नई दिल्ली। पंजाब (Punjab) की राजनीति में लंबे समय से जिसकी चर्चा थी, वो आखिर हो ही गया. कांग्रेस विधायक दल की बैठक (congress legislature party meeting) से पहले ही कैप्टन अमरिंदर सिंह (Captain Amarinder Singh) ने पंजाब के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है. 48 विधायकों के कथित तौर पर पार्टी आलाकमान को पत्र लिखकर उन्हें हटाने की मांग करने के बाद से ही इस्तीफे कि अफवाहें आने लगी थीं. इसके चलते पंजाब के पार्टी प्रभारी हरीश रावत ने कांग्रेस विधायक दल की बैठक बुलाई. बैठक से पहले ही अमरिंदर सिंह ने राज्यपाल से मुलाकात कर इस्तीफा सौंप दिया।
राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित को इस्तीफा सौंपने के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह (Captain Amarinder Singh) ने खुलकर कांग्रेस आलाकमान से अपनी नाराजगी जाहिर की. कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा कि मैंने आज सुबह ही इस्तीफा देने का फैसला कर लिया था. बीते एक महीने में जिस तरह से तीन बार विधायकों की मीटिंग दिल्ली और पंजाब में बुलाई गई थी, उससे साफ था कि आलाकमान को मुझ पर संदेह है. ऐसे में मैंने पद से इस्तीफा दे दिया है और पार्टी अब जिसे चाहे सीएम बना सकती है. इसके अलावा उन्होंने भविष्य की राजनीति के विकल्प खुले होने की बात कहकर पार्टी छोड़ने के भी संकेत दे दिए हैं. आइए जानते हैं उन 5 वजहों के बारे में जिसके कारण अमरिंदर सिंह को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा।
अपनों ने छोड़ा कैप्टन का साथ
कैप्टन के कई पूर्व वफादारों ने भी उनका साथ छोड़ दिया. उदाहरण के लिए तृप्त राजिंदर बाजवा, सुखजिंदर रंधावा और सुखबिंदर सरकारिया जैसे नेता – जिन्हें एक साथ ‘माझा एक्सप्रेस’ के रूप में जाना जाता है, क्योंकि वे इस क्षेत्र से आते हैं. माझा एक्सप्रेस ने कैप्टन को बाजवा के खिलाफ गुटीय संघर्ष जीतने में मदद की थी. लेकिन इस बार उन्होंने भी कैप्टन का साथ छोड़ दिया क्योंकि उन्हें एहसास हो गया था कि अगर कैप्टन के साथ बने रहे तो वो हार सकते हैं।
कैप्टन तक पहुंचना था मुश्किल
कैप्टन के खिलाफ सबसे बड़ी शिकायतों में से एक थी कि उन तक पहुंच पाना मुश्किल है. उन्हें शायद ही कभी विधायकों से मिलते या जनता तक पहुंचते देखा गया और वो ज्यादातर मोहाली के पास अपने फार्महाउस से ही काम-काज संचालित करते थे. पार्टी विधायकों की अक्सर शिकायत रही कि कैप्टन ने उनके अनुरोधों और याचिकाओं पर कार्रवाई नहीं की और ज्यादातर समय नौकरशाहों पर भरोसा करते थें।
सर्वे में घटती दिखी कैप्टन की लोकप्रियता
कैप्टन की अप्रूवल रेटिंग उनके कार्यकाल के मुश्किल से दो साल में ही गिरने लगी. 2019 की शुरुआत कैप्टन की लोकप्रियता 19 फीसदी थी और 2021 की शुरुआत में ये गिरकर 9.8 फीसदी हो गई।
कैप्टन के धुर विरोधी कहे जाने वाले नवजोत सिंह सिद्धू ने यहां पर नंबर गेम खेला. नवजोत सिंह सिद्धू तीन मंत्रियों की माझा ब्रिगेड – तृप्त राजेंद्र सिंह बाजवा, सुखबिंदर सरकारिया और सुखजिंदर रंधावा को कैप्टन के खिलाफ खड़ा कर दिया. कई मौकों पर, उन्होंने आलाकमान को पत्र भेजे और यहां तक कि सोनिया गांधी के साथ दर्शकों की मांग भी की. हालांकि जून में तीन सदस्यीय खड़गे पैनल ने सभी विधायकों से मुलाकात के बाद जुलाई में सिद्धू को पीपीसीसी प्रमुख नियुक्त किया था, लेकिन दोनों खेमे एक साथ काम नहीं कर सके. आखिरकार पंजाब में कांग्रेस के 80 में से 40 विधायकों ने आलाकमान को पत्र लिखकर विधायक दल की बैठक बुलाने की मांग की. सूत्रों का कहना है कि कैप्टन ने कोशिश की, लेकिन वो विधायकों की संख्या को अपने पक्ष में पूरा करने में नाकामयाब रहे।
कैप्टन की गिरती लोकप्रियता से कांग्रेस आलाकमान अलर्ट
कैप्टन की गिरती लोकप्रियता ने भी पार्टी आलाकमान के कान खड़े कर दिए. कांग्रेस ने पिछले कुछ महीनों में कई राज्यों में राज्य ईकाई के अध्यक्षों को बदला है. तेलंगाना में रेवंत रेड्डी, महाराष्ट्र में नाना पटोले और केरल में के सुधाकरन जैसे बेहद सक्रिय और लोकप्रिय नेताओं को पीसीसी चीफ बनाया है. माना जा रहा है कि पार्टी अब नए सिरे से तैयारी में जुटी गई है. बताया जा रहा है कि इन बदलावों के पीछे राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का हस्तक्षेप है. पंजाब में भी जून में नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब कांग्रेस चीफ बनाया गया. आलाकमान ये मानकर चल रहा था कि सिद्धू और अमरिंदर सिंह मिलकर काम करेंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं और अंत में कैप्टन को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा।
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