भगवान श्रीकृष्ण की प्रिय राधा रानी को भला कौन नहीं जानता या कह सकते हैं कि कौन नहीं पूजता. अटूट प्रेम व विश्वास का प्रतिक मानी जाती हैं राधा रानी . जब-जब लोग भगवान कृष्ण का नाम लेते हैं तब-तब राधा का नाम भी ज़रूर लेते हैं, क्योंकि राधा बिना कृष्ण की पूजा अधूरी मानी जाती है।
क्या आप जानते हैं कि राधा रानी का जन्मोत्सव भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को ही मनाया जाता है और इसे राधाअष्टमी का त्योहार कहा जाता है। राधाअष्टमी ठीक कृष्ण जन्माष्टमी के पंद्रह दिन बाद धूमधाम के साथ मथुरा, वृंदावन और बरसाने में मनायी जाती हैं।
किस देवी की अंश हैं भगवान कृष्णी की प्रिय राधा रानी?
हमारे शास्त्रों की मानें तो राधा रानी के पिता का नाम वृषभानु था और माता का नाम किर्ति । कहा तो यह भी जाता है कि राधा रानी स्वयं मां लक्ष्मी का अंश थी। जिस तरह भगवान विष्णु के अंश कृष्ण थे ठीक उसी तरह मां लक्ष्मी का अंश राधा थी।
राधाअष्टमी 2020 कब है?
इस साल यानि कि 2020 में कोरोना महामारी के कारण राधाअष्टमी का त्योहार 26 अगस्त को बड़े ही सादे अंदाज़ में मनाया जाएगा, पर हां भक्ति व श्रद्धा में कोई कमी नहीं होगी और राधा रानी भी अपने सभी भक्तों की हर मनोकामना अवश्य पूरी करेंगी।
राधाअष्टमी का क्या है महत्व –
जैसा कि हमने आपको पहले बताया कि राधा रानी के बिना भगवान कृष्ण की पूजा अधूरी मानी जाती है इसलिए जो भी लोग कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत रखते हैं, उन्हें ज़रूर राधा रानी के जन्मोत्सव पर भी व्रत रखना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि राधाष्टमी के व्रत के बिना कृष्ण जन्माष्टमी के व्रत का पूरा पुण्य प्राप्त नहीं होता है और राधाअष्टमी के दिन राधा और कृष्ण दोनों की ही पूजा भी की जाती है। इस दिन का बहुत महत्व है क्योंकि इस दिन जो भी भक्त सच्चे मन से व्रत और पूजा करते हैं उन्हें जग की सारे सुखों की प्राप्ति होती है । बता दें कि राधा रानी को वल्लभा भी कहा जाता है ।
राधाअष्टमी 2020 के पूजा का शुभ मुहूर्त –
25 अगस्त को दोपहर 12:21 से अष्टमी तिथि की शुरुआत हो जाएगी और यह 26 अगस्त की सुबह 10:39 बजे तक रहेगी इसलिए राधाष्टमी का व्रत 26 अगस्त के दिन रखा जाएगा ।
राधाअष्टमी 2020 की पूजा विधि –
जो भी भक्त राधा अष्टमी का व्रत रखने जा रहा है उसे सूर्योदय से पहले ही उठ जाना होगा और फिर वह नहा-धोकर साफ कपड़े पहन लें । इसके बाद एक साफ चौकी ले लें और उस पर लाल या फिर पीले रंग का नया कपड़ा बिछा लें । अब उसके ऊपर भगवान श्री कृष्ण और आराध्या देवी राधा जी की प्रतिमा को स्थापित कर दें व साथ ही कलश भी स्थापित करना ना भूलें ।
हां, इन दोनों को पंचामृत से स्नान करवाएं, सुंदर वस्त्र पहनाए और दोनों का श्रृंगार भी करें । कलश पूजन के साथ राधा-कृष्ण की पूजा सच्चे मन से करें। उन्हें फूल अर्पित करें और साथ ही फल-मिष्ठान का भोग लगाएं। ध्यान रहे कि राधा कृष्ण के मंत्रो के जाप के साथ-साथ, कथा सुने और दोनों की आरती भी गाएं ।
बोलो राधे-कृष्ण की जय – हरे कृष्णा, हरे कृष्णा, हरे कृष्णा. हरे-हरे।
हरे राधा, हरे राधा, हरे राधा. हरे-हरे।।
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