आदत नहीं हमे पीठ पीछे वार करने की
दो लफ्ज़ कम बोलते हैं पर सामने बोलते हैं।
भोपाल की उर्दू सहाफत (पत्रकारिता) का बड़ा नाम क़मर अशफ़ाक़ साब के जुमेरात को इंतक़ाल की खबर सहाफियों की बिरादरी में बड़े अफसोस से सुनी गई। क़मर अशफ़ाक़ साब क़दीमी भोपाली थे। इस उर्दू सहाफी की खास बात ये थी के आप भोपाल के मशहूर उर्दू रोजऩामे नदीम के तकरीबन 55 बरस तक एडिटर रहे। उमर से जुड़ी बीमारियों में मुब्तिला होने के बावजूद क़मर अशफ़ाक़ साब 89 बरस की उमर तक एमपी नगर में बने नदीम अखबार के दफ्तर आते रहे। मालूम हो के नदीम अखबार भोपाल नवाब हमीदुल्ला खां ने शुरू किया था। आज़ादी के बाद जब रियासत का भारत शासन में विलय हुआ तो नवाब ने इस अखबार के कारिंदों से इसे चलाने को कहा। उस दौर में हकीम सैयद कमरुल हसन साब इसके एडिटर थे। उन्होंने नदीम को हासिल किया था। अब उनके बेटे सैयद नूरुल हसन (परवेज़ भाई) और सैयद आरीफुल हसन साब इस तारीखी अखबार को चला रहे हैं। क़मर अश्फाक साब भोपाल की मशहूर हस्ती प्रो.आफाक अहमद के छोटे भाई थे। आप बहुत कमसुखन थे। सिर्फ अपने काम से काम रखते। अपने रूखे अखलाक की वजह से कुछ लोग उन्हें जुनूनी या मिराकी कहते।
बाकी नदीम से उनकी इतनी उंसियत थी के इस ज़इफी में भी रोज़ दफ़्तर आते। किसी करंट मौज़ू पे इदारिया (संपादकीय) लिखते और घर चले जाते। एक ज़माने में नदीम बंद होने की कगार वे था, तब आपने अपने दमखम से इस अखबार को बराबर शाया करा। आप उर्दू ज़बान के बहुत बड़े शैदाई थे। कहां कोनसा लफ्ज़ इस्तेमाल होना है इसका बहुत खयाल रखते। उनकी लिखावट को हर कोई नहीं पढ़ सकता था। नदीम के कम्प्यूटर ओपरेटर मुमताज़ मियाँ ही पढ़ पाते थे। क़मर अशफ़ाक़ साब बेहद उसूल पसंद संपादक थे। वो मिजाज़ और ऑडियोलॉजी मे बहुत एग्रेसीव थे। जोशीले अंदाज़ में काम करना उनका शौक था। किसी से फालतू अंदाज़ में लागलपेट वाली गुफ्तगू नहीं करते थे। अपनी जवानी में ये हॉकी के उम्दा खिलाड़ी भी रहे। इनके वालिद कैप्टन एजाज़ साब फ़ौज में थे। लिहाज़ा अनुशासन घुट्टी में मिला था। नदीम जब लखेरेपुरे से निकलता था तब इनका घर भी वहीं था। लड़कपन के दिनों में क़मर साब इस अखबार में स्पोट्र्स की खबरें लिखा करते थे। सन 1967 या 68 में आप नदीम के एडिटर हो गए। इतने तवील वक्फे तक शायद ही कोई सहाफी किसी अखबार का एडिटर रहा हो। इनके दो बेटों में से एक अमान शाहवर भोपाल के जानेमाने सहाफी हैं। कल दोपहर मरहूम सहाफी को बड़ा बाग कब्रिस्तान में सुपुर्दे खाक किया गया। मरहूम को खिराजे अक़ीदत।
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