भोपाल। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के लिए क्वारंटीन होना कोई नई बात नहीं। नवाबों के काल में भी लोग क्वारंटीन हुए थे। भोपाल पहले भी महामारी का एक दौर देख चुका है। बात 117 साल पुरानी है। उस वक्त प्लेग महामारी ने हाहाकार मचाया था। भोपाल रियासत ने तब बाहर से आने वाले लोगों को 10 दिन तक शहर से बाहर बाग उमराव दूल्हा में क्वारंटीन करने की व्यवस्था की थी। उस दौर में भोपाल स्टेशन पर भी एक गार्ड तैनात था।
जानकारी के मुताबिक, उस दौर में प्लेग से ग्रस्त मरीजों की निगरानी का आदेश भोपाल के प्रिंस ऑफ वेल्स अस्पताल (अब सुल्तानिया) के इंचार्ज अधिकारी को दिए गए थे। यहां से प्रकाशित होने वाले अखबार दैनिक भास्कर के मुताबिक, इन आदेशों और सुरक्षा इंतजामों का जिक्र नवाब सुल्तान जहां बेगम ने रियासत की पत्रिका इन्सदाद-ताऊन में किया था। इसके जरिए लोगों तक संदेश पहुंचाया जाता था।
मौलाना ने जारी किया था फतवा- टीका लगवाने में कोई मजहबी नुकसान नहीं
पत्रिका इन्सदाद-ताऊन में उल्लेख है कि उस दौर में मौलाना रशीद अहमद गंगोही विद्वान हुआ करते थे। उनका लोगों पर जबरदस्त प्रभाव था। उन्होंने उस दौर में फतवा जारी किया था। फतवे में कहा गया कि टीका लगवाने में कोई मजहबी नुकसान नहीं है। टीके के बाद एक प्रमाण-पत्र भी दिया जाता था। टीका लगने पर संबंधित को क्वारंटीन नहीं किया जाता था। इसके अलावा जिस घर में ज्यादा सदस्य हैं, उन्हें अलग घर देने, पर्यावरण एवं स्वच्छता की खातिर गंधक और लोबान जलाने का हुक्मनामा जारी हुआ था, ताकि आसपास का वातावरण शुद्ध रहे।
आम वाहन से नहीं ले जाते थे शव
महामारी के दौरान किसी की मौत होने पर शवों को श्मशान घाट या कब्रिस्तान ले जाने के लिए कोतवाल को अलग से वाहन का इंतजाम करने को कहा गया था। इसके लिए अलग से बजट मंजूर था। वहीं, स्वास्थ्य सेवाओं के लिए 10 हजार रुपए का बजट भी स्वीकृत किया गया था।
कब्रिस्तान और श्मशान घाट पर किए गए थे कई इंतजाम
श्मशान घाट पर शवों का अंतिम संस्कार कराने के लिए पंडित बिहारी लाल नारायण, मुंशी दौलत राय को जिम्मेदारी दी गई थी। इन्हें लकड़ी सप्लाई की निगरानी भी सौंपी गई थी। प्लेग से मौत होने पर अलग-अलग कब्रिस्तान में शव को दफनाने का इंतजाम था। वहां 20 फीट लंबे और 15 फीट चौड़े टीन शेड बनाने के आदेश दिए थे।
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