नई दिल्ली (New Delhi)। मोदी सरकार (Modi Govt) कोटा के अंदर कोटा को लेकर विचार कर रही है। यह अनुसूचित जाति (SC) के कोटे पर लागू होगा। एक रिपोर्ट में कहा है कि एससी श्रेणी (sc category) के भीतर कुछ जातियों के लिए एक अलग कोटा तय किया जा सकता है। सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि कुछ प्रभावशाली एससी समुदाय तक ही इसका लाभ सीमित नहीं रह जाए। सूत्रों के मुताबिक, तेलंगाना में मडिगा समुदाय की मांग पर भी विचार किया जा सकता है।
आपको बता दें कि ओबीसी की तरह एससी और एसटी के लिए कोई क्रीमी लेयर नहीं है। मराठा, पटेल और जाट जैसे समूहों की ओर से भी ओबीसी दर्जे की मांग की जा रही है। इसीलिए सरकार के लिए यह कदम जोखिम भरा भी साबित हो सकता है।
तेलंगाना में एससी समुदाय की कुल आबादी करीब 17 प्रतिशत है। इनमें से मडिगा की आबादी लगभग 50 प्रतिशत है। उनका तर्क है कि अधिकांश अवसरों पर प्रभावशाली एससी समुदाय माला का कब्जा हो जाता है। इसलिए उन्होंने अपने लिए अलग कोटा की मांग करते हुए एक आंदोलन शुरू किया है। अन्य राज्यों में भी माला जैसे उदाहरण हैं। जैसे कि बिहार में पासवान और यूपी में जाटव का एसी समुदाय के भीतर बोलबाला है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी इंतजार
सूत्रों ने कहा इसके लिए एक कानून विकल्प भी है। सरकार को सुप्रीम कोर्ट की एक बड़ी पीठ के गठन का इंतजार करना है। एक याचिका में अदालत से ऐसा करने का अनुरोध किया गया है। सरकार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार है।
आपको बताते चलें कि केंद्र सरकार ने ओबीसी के लिए ऐसी कवायद पहले ही शुरू कर दी है। रोहिणी आयोग की स्थापना की गई, जिसकी रिपोर्ट 31 जुलाई को प्रस्तुत की गई थी। 2024 के आम चुनावों से पहले राजनीतिक अनिवार्यताओं को देखते हुए यह रिपोर्ट लटकी हुई है।
कोटा के अंदर कोटा पर खूब हुए हैं विवाद
2004 में सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ ने अनुसूचित जाति के भीतर कोटा के लिए आंध्र प्रदेश के कानून को रद्द कर दिया। 2020 में सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने माना कि राज्य के पास ऐसा करने की शक्ति है, लेकिन मुख्य न्यायाधीश से मामले को सात या अधिक न्यायाधीशों की पीठ को सौंपने का अनुरोध किया। वह अभी भी लंबित है। 1994 में हरियाणा, 2006 में पंजाब और 2008 में तमिलनाडु जैसे राज्य एससी के भीतर कोटा लागू करने के लिए आगे बढ़े लेकिन सुप्रीम कोर्ट में फैसले लंबित हैं।
मार्च 2000 में सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया गया। इसके अनुसार 14 राज्य असहमत थे। वहीं, सात राज्य और केंद्र कोटा के अंदर कोटा पर सहमत हुए थे। सूत्रों ने कहा कि सरकार के भीतर एक वर्ग ने इसका समर्थन किया है। उन्होंने तर्क दिया है कि आंकड़े इस बात की गवाही दे रहे हैं कि एससी के भीतर कुछ समुदायों को लाभ का बड़ा हिस्सा मिलता है।
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