मॉस्को। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Russian President Vladimir Putin) ने तेल निर्यात (oil export) को लेकर मंगलवार को बड़ा फैसला लिया। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) फिर यूरोप के देशों को तेल और गैस की सप्लाई बंद करने की धमकी देते हुए कहा कि जिन देशों ने प्राइस कैप (price cap) लगाया है, उनकी ऊर्जा आपूर्ति (Energy Supplies) में कटौती की जाएगी।
आपको बता दें कि रूस सऊदी अरब के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल निर्यातक और दुनिया का सबसे बड़ा प्राकृतिक गैस निर्यातक देश है। ऐसे में पुतिन का ये फैसला वैश्विक ऊर्जा बाजार को सीधे तौर पर प्रभावित करेगी। इससे विश्व की अर्थव्यवस्था (World Economy) को ऊर्जा की कीमतों में बढ़ोतरी का सामना करना पड़ेगा। रूसी सरकार ने उन देशों और कंपनियों को तेल की सप्लाई पर रोक लगाने का फरमान जारी किया है, जो यूक्रेन में मॉस्को के हमलों के जवाब में पश्चिमी देशों के प्राइस कैप (मूल्य सीमा) के समर्थन में हैं। राष्ट्रपति कार्यालय की ओर से जारी आदेश के मुताबिक, उन विदेशी संस्थाओं व व्यक्तियों को रूसी तेल और तेल उत्पादों की सप्लाई प्रतिबंधित है, जिनके आपूर्ति करार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर प्राइस कैप का इस्तेमाल कर रहे हैं।
विदित हो कि इससे पहले भी पुतिन ने कुछ दिनों पहले यह संकेत दिया था कि रूस तेल उत्पादन में कटौती कर सकता है। साथ ही उन देशों को तेल की सप्लाई बंद हो सकती है, जिन्होंने उसके तेल पर प्राइस कैप लगाया है।
प्राइस कैप का फैसला क्यों लिया गया?
बता दें कि कि यूरोपीय यूनियन ने 5 दिसंबर को रूस के क्रूड के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसके बाद G-7 देशों कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन और अमेरिका ने रूस के तेल पर 60 डॉलर प्रति बैरल की प्राइस कैप लगा दी। इस फैसले के पीछे की मंशा इन देशों की यह थी कि रूस की अर्थव्यवस्था को ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाया जाए।
प्राइस कैप को लेकर भारत का स्टैंड
यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद उसपर पश्चिमी देशों ने कई तरह के प्रतिबंध लगाए। इसके बाद रूस ने रियायती दरों पर कच्चे तेल की बिक्री शुरू कर दी। ऐसे में भारत ने रूस से बड़ी मात्रा में सस्ता कच्चा तेल खरीदना शुरू किया। कुछ दिनों पहले ही रूस ने जी-7 और उसके सहयोगियों की ओर से उसके कच्चे तेल के लिए प्राइस कैप का समर्थन नहीं करने के भारत के फैसले का स्वागत किया था। इसके साथ ही रूस ने यूरोपीय संघ और ब्रिटेन की ओर से बीमा सेवाओं व टैंकर को लेने की सुविधा पर रोक के बीच भारत को पट्टे पर बड़ा जहाज लेने के लिए सहयोग की पेशकश की।
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