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    विकास के राजपथ पर सरपट दौड़ता पूर्वांचल

  • July 06, 2022

    – सियाराम पांडेय ‘शांत’

    मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लगभग अपनी सभी सभाओं में कहा करते हैं कि मजबूत इच्छाशक्ति हो, नीति और नीयत साफ हो तो काम दमदार होता है और यह अभिकथन उत्तर प्रदेश में यथार्थ बनता नजर आ रहा है। अब यह प्रश्न प्रदेश नहीं, समाधान प्रदेश बनकर उभर रहा है। उत्तर प्रदेश के उत्तम प्रदेश में तब्दील होने की इस यात्रा में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनके सहयोगी मंत्रियों का श्रम नजर आता है। जब से उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी है, तब से आज तक बिना रुके, बिना थके और बिना झुके उन्होंने उत्तर प्रदेश के विकास रथ को अनवरत आगे बढ़ाया है। उनकी सोच रही है कि हर जिले में कम से कम एक मेडिकल कॉलेज तो होना ही चाहिए जिससे संबंधित जिले के लोगों को इलाज के लिए अनावश्यक भटकना न पड़े और यह कहने में शायद ही किसी को गुरेज हो कि उत्तर प्रदेश के हर 75 जिले में एक चिकित्सा महाविद्यालय का निर्माण हो रहा है। 58 जिलों में मेडिकल कॉलेज पहले ही बन चुके हैं। इस सरकार ने जहां प्रदेश के युवाओं के लिए उच्च शिक्षा के द्वार खोले हैं, वहीं प्रतियोगी परीक्षाओं में वे अन्य राज्यों के छात्रों से पीछे न रह जाएं। इसलिए हर जिले में मुख्यमंत्री अभ्युदय कोचिंग की भी व्यवस्था की है। इसके लिए राज्य सरकार के बजट में भी भारी भरकम धनराशि की व्यवस्था की गई है।

    गोरखपुर में महायोगी गुरु गोरक्षनाथ उत्तर प्रदेश राज्य आयुष विश्वविद्यालय खोलकर जहां उन्होंने भारत की परंपरागत चिकित्सा पद्धति को जीवंतता प्रदान की है, वहीं सैनिक स्कूल एवं गुरु गोरखनाथ विश्वविद्यालय की स्थापना कर पूर्वांचल को बड़ा शैक्षिक उपहार भी दिया है। आजमगढ़ में महाराजा सुहेलदेव राज्य विश्वविद्यालय की स्थापना को भी कमोवेश इसी आलोक में देखा-समझा जा सकता है। बीआरडी मेडिकल कॉलेज गोरखपुर में उच्चस्तरीय लैब एवं रिसर्च इंस्टीट्यूट खोलकर जहां उन्होंने पूर्वांचल की स्वास्थ्य चिंताओं का समाधान किया है, वहीं कोविडकाल में हर जिले के अस्पतालों को विशेष चिकित्सा सुविधाओं से जोड़ने, उन्हें आधुनिक बनाने और उन्हें विस्तार देने का काम भी युद्धस्तर पर किया है। गोरखपुर खाद कारखाना का पुनर्संचालन एवं विस्तारीकरण कर जहां उन्होंने किसानों की खाद की समस्या का समाधान किया है, वहीं बेरोजगारों के लिए भी रोजगार की बड़ी संभावनाओं का मार्ग प्रशस्त किया है।

    उन्होंने पूर्वांचल की सभी नदियों के तटबंध जहां पक्के कराए हैं। बांधों की स्थापना की। उनके कार्यकाल में ही केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार के प्रयास से 40 वर्षों से लंबित सरयू नहर राष्ट्रीय परियोजना पूर्णता को प्राप्त हुई। इससे पूर्वांचल के 12 जिलों के किसानों को भरपूर लाभ मिल रहा है। कहना न होगा कि ऐसा होने से वहां की जमीन की उत्पादन क्षमता अप्रत्याशित रूप से बढ़ गई है। मुंडेरवा और पिपराइच की चीनी मिलों का जहां पुनर्संचालन किया गया, वहीं उत्तर प्रदेश के सभी चीनी मिलों का आधुनिकीकरण और विस्तार किया गया। योगी सरकार को पता है कि किसी भी प्रदेश के विकास का दरवाजा खोलने के लिए बेहतर परिवहन व्यवस्था जरूरी होती है। सड़कें अच्छी हों तो व्यापार और व्यवहार दोनों ही में व्यापक सुधार होता है। पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे, बलिया लिंक एक्सप्रेस-वे, गोरखपुर लिंक एक्सप्रेस-वे, गंगा एक्सप्रेस-वे का निर्माण जनसरोकारों के प्रति उनकी गंभीरता को रेखांकित करता है।

    गोरखपुर, वाराणसी और प्रयागराज में मेट्रो परियोजना का काम शुरू हो चुका है। केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय की ओर से पूर्वांचल में सड़कों का जाल बिछाया जा चुका है। कुशीनगर में अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट का संचालन शुरू हो गया है। योगी राज में धार्मिक, सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक महत्व के स्थानों का कायाकल्प भी प्रमुखता से हुआ है। काशी, गोरखपुर, सारनाथ, चौरी चौरा, कुशीनगर आदि स्थलों पर पर्यटन विकास की सुविधाओं में इजाफा किया गया। गंगा यात्रा, देव दीपावली जैसे बड़े आयोजनों से जहां धार्मिक स्थलों के प्रति पर्यटकों का आकर्षण बढ़ा है, वहीं काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के निर्माण के उपरांत यहां आने वाले पर्यटकों की तादाद में आशातीत वृद्धि हुई है। उत्तर प्रदेश में जब दूसरी बार योगी सरकार बनी तो पूर्वांचल के नौ मंत्रियों को उसमें जगह मिली, यह इस बात का प्रमाण है कि योगी सरकार पूर्वांचल को लेकर कितनी गंभीर है। जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद यह कह रहे हैं कि हामारा विकास हार्वर्ड और कैम्ब्रिज नहीं करेंगे बल्कि हमें खुद पूर्वांचल के विकास की गौरवगाथा लिखनी होगी, हमें खुद आत्मनिर्भर बनना होगा। यह बड़ी बात है। इससे पहले उत्तर प्रदेश के किसी भी मुख्यमंत्री ने कभी भी पूर्वांचल को आत्मनिर्भर बनाने के बारे में सोचा नहीं था, इस तरह की बात जुबान पर लाना तो बिल्कुल अलग बात है।

    उन्होंने पूर्वांचल को देश की सबसे समृद्ध धरा बनाने का न केवल आह्वान किया है बल्कि इसके लिए स्थानीय युवाओं, किसानों और शिल्पकारो को जोड़ने की जरूरत पर भी बल दिया है। पूर्वांचल का सतत विकास: मुद्दे, रणनीति व भावी दिशा” विषयक तीन दिवसीय राष्ट्रीय वेबिनार में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बतौर मुख्य अतिथि कहा था कि पूर्वांचल के बारे में जान बूझकर एक सोच विकसित की गई कि पूर्वांचल गरीब और पिछड़ा है। जवाबदेही से बचने के लिए अकादमिक संस्थाओं ने भी इस पर ठप्पा लगा दिया। लिहाजा हमने भी उसी को स्वीकार कर लिया। सच इससे बिलकुल इतर है। पूर्वांचल में सब कुछ है, नौ तरह की कृषि जलवायु है। दुनिया की सबसे उर्वर भूमि है। प्रचुर मानव संसाधन है। भरपूर पानी है। वर्ष पर्यन्त बहने वाली गंगा-जमुना और सरयू सरीखी नदियां हैं। इनके आधार पर हम पूर्वांचल को देश का समृद्धतम इलाका बनाएंगे। यह काम हार्वर्ड और कैम्ब्रिज नहीं करेंगे, खुद करना होगा। यहां के युवाओं, किसानों और शिल्पकारो को जोड़कर करना होगा।

    मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जानते हैं कि उत्तर प्रदेश के सभी जिलों की एक खूबी है। इसी विशेषता को ब्रॉन्ड बनाने के लिए उन्होंने एक जिला एक उत्पाद योजना शुरू की है। और इसका लाभ संबंधित जिलों को मिल भी रहा है। भगवान राम, बुद्ध, अनेक जैन तीर्थंकर की जन्मभूमि और कर्मभूमि भी उत्तर प्रदेश का पूर्वांचल रहा है। याज्ञवल्क्य, वशिष्ठ, भृगु, जमदग्नि, परशुराम, अत्रि, दत्तात्रेय, दुर्वासा, मार्कण्डेय अगस्त्य, पतंजलि जैसे स्वनामधन्य ऋषियों-मनीषियों की जन्मभूमि पूर्वांचल रहा है। शिव महाप्राण में तो काशी में ही ब्रह्मा और विष्णु के जन्म का उल्लेख मिलता है। काशी पूरी दुनिया में ज्ञान विज्ञान की नगरी के रूप में प्रख्यात शहर रहा है। धन -वैभव के मामले में भी काशी दुनिया के किसी भी बड़े शहर को मात देती रही है। पूर्वांचल से ही योग पूरी दुनिया में फैला। यह योग के जनक गुरु गोरखनाथ की धरती है। पूर्वी उत्तर प्रदेश के प्रयागराज को सभी तीर्थों का राजा कहा जाता है। दुनिया का सबसे बड़ा सांस्कृतिक आयोजन कुंभ यहां सदियों से होता चला आ रहा है। दीपावली अगर अयोध्या की देन है तो देव दीपावली काशी की।भगवान बुद्ध से जुड़े 6 स्थलों में 5 पूर्वांचल में हैं। पूर्वांचल में आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और पर्यावरणीय पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं फिर पूर्वांचल विकास की दौड़ में पिछड़ क्यों गया? इसका जवाब एक ही है-राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव।

    मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हमेशा कहा है कि जवाबदेह लोगों को अपनी जवाबदेही समझनी होगी। हमें सफेद हाथी नहीं खड़े करने हैं, नतीजे देने हैं। योजनाएं एसी रूम में बैठकर नहीं, स्थानीय स्तर पर वहां के विशेषज्ञों से मिलकर वहां की जरूरतों के अनुसार बनानी होंगी। सरकार के मंत्री अगर सप्ताह के तीन दिन क्षेत्र में प्रवास कर रहे हैं। अधिकारी अगर ग्राम प्रवास के लिए निरंतर निर्देशित हो रहे हैं तो इसके पीछे यही सोच है। आज कोई यूपी के उपर प्रश्नचिह्न नहीं खड़ा कर सकता है। बकौल योगी आदित्यनाथ, 2014 के बाद से देश सशक्त बनकर उभरा है। पूर्वांचल की भी ऐसी ही स्थिति रही है। जो लोग पिछड़ा कहकर पूर्वांचल का शोषण-दोहन करते रहे हैं ,उन्हें आज सोचना पड़ रहा है।

    देश की संसद में पहली बार वर्ष 1962 में गाजीपुर के तत्कालीन सांसद विश्वनाथ गहमरी ने पूर्वांचल की बदहाली जिक्र किया था। ऐसा करते हुए न केवल गहमरी रोए थे बल्कि उनके साथ पूरी संसद की आंखों से आंसू टपके थे। इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने पूर्वांचल के विकास के लिए पटेल आयोग का गठन भी किया था। आयोग के सदस्यों ने दो साल तक पूर्वांचल का दौरा कर उसकी बदहाली की रिपोर्ट भी बनाई और 1964 में उसे सरकार को सौंपा भी लेकिन उस रिपोर्ट की सिफारिशें फाइलों में ही गुम होकर रह गईं। बाद में राज्य पुनर्गठन आयोग, केएम पणिक्कर आयोग ने भी पूर्वांचल की बदहाली दूर करने के लिए संस्तुतियां की लेकिन उनकी भी वही परिणति हुई। वर्ष 1991 में पूर्वांचल विकास निधि की स्थापना हुई, लेकिन न तो पूर्वांचल का पिछड़ापन दूर हुआ और न ही पूर्वांचल के माथे पर लगा बीमारू का ठप्पा हटा।यह और बात है कि वर्ष 2014 में केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार बनने के बाद पूर्वांचल के हालात बदलने शुरू हुए और जब 2017 में उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनी तो इस क्षेत्र में विकास के डबल इंजन लग गए। एक जिला एक उत्पाद योजना के तहत जहां पूर्वांचल के पारम्परिक उद्योगों को ग्लोबल पहचान मिली, वहीं फोरलेन, सिक्सलेन सड़कें बनीं। एक्सप्रेस-वे बने। औद्योगिक विकास व इंडस्ट्रियल कॉरिडोर बने। चिकित्सकीय सुविधाओं का विस्तार हुआ। पांच दशक से पूर्वांचल में कहर ढा रहे जापानी बुखार का उन्मूलन हुआ। किसानों की आय दोगुनी करने के पूर्वांचल में सुनियोजित व समन्वित प्रयास हुए। नई चीनी मिलों की स्थापना हुई तो पर्यटन समेत अन्य सेवा क्षेत्रों में विकास-विस्तार हुआ। प्राइमरी से लेकर उच्च, तकनीकी व मेडिकल शिक्षा के क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन हुए और इसका असर यह हुआ कि पूर्वांचल नई उमंग के साथ विकास की कुलांचे भरने लगा है।

    वर्ष 2017 में मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने इस इंडो-गंगेटिक बेल्ट की उर्वरता, प्रचुर मानव संसाधन, पारम्परिक उद्योगों से विकास की संभावनाओं को न केवल पहचाना बल्कि उसे नियोजित दिशा भी दी। योगी जानते हैं कि सड़कें विकास की बुनियादी जरूरत हैं। इसलिए उन्होंने केंद्र सरकार के सहयोग से पूर्वांचल में सड़कों का जाल बिछाने को अहमियत दी है। बंद चीनी मिलों को तो खोला ही है। नई चीनी मिलों की भी स्थापना की है। इससे किसानों की बांछे खिल गई हैं। गोरखपुर में बंद पड़ा खाद कारखाना न केवल खुल गया है बल्कि उससे उत्पादन भी शुरू हो गया है। इससे प्रदेश भर के अन्नदाताओं को काफी सहूलियत मिल रही है। हर जिले के एक विशिष्ट पारम्परिक उत्पाद को ओडीओपी में शामिल कर योगी सरकार ने पूर्वांचल में भी हर जिले को औद्योगीकरण की राह दिखाई है। एक्सप्रेस-वे के किनारे इंडस्ट्रियल कॉरिडोर बन रहा है। इससे पूर्वांचल का देश और प्रदेश के औद्योगिक मानचित्र पर चमकना लगभग तय माना जा रहा है। पर्यटन स्थलों का जिस तरह यहां कायाकल्प किया जा रहा है, उससे सेवा क्षेत्र में विकास और रोजगार की संभावनाएं बढ़ी है।

    मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सरकार बनने के पहले दिन से ही उत्तर प्रदेश को पर्यटन और हॉस्पिटैलिटी के क्षेत्र में देश में शीर्ष स्थान पर पहुंचाने की रही है। इस दिशा में योगी-01सरकार में इसी मकसद से नई पर्यटन नीति लाई गई। इसके तहत इस क्षेत्र में निवेश करने वालों को कई तरह की रियायतें दी गई। प्रयागराज के दिव्य एवं भव्य कुंभ, अयोध्या के दीपोत्सव, काशी के देवदीपावली की आक्रामक ब्रॉन्डिंग की गई।सरकार के इन लगातार प्रयासों का नतीजा सकारात्मक रहा। जीबीसी-3 में इस क्षेत्र के लिए आये लगभग 700 करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव इसके प्रमाण हैं। खास बात यह है कि पूर्वांचल में वाराणसी के अलावा गोरखपुर निवेशकों की नई पसंद बनकर उभरा है। तीसरे निवेशक सम्मेलन में इस सेक्टर में कुल 648 करोड़ रुपये के निवेश आए हैं जिसमें सिर्फ गोरखपुर को 153.8 करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव मिले हैं। इन प्रस्तावों में ऐशप्रा सॉल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड के 82.6 करोड़, कॉन्टिनेंटल डेवेलपर्स प्राइवेट लिमिटेड के 36.2 करोड़ और साकेतकुंज लैंडमार्क प्राइवेट लिमिटेड के 35 करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव शामिल हैं। गोरखपुर के बाद अगर किसी शहर का नंबर आता है तो वह है मेरठ। यहां इस क्षेत्र में 150 करोड़ रुपये का निवेश प्रस्ताव आया है। लेकिन यह सिर्फ एक प्रोजेक्ट के लिए है। पर्यटन को परवान चढ़ाने के लिए यूपी सरकार नित नए उपाय कर रही है। सरकार का उद्देश्य पिछली सरकारों के दौरान उपेक्षित रहे पूरे पूर्वांचल क्षेत्र को ही आगे बढ़ाने की है। गोरखपुर के साथ-साथ वाराणसी में भी 22.5 करोड़ रुपये का निवेश प्रस्ताव आया है। दोनों को जोड़ कर देखें तो पूर्वांचल के क्षेत्र में कुल 176.3 करोड़ रुपये का निवेश मिला है।

    कहना न होगा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पिछले कार्यकाल में पर्यटन विकास की करीब तीन हजार करोड़ रुपये की 1084 परियोजनाएं धरातल पर उतरी हैं। जबकि 2012 से 2017 तक मात्र 820 करोड़ की 222 परियोजनाएं ही धरातल पर उतर पाई थीं। कोरोना के बावजूद 2017 से 2021 तक प्रदेश में पर्यटकों की संख्या में 27 फीसदी का इजाफा हुआ है। प्रदेश में 125 करोड़ से अधिक भारतीय पर्यटक और सवा करोड़ से अधिक विदेशी पर्यटक आए हैं। पर्यटकों की संख्या बढ़ने के कारण प्रदेश में होटलों और कमरों की संख्या में भी इजाफा हुआ है। आंकड़े बताते हैं कि 2017 से 2019 तक होटलों में 45 सौ से अधिक नए कमरे बने थे। सम्प्रति उनमें इजाफा ही हो रहा है। पूर्वांचल जिस तरह शिक्षा, स्वास्थ्य,पर्यटन, विकास और जीवन के हर क्षेत्रों में द्रुत गति से आगे बढ़ रहा है, वह इस बात का प्रमाण है कि अब कोई भी उसके विकसित होने की राह में रोड़ा नहीं बन सकता। विकास के राजपथ पर उसकी सरपट दौड़ पूरे प्रदेश और यहां तक कि भारत के अन्य राज्यों को भी आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है।

    (लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं)।

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