भोपाल। मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग ने सहायक प्राध्यापक के पदों पर भर्ती के लिए जारी की गई विज्ञप्ति में अजीब सी शर्त रखी थी। जिसको लेकर हाईकार्ट में चुनौती दी गई। न्यायालय ने पीएससी को नोटिस तलब कर जवाब मांगा है।
मप्र लोक सेवा आयोग की शर्त के अनुसार इस भर्ती परीक्षा के दौरान वरीयता के अंक केवल उन अथिति प्राध्यापकों को दिए जाएंगे जिन्होंने वर्ष 2019-20 में अथिति प्राध्यापकों के रूप में अध्यापन कराया है। इसके पहले और बाद में पढ़ाने वालों को इसका लाभ नहीं मिलेगा। इस मामले में उच्च न्यायालय ने लोक सेवा आयोग से चार सप्ताह में जवाब मांगा है।
मप्र उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ में लोक सेवा आयोग के विज्ञापन की शर्तों के बाद कुछ प्रतिभागियों ने चुनौती दी थी। इस मामले में जस्टिस प्रणय वर्मा की अदालत में सुनवाई के दौरान याचिका कर्ता मुश्ताक खान, खुशबू पुरोहित, मीनल व अन्य की ओर से पक्ष रखा गया कि प्रदेश में ऐसे कई कालेज हैं जहां सालों से बड़ी संख्या में युवा अथिति प्राध्यापकों के तौर पर पढ़ा रहे हैं। उनके द्वारा सहायक प्राध्यापक के स्थायी पदों पर भर्ती के लिए आवेदन किया गया है, लेकिन लोक सेवा आयोग की यह शर्त जिसमें सिर्फ एक साल पढ़ाने वालों को लाभ देने की बात कही गई है, युवाओं के साथ ठगी जैसे और अन्यायपूर्ण है। ऐसी व्यवस्था में कम अनुभवी व्यक्ति को वरीयता अंक का लाभ मिलेगा, जबकि सालों से पढ़ा रहे युवा इस लाभ से वंचित रह जाएंगे। इसके बाद न्यायालय ने मप्र लोक सेवा आयोग से जवाब-तलब किया है।