नई दिल्ली(New Delhi) । रूस-यूक्रेन युद्ध(Russia–Ukraine War) के चलते भारतीय सेनाओं (Indian Armed Forces)के कई रक्षा उपकरणों (defense equipment)की मरम्मत नहीं हो पा रही है। लेकिन, अब इसका समाधान निकलता हुआ दिख रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच मंगलवार को हुई शिखर वार्ता के दौरान दोनों देश भारत में ऐसे कलपुर्जों के संयुक्त उत्पादन पर सहमत हुए हैं।
सेना से जुड़े सूत्रों ने इस घोषणा को बेहद महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि इससे तीनों सेनाओं को उन उपकरणों को सेवा के योग्य बनाने में मदद मिलेगी, जिनके लिए रूस या यूक्रेन से कलपुर्जों की आपूर्ति पिछले दो सालों से युद्ध के चलते ठप पड़ी हुई है। हालांकि, कुछ उपकरण स्थानीय स्तर पर भी बनाए गए हैं, इसके बावजूद समस्या बनी हुई है।
कुछ समय पूर्व तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे ने कहा था कि युद्ध के चलते अकेले थल सेना के 40 रक्षा प्रणालियां प्रभावित हुई हैं। सूत्रों के अनुसार कलपुर्जों की आपूर्ति नहीं होने से मुख्य रूप से एयर डिफेंस सिस्टम, टैंक, लड़ाकू एवं परिवहन विमान, हेलीकॉप्टर, जंगी पोत, पनडुब्बियां आदि प्रभावित हुई हैं।
एक आकलन के अनुसार तीनों सेनाओं में उच्च श्रेणी के 60-65 फीसदी रक्षा प्लेटफार्म रूस या यूक्रेन निर्मित हैं। पिछले दो दशकों में 65 फीसदी रक्षा खरीद रूस से हुई है। इसी प्रकार वायुसेना ने एक संसदीय समिति को दिए प्रजेंटेशन में कहा था कि सुखोई विमानों पर इसका सबसे अधिक असर पड़ा है। रख-रखाव नहीं हो पाने के कारण 50 फीसदी सुखोई उड़ान भरने की स्थिति में नहीं हैं।
नौसेना के मिग-29 विमानों, सिंधुघोष श्रृंखला की पनडुब्बियों के लिए रूस के कलपुर्जों एवं पोतों में इस्तेमाल होने वाले गैस टर्बाइन इंजन के पुर्जों के लिए यूक्रेन पर निर्भर है। नौसेना की एक पनडुब्बी मरम्मत के लिए रूस गई थी, लेकिन युद्ध के कारण उत्पन्न हालातों के चलते वह महीनों के विलंब के बाद लौटी।
रूस-यूक्रेन में बने हथियारों की हो सकेगी मरम्मत
विदेश मंत्रालय के अनुसार दोनों देशों के बीच बनी सहमति के तहत दोनों देश मेक इन इंडिया के तहत भारत में संयुक्त उपक्रम स्थापित करेंगे। रूस इस उपक्रम को तकनीक का हस्तांतरण करेगा। इस प्रकार दोनों देश संयुक्त रूप से कलपुर्जों का उत्पादन करेंगे। इससे रूस और यूक्रेन में बने हथियारों की मरम्मत भारत में हो सकेगी। इसके अलावा यह उपक्रम दूसरे देशों को भी इन कलपुर्जों का निर्यात कर सकेगा। बता दें, ब्रह्मोस मिसाइल, ए.के. 203 राइफल के बाद यह दोनों देशों के बीच तीसरा संयुक्त उपक्रम होगा। ब्रह्मोस और ए. के. 203 राइफलों का दोनों देश भारत में संयुक्त उत्पादन कर रहे हैं। जबकि, तकनीक हस्तांतरण के तहत मिले लाइसेंस के जरिये भारत सुखोई विमानों और टी-90 टैंकों का निर्माण कर रहा है।
रूस-यूक्रेन युद्ध के अन्य प्रभाव
– भारत को एस-400 पर एयर डिफेंस सिस्टम की पूर्ण आपूर्ति नहीं सकी। अभी भी इसके दो सेट भारत को मिलने हैं।
-2020 में 12 सुखोई, 21 मिग-29 विमानों की खरीद तथा अन्य मिग-21 विमानों को अपग्रेड करने के अनुबंध में भी विलंब।
– नौसेना के लिए रूस से 2025 तक एक परमाणु पनडुब्बी लीज पर लेने के करार में भी विलंब तय माना जा रहा है।
जल्द उत्पादन शुरू करने पर जोर
संयुक्त उत्पादन कब से शुरू हो सकेगा, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि इस पर आने वाले दिनों में दोनों देश कितनी तेजी से आगे बढ़ते हैं। चूंकि, यह उपक्रम भारत की किसी रक्षा कंपनी जैसे एचएएल या अन्य के साथ होगा, इसलिए बुनियादी ढांचा हमेशा तैयार मिलेगा।
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