– योगेश कुमार गोयल
लंबे इंतजार के बाद 29 जुलाई को भारतीय वायुसेना के बेड़े में पांच राफेल लड़ाकू जेट विमान शामिल हो जाएंगे। वैसे तो फ्रांसीसी कम्पनी 8 अक्तूबर 2019 को ही भारत को चार राफेल सौंप चुकी है और तभी से वहीं भारतीय पायलटों को इसका प्रशिक्षण दिया जा रहा था, इसलिए पौने तीन माह पहले ये विमान भारत पहुंचने थे लेकिन कोरोना महामारी के कारण इनके भारत आने में विलम्ब हुआ। दो सीटों वाले प्रशिक्षण विमानों सहित आरबी सीरीज के पहले पांच राफेल जेट विमानों में फ्रांसीसी वायुसेना के टैंकर विमान से हवा में ही ईंधन भरा जाएगा और मिडल ईस्ट से आते समय भारत के अंबाला एयरबेस पर उतरने से पहले विमान में भारतीय आईएल-78 टैंकर द्वारा पुनः हवा में ही ईंधन भरा जाएगा। कुल 36 राफेल विमानों की दो स्क्वाड्रनों में से पहली ‘17 गोल्डन एरोज’ भारत-पाक सीमा से करीब 220 किमी दूर अम्बाला तथा दूसरी पश्चिम बंगाल के हासीमारा केन्द्र में तैनाती होगी।
राफेल की विशेषताओं की बात करें तो इसे हवा से हवा तथा हवा से जमीन पर मिसाइल हमलों के लिए बहुआयामी भूमिका निभाने के लिए भारतीय वायुसेना की जरूरतों के हिसाब से परिष्कृत किया गया है। राफेल फ्रांस की विमान निर्माता कम्पनी ‘दसॉल्ट एविएशन’ द्वारा निर्मित दो इंजन वाला अत्याधुनिक मध्यम मल्टीरोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए) है, जो भारतीय वायुसेना की पहली पसंद माना जाता है। अफगानिस्तान, सीरिया, लीबिया, माली तथा इराक में हुई जंग में अपनी ताकत का प्रदर्शन कर चुके राफेल की टेक्नोलॉजी बेहतरीन है और इसमें कई ऐसी विशेषताएं हैं, जो इसे विश्व का बेहतरीन लड़ाकू विमान बनाने के लिए पर्याप्त हैं। यह हवाई हमला, वायु वर्चस्व, जमीनी समर्थन, भारी हमला, परमाणु प्रतिरोध इत्यादि कई प्रकार के कार्य बखूबी करने में सक्षम है। परमाणु बम गिराने की ताकत से लैस राफेल में इजरायल हेलमेट-माउंटेड डिस्प्ले, रडार चेतावनी रिसीवर, लो बैंड जैमर, दस घंटे की उड़ान डाटा रिकॉर्डिंग, इन्फ्रारेड खोज और ट्रैकिंग प्रणाली शामिल हैं। कई शक्तिशाली हथियारों को ले जाने में सक्षम राफेल विमान उल्का बीवीआर एयर-टू-एयर मिसाइल (बीवीआरएएएम) की अगली पीढ़ी है, जिसे एयर-टू-एयर कॉम्बैट में क्रांति लाने के लिए डिजाइन किया गया है। राफेल की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें ऑक्सीजन जनरेशन सिस्टम लगा होने के कारण लिक्विड ऑक्सीजन भरने की जरूरत नहीं पड़ती।
फ्रांस में वर्ष 1970 में वहां की सेना द्वारा अपने पुराने पड़ चुके लड़ाकू विमानों को बदलने की मांग सरकार से की गई थी, जिसके बाद फ्रांस ने चार यूरोपीय देशों के साथ मिलकर एक बहुउद्देशीय लड़ाकू विमान परियोजना पर काम शुरू किया। कुछ वर्षों बाद फ्रांस के साथ उन देशों के मतभेद हो गए और फ्रांस ने अपने बूते पर इस परियोजना पर काम शुरू कर दिया। फ्रांस द्वारा निर्मित राफेल-ए श्रेणी के पहले विमान ने 4 जुलाई 1986 को जबकि राफेल-सी श्रेणी के विमान ने 19 मई 1991 को पहली उड़ान भरी थी। ‘दसॉल्ट एविएशन’ 1986 से लेकर 2018 के बीच कुल 165 राफेल विमान तैयार कर चुकी है। ये विमान ए, बी, सी तथा एम श्रेणियों में एक सीट, डबल सीट तथा डबल इंजन में उपलब्ध हैं। राफेल की लम्बाई 15.30 मीटर और ऊंचाई 5.30 मीटर है जबकि इसके विंग्स की लम्बाई 10.90 मीटर है। अमेरिका के लड़ाकू विमान एफ-16 की तुलना में यह मात्र 0.79 फुट ज्यादा लंबा और 0.82 फुट ऊंचा है। बेहद कम ऊंचाई पर उड़ान भरने के साथ ही यह परमाणु हमला करने में भी सक्षम है। अत्यंंत घातक हथियारों से लैस ये विमान यूरोपीय मिसाइल निर्माता ‘एमबीडीए’ द्वारा निर्मित दृश्य सीमा से परे हवा से हवा में मार करने वाली मीटिअर मिसाइल के अलावा स्कैल्प क्रूज मिसाइल से भी लैस हैं। मीटिअर मिसाइल दृश्य सीमा से परे हवा से हवा में मार करने वाली अगली पीढ़ी की ऐसी मिसाइल है, जिसे हवाई लड़ाईयों में अत्यधिक कारगर माना जाता है।
रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक कोई लड़ाकू विमान कितना ताकतवर है, यह उसकी सेंसर क्षमता और हथियारों पर निर्भर करता है अर्थात् कोई लड़ाकू विमान कितनी दूरी से स्पष्ट देख सकता है और कितनी दूरी तक मार कर सकता है और राफेल इस मामले में बिल्कुल अत्याधुनिक लड़ाकू विमान है। राफेल की विजिबिलिटी 360 डिग्री है, जिसके चलते यह ऊपर-नीचे, अगल-बगल अर्थात् हर तरफ निगरानी रखने में सक्षम है। उन्नत तकनीक और परमाणु हमला करने में सक्षम राफेल का हर तरह के मिशन में उपयोग किया जा सकता है। यह हर तरह के मौसम में लंबी दूरी के खतरे को भी तुरंत भांप सकता है और नजदीकी लड़ाई के दौरान एक साथ कई टारगेट पर नजर रख सकता है। यह जमीनी सैन्य ठिकाने के अलावा विमानवाहक पोत से उड़ान भरने में भी सक्षम है और इसकी बड़ी खासियत यह है कि इलेक्ट्रॉनिक स्कैनिंग रडार से थ्रीडी मैपिंग कर यह रियल टाइम में दुश्मन की पोजीशन खोज लेता है। राफेल में बैठे पायलट द्वारा दुश्मन की लोकेशन को देखकर बटन दबा देने के बाद बाकी काम इसमें लगे कम्प्यूटर करते हैं। कोई लड़ाकू विमान कितनी ऊंचाई तक जाता है, यह उसके इंजन की ताकत पर निर्भर करता है और केवल 1312 फुट के बेहद छोटे रनवे से उड़ान भरने में सक्षम राफेल 36 हजार फुट से लेकर 60 हजार फुट तक उड़ान भरने में सक्षम है, जो महज एक मिनट में ही 60 हजार फुट की ऊंचाई तक जा सकता है। अधिकतम 2200 से 2500 किलोमीटर प्रति घंटे तक की रफ्तार से उड़ान भरने में सक्षम राफेल 24500 किलोग्राम तक भार लेकर उड़ सकता है और इसकी मारक क्षमता 3700 किलोमीटर तक है।
मल्टीमोड रडार से लैस राफेल जेट विमान हवाई टोही, ग्राउंड सपोर्ट, इन-डेप्थ स्ट्राइक, एंटी-शर्प स्ट्राइक और परमाणु अभियानों को अंजाम देने में निपुण है। ऑप्ट्रॉनिक सिक्योर फ्रंटल इंफ्रारेड सर्च और ट्रैक सिस्टम से लैस राफेल में एमबीडीए एमआइसीए, एमबीडीए मीटिअर, एमबीडीए अपाचे जैसी कई तरह की खतरनाक मिसाइलें और गन लगी हैं, जो पल भर में दुश्मन को नेस्तनाबूद कर सकती है। इसमें लगी मीटिअर मिसाइल सौ किलोमीटर दूर उड़ रहे दुश्मन के लड़ाकू विमान को भी पलभर में मार गिराने में सक्षम हैं। रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार ऐसी मिसाइल चीन-पाकिस्तान सहित एशिया में किसी देश के पास नहीं है। 150 किमी की बियोंड विजुअल रेंज मिसाइल, 300 किलोमीटर रेंज वाली हवा से जमीन पर मार वाली स्कैल्प मिसाइल से लैस यह लड़ाकू विमान 4.5 जनरेशन के डबल इंजन से लैस है, जिसमें ईंधन क्षमता 17 हजार किलोग्राम है। इसमें लगी 1.30 एमएम की एक गन एक बार में 125 राउंड गोलियां चलाने में सक्षम है। केवल एक मिनट में विमान के दोनों तरफ से 30 एमएम की तोप से भी 2500 राउंड गोले दागे जा सकते हैं। यह ऊंचे इलाकों में लड़ने में भी माहिर है और इसमें एक या दो पायलट ही बैठ सकते हैं। एकबार में यह दो हजार समुद्री मील तक उड़ सकता है। परमाणु हथियारों से लैस राफेल हवा से हवा में 150 किलोमीटर तक मिसाइल दाग सकता है और हवा से जमीन तक इसकी मारक क्षमता 300 किलोमीटर है।
रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार इसकी क्षमता पाकिस्तान के एफ-16 से ज्यादा है। पाकिस्तान और चीन की ओर से देश की सीमाओं की सुरक्षा को लगातार मिलती चुनौतियों के मद्देनजर राफेल विमान भारतीय वायुसेना को अभेद्य ताकत प्रदान करने में अहम भूमिका निभाएंगे क्योंकि पाकिस्तान के पास इस समय जे-17, एफ-16 और मिराज जैसे जो उच्च तकनीक वाले लड़ाकू विमान हैं, वे तकनीक के मामले में राफेल से काफी पीछे हैं।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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