भोपाल: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) हाई कोर्ट (High Court) में सात जजों (seven judges) की नियुक्ति की वैधानिकता को चुनौती दी गई. मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में यह याचिका 4 नवंबर 2023 को दायर की गई थी. याचिका पर मंगलवार (28 मई) को सुनवाई हुई. एक्टिंग चीफ जस्टिस शील नागू और जस्टिस अमरनाथ केसरवानी की डबल बेंच ने सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है.
इस याचिका में कैबिनेट लॉ सेक्रेटरी, यूनियन ऑफ इंडिया कानून मंत्रालय, सुप्रीम कोर्ट, मध्य प्रदेश हाई कोर्ट, मध्य प्रदेश शासन के मुख्य सचिव के अलावा 2 नवंबर 2023 को नियुक्त सात जजों जस्टिस विनय सराफ, जस्टिस विवेक जैन, जस्टिस राजेंद्र कुमार वानी, जस्टिस प्रमोद कुमार अग्रवाल, जस्टिस विनोद कुमार द्विवेदी, जस्टिस देव नारायण मिश्रा और जस्टिस गजेंद्र सिंह को पक्षकार बनाया गया है.
जबलपुर निवासी अधिवक्ता मारुति सौंधिया ने अपनी याचिका में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम पर जातिवाद और वर्गवाद का आरोप लगाया. याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता उदय कुमार साहू ने दलील दी कि हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट द्वारा संविधान में विहित सामाजिक न्याय और आनुपातिक प्रतिनिधित्व के सिद्धांत को नजर अंदाज करके एक ही जाति, वर्ग और परिवार विशेष के ही अधिवक्ताओं के नाम जज बनाने के लिए भेजे जाते हैं. यह संविधान के अनुच्छेद 13, 14, 15, 16 और 17 के प्रावधानों और भावना के विपरीत है.
न्यायपालिका में सभी वर्गों का आनुपातिक प्रतिनिधित्व होना आवश्यक है. इस संबंध में करिया मुंडा कमेटी की रिपोर्ट स्पष्ट रूप से व्याख्या करती है कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में एक जाति वर्ग विशेष के ही जजों की नियुक्ति होने से बहुसंख्यक समाज के लोगों को उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित किया जा रहा है. अधिवक्ता साहू ने कोर्ट को बताया कि आजादी से लेकर आज तक मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में एक भी एससी और एसटी जज नहीं बनाया गया है. इतना ही नहीं मध्य प्रदेश हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम में भी आरक्षित वर्ग का एक भी प्रतिनिधि नहीं है.
याचिका में आरोप लगाया गया कि कॉलेजियम मनमाने रूप से अपने चहेतों को उपकृत करने के लिए जज के लिए नाम की अनुशंसा करती है. अधिवक्ता साहू ने उदाहरण देकर बताया कि हाल ही में रिटायर चीफ जस्टिस रवि मलिमठ अपनी तीसरी पीढ़ी के हाई कोर्ट जज थे. इसी प्रकार देश के अन्य जज परिवारों के उदाहरण भी दिए गए.
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