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रफाल-सौदे में लचक ?

September 26, 2020

– डॉ. वेदप्रताप वैदिक

भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक ने अपनी ताजा रपट में गंभीर टिप्पणियां कर दी हैं, जो सरकार के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। हमलोग बहुत खुश थे कि सरकार ने रफाल विमानों का सौदा इतने अच्छे ढंग से किया है कि ये लड़ाकू विमान भारत पहुंच भी चुके हैं और उनके प्रदर्शन से शत्रुओं को उचित संदेश भी चला गया है। लेकिन भा.नि.म. (सीएजी) की रपट ने जनता के उत्साह पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है।

उन्होंने पूछा है कि फ्रांसीसी कंपनी दस्साॅल्ट एविऐशन ने जब 26 विमानों के लिए भारत से 59000 करोड़ रु. लिये हैं तो उसने अपने वायदों को पूरा क्यों नहीं किया? उसका वायदा यह था कि भारत उसे जितनी राशि देगा, उसकी 50 प्रतिशत याने आधी राशि वह भारत में इसलिए लगाएगा कि भारत विमान-निर्माण की तकनीक खुद विकसित कर सके। वैसे सरकारी नीति यह है कि यदि कोई सौदा 300 करोड़ रु. से ज्यादा का हो तो उसका 30 प्रतिशत पैसा उस तकनीक के विकास के लिए वह देश भारत में लगाएगा। लेकिन फ्रांस की इस दस्साॅल्ट एवियेशन कंपनी ने भारत में 50 प्रतिशत पैसा लगाना स्वीकार किया था। इसका एक अर्थ यह भी हुआ कि ये विदेशी कंपनियां अपना शस्त्रास्त्र अपने लागत मूल्य से चार-छह गुना ज्यादा कीमत पर बेचती हैं ताकि खरीददार को लालच में फंसा सकें और अपना फायदा भी जमकर कमा सकें।

जो भी हो, यह सौदा शुरू में मनमोहन सिंह सरकार ने ही किया था। इसके मुताबिक भारत को 126 रफाल विमान खरीदने थे, जिनमें से 108 भारत में बनने थे लेकिन उनमें देर लगती, इसलिए मोदी सरकार ने फ्रांस से बने-बनाए विमान खरीद लिये। विमान सही कीमत पर खरीदे गए हैं और बोफर्स की तरह इस सौदे में दलाली नहीं खाई गई है, यह बात सर्वोच्च न्यायालय की राय से भी पता चलती है। दस्साॅल्ट एविएशन ने अनिल अंबानी के रिलायंस ग्रुप के साथ मिलकर भारत में इन विमानों को बनाने का समझौता किया था लेकिन भा.नि.म. (सीएजी) ने उसकी शून्य प्रगति को भी रेखांकित किया है। हमारे रक्षा अनुसंधान और विकास संस्थान (डीआरडीओ) को दस्साॅल्ट से छह नई तकनीक मिलनेवाली थीं। आजतक उसे एक भी नहीं मिली है।

भारत में जबतक हम उच्चकोटि के युद्धक विमान नहीं बनाएंगे, हमारी वायुसेना अक्षम ही रहेगी। उसके पास युद्धक विमानों के 42 बेड़े होने चाहिए थे लेकिन उसके पास अभी सिर्फ 27 हैं। रफाल-सौदे में पाई गई इसी कमी पर उंगली रखकर सीएजी ने सरकार को ठीक समय पर चेता दिया है। अभीतक यह पता नहीं है कि दस्साॅल्ट एवियेशन ने अपने दायित्वों को पूरा क्यों नहीं किया है?

(लेखक सुप्रसिद्ध पत्रकार और स्तंभकार हैं।)

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