मछवाई, खोह, मुरारी, जैत, खेरिसिलगेना, पिपलिया और हथनोरा वालों को काफी फायदा होगा। राघवेंद्र सिंह इस अस्पताल में मरीजों के तीमारदारों के लिए निशुल्क भोजन का इंतज़ाम भी करेंगे। भाई कहते हैं कि मेरी क्या बिसात है और मैं क्या किसी को दे सकता हूं। उन्होंने कहा के हमारा ये छोटा सा तआव्वुन पूरी पत्रकार बिरादरी की तरफ से है। मालूम हो कि कोरोना की दूसरी लहर में राघवेंद्र सिंह सख्त अलील हो गए थे। आप बताते हैं कि चिरायु अस्पताल में मैं मौत के दरवाजे तक ही पहुंच गया था। तभी से दिल में ख्वाईश है कि अब अपने लिए न जीकर मआशरे के लिए जिया जाए। राघवेंद्र बताते हैं कि जि़न्दगी बहुत मुक्तसर है। इस छोटे से सफर में गर हम इन्सानियत के कुछ काम आ सकें तो इससे बेहतर कुछ नहीं। सही कहा भाई इंसानियत और भलाई लौट के आपके पास ज़रूर आती है। आपके इस अमल से इंशा अल्लाह दूसरे लोग भी इबरत लेंगे।
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