चैतन्य भट्ट, जबलपुर। आज 5 अक्टूबर को गोंडवाना वंश की प्रतापी वीरांगना रानी दुर्गावती का 500 वां जन्म दिवस मनाया जाने वाला है कई कार्यक्रम इस दौरान किए जाएंगे, लेकिन दुखद तथ्य तो ये है कि वीरांगना की यादों को संजोए रखने वाला मदनमहल का किला बरसों बाद भी अपनी बेनूरी पर आंसू बहा रहा है वास्तु कला के इस अद्भुत नमूने को सहेजने और इसकी देखरेख की जिम्मेदारी किसी ने भी गंभीरता से नहीं निभाई।
जबलपुर नागपुर राजमार्ग पर शहर के बीचों बीच शारदा चौक के पास से सड़क से थोड़ा हटकर एक रास्ता ऊपर की ओर जाता है जो सीधा रानी दुर्गावती की किले जिससे मदनमहल का किला कहा जाता है, तक पहुंचता है। पुरातत्व की दृष्टि से देखा जाए तो जबलपुर का उपनगरीय का इलाका गढ़ा बेहद महत्वपूर्ण है इस पर करीब 500 सालों तक गौंड राजाओं ने राज किया तथा अपनी राजधानी बना कर रखा। मदनमहल किले का निर्माण गौंड राजा राजा मदन सिंह ने 1100 ईस्वी में करवाया और इन्हीं के नाम पर से इसे मदन महल का किला कहा जाता है। रानी दुर्गावती गौंड राजाओं की पीढ़ी के राजा दलपत सिंह की पत्नी थी। मदनमहल का किला यद्यपि देखने में छोटा और साधारण सा दिखाई देता है परंतु दो पहाडिय़ों के शीर्ष पर एक पानी की टंकी के समान निर्मित यह किला देखने में जहां बेहद खूबसूरत है वही वास्तुकला का अनोखा नमूना भी है महल का ऊपरी भाग पहाड़ी की सतह से एक अलहदा चट्टान पर बना है, महल के पश्चिम में गंगा सागर तालाब है तो कुछ दूरी पर बाल सागर। गौंड राजाओं द्वारा बनवाए गए कई मंदिर भी आसपास हैं जो मात्र अवशेषों की शक्ल में दिखाई देते हैं। गौंड राज्य का महत्व लिए हुए यह महल पर्यटकों को पुराने समय में गढ़ा की महानता का संस्मरण भी दिलाता है जब राज्य की जनता लगान के रूप में शाही खजाने को हाथी और स्वर्ण मुद्राएं दिया करती थी ।सन 1908 में मदन महल तथा गढ़ा के बीच 140 स्वर्ण तथा 36 रजत मुद्राएं मिली जो उसे वक्त मुद्रा के रूप में प्रचलित थी। बेहद दुर्भाग्य जनक तथ्य ये है कि तमाम खूबियों और अपनी ऐतिहासिकता, पुरातत्वीय विशेषता से लबरेज इस किले को उपेक्षा और वीरानी के अलावा और कुछ हासिल नहीं हो पा रहा है रानी दुर्गावती के 500 वें जन्म दिवस पर यदि शासन, प्रशासन, पर्यटन विभाग ,पुरातत्व विभाग इस किले को एक दर्शनीय, पर्यटक स्थल बनाने की शपथ ले सके तो शायद इसकी किस्मत खुल सकती है ।
सामूहिक दुष्कर्म का कलंक भी झेल चुका है किला
वीरांगना दुर्गावती किले के सर पर सामूहिक बलात्कार का कलंक लग चुका है यह घटना आज से लगभग 49 वर्ष पूर्व हुई थी जब एक दंपति शहडोल जाने के लिए मदन महल स्टेशन पहुंचे चूंकि गाड़ी लेट थी इसलिए दोनों पति-पत्नी मदनमहल किला देखने आ गए जब वे उसकी खूबसूरती निहार रहे थे इसी बीच इलाके के चार बदमाश रमेश, प्रह्लाद गोपी और बकरियां चराने वाले कल्लू ने उनको घेर लिया पति को चाकू की नोक पर बंधक बनाकर प्रहलाद गोपी और रमेश ने विवाहिता के साथ दुष्कर्म किया। अपना सब कुछ लुटाने के बावजूद दंपति सीधे गढ़ा पुलिस स्टेशन पहुंचे और इस संबंध रिपोर्ट लिखाई। जब पुलिस ने उनके सामने इलाके के तमाम हिस्ट्रीशीटर्स की फोटो दिखाई तो पीडि़ता ने रमेश की फोटो को पहचान लिया लेकिन अन्य बदमाशों की पहचान नहीं हो पाई। पुलिस ने इस घटना को गंभीरता से लिया और एक आरोपी कल्लू को पकड़ लिया जब पुलिस ने अपने हिसाब से पूछताछ की तो कल्लू ने बताया कि घटना के दिन वह रमेश प्रह्लाद और गोपी के साथ जरूर गया था लेकिन उसने दुष्कर्म में कोई हिस्सा नहीं लिया था। इसके आधार पर तीन अन्य आरोपियों को गिरफ्तार कर मामला 24 मार्च 75 को न्यायालय में पेश किया। विद्वान न्यायाधीश डीपी शुक्ला पंचम अपर सत्र न्यायाधीश की अदालत में यह मुकदमा चला और मार्च 1976 को तीनों आरोपियों को 10, 10 वर्ष की कठोर सजा सुनाई गई तथा मुख्य अभियुक्त रमेश को धारा 392 के अंदर 3 वर्ष की अतिरिक्त सजा दी गई।
प्रकृति की देन बेलेंसिंग रॉक
मदनमहल किले के पास ही प्रकृति का एक और अजीब नमूना भी है जिसे बैलेंसिंग रॉक कहा जाता है इसमें दो बड़ी चट्टानें एक दूसरे पर लगभग 2 इंच की जगह पर सैकड़ों वर्षों से से थमी हुई हैं। इसका उपयोग उस वक्त के राजा महाराजा निरीक्षण चौकी के रूप में भी करते थे इसके पास ही घोड़ों को बांधने का अस्तबल तथा सैनिकों के ठहरने के लिए हाल भी था। कहा तो यह भी जाता है कि इसके नीचे एक सुरंग भी है जो शत्रुओं के आक्रमण के दौरान बचाव के उपयोग में आती थी।
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