नई दिल्ली । अयोध्या के बाद काशी, मथुरा, ताजमहल और अब दिल्ली (Delhi) के कुतुब मीनार (Qutub Minar) को लेकर विवाद (controversy) छिड़ गया है। हिंदू संगठन के नेताओं (Hindu organization leaders) ने मंगलवार को मीनार में हनुमान चालीसा का पाठ करने का एलान किया था। हालांकि, इसके पहले ही उन्हें हिरासत में ले लिया गया। प्रदर्शनकारियों की मांग है कि कुतुब मीनार का नाम बदलकर विष्णु स्तंभ कर दिया जाए।
इसी के साथ कुतुब मीनार को लेकर कई तरह की चर्चाएं शुरू हो गई हैं। सवाल उठ रहा है कि क्या ये सच में हिंदू और जैन मंदिरों को तोड़कर बनाया गया है? मीनार के अंदर क्या है? पढ़िए ये विशेष रिपोर्ट…
पहले जान लीजिए कुतुब मीनार का इतिहास
भारत की सबसे ऊंची मीनार कुतुब मीनार दिल्ली के महरौली इलाके में छतरपुर मंदिर के पास है। यह विश्व धरोहर में शुमार है, जिसका निर्माण 12वीं और 13वीं शताब्दी के बीच में कई अलग-अलग शासकों द्धारा करवाया गया है। इसकी शुरुआत 1193 ई. में दिल्ली के पहले मुस्लिम शासक कुतुबुद्दीन ऐबक ने की थी। कुतुबुद्दीन ने मीनार की नींव रखी, इसका बेसमेंट और पहली मंजिल बनवाई।
कुतुबद्दीन के शासनकाल में इसका निर्माण पूरा नहीं हो पाया। इसके बाद कुतुबद्दीन के उत्तराधिकारी और पोते इल्तुमिश ने मीनार की तीन और मंजिलें बनवाईं। साल 1368 ई. में मीनार की पांचवीं और अंतिम मंजिल का निर्माण फिरोज शाह तुगलक ने करवाया। कहा जाता है कि 1508 ई. में आए भयंकर भूकंप की वजह से कुतुब मीनार काफी क्षतिग्रस्त हो गई। तब लोदी वंश के दूसरे शासक सिकंदर लोदी ने इसकी मरम्मत करवाई थी। इस मीनार के निर्माण में लाल बलुआ पत्थर और मार्बल का इस्तेमाल किया गया है। इसके अंदर गोल-गोल करीब 379 सीढ़ियां हैं।
विवाद क्या है?
दरअसल, मीनार की दीवारों पर सदियों पुराने मंदिरों के अवशेष साफ दिखाई पड़ते हैं। इसमें हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां और मंदिर की वास्तुकला मौजूद है। इसे मीनार के आंगन में साफ देखा जा सकता है। मीनार के अंदर भगवान गणेश और विष्णु की कई मूर्तियां हैं। कुतुब मीनार के प्रवेश द्वार पर एक शिलालेख है। इसमें प्रयुक्त खम्भे और अन्य सामाग्री 27 हिन्दू और जैन मंदिरों को ध्वस्त करके प्राप्त की गई थी।
इतिहासकार प्रोफेसर इरफान हबीब कहते हैं, ‘इसमें कोई शक नहीं है कि ये मंदिर का हिस्सा हैं। ये जो मंदिर थे, ये वहीं थे या आसपास में कहीं थे, इस पर लंबे समय से चर्चा होती रही है।’ हालांकि, इतिहासकार बीएम पांडेय की राय इस पर अलग है। उन्होंने कुतुब मीनार पर एक पुस्तक लिखी है। इसका नाम ‘कुतुब मीनार एंड इट्स मोन्यूमेंट्स’ है। इसमें वह लिखते हैं, ‘जो मूल मंदिर थे वो यहीं थे। यदि आप मस्जिद के पूर्व की ओर से प्रवेश करते हैं, तो वहां जो स्ट्रक्चर है, वो असल स्ट्रक्चर है। मुझे लगता है कि असल मंदिर यहीं थे। कुछ इधर-उधर भी रहे होंगे, जहां से उन्होंने स्तंभ और पत्थर के अन्य टुकड़े लाकर उनका इस्तेमाल किया।’
दायर को चुकी है याचिका
कुतुब मीनार में हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियों की हालात को लेकर राज्यसभा के पूर्व सांसद और भाजपा नेता तरुण विजय ने आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) को पत्र लिखा था। उन्होंने कुतुब मीनार परिसर में भगवान गणेश की उल्टी प्रतिमा और एक जगह उनकी प्रतिमा को पिंजरे में बंद होने की बात कही थी। विजय ने कहा था कि ऐसा करके हिंदू भावनाओं को अपमानित किया जा रहा है। विजय ने इन प्रतिमाओं को राष्ट्रीय संग्रहालय में रखवाने की मांग की थी।
इसके पहले पिछले साल दिल्ली की एक अदालत में एक याचिका दायर हुई थी। इसमें मांग की गई थी कि जिन 27 मंदिरों को तोड़कर ये कुतुब मीनार बनाया गया था, उनका जीर्णोद्धार कराया जाना चाहिए। ये याचिका हिंदू देवता भगवान विष्णु, जैन देवता तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव और अन्य की ओर से दायर की गई थी। दीवानी न्यायाधीश नेहा शर्मा ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था, ‘इस बात से सहमत हूं कि अतीत में कई गलतियां हुईं हैं, लेकिन ऐसी गलतियां हमारे वर्तमान और भविष्य की शांतिभंग करने का आधार नहीं हो सकती है।’ इसके बाद कोर्ट ने यह याचिका खारिज कर दी थी।
हिंदू संगठनों की क्या मांग है?
हिंदू संगठनों ने भगवान की मूर्तियों का हवाला देते हुए मांग की है कि मीनार का नाम बदलकर विष्णु स्तंभ कर दिया जाए और यहां हिंदुओं और जैन धर्म के लोगों को पूजा करने का अधिकार दिया जाए। वहीं, कुछ लोग इन मूर्तियों की पूजा की अनुमति चाहते हैं। इन लोगों का दावा है कि 2004 से पहले यहां मौजूद मूर्तियों की पूजा होती थी।
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