बंगलूरू। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने मंगलवार को एलान किया कि सात साल से ज्यादा समय पहले रिकॉर्ड 104 उपग्रहों का प्रक्षेपण करने वाले पीएसएलवी-37 रॉकेट के ऊपरी चरण यानी पीएस4 ने पृथ्वी के वायुमंडल में फिर से प्रवेश कर लिया है।
कभी बैलगाड़ी पर सैटेलाइट ले जाने वाला इसरो एक साथ 104 सैटेलाइट लांच कर दे तो इसे विश्व में अजूबा ही माना जाएगा। भारतीय वैज्ञानिकों ने साल 2017 में न सिर्फ ये अजूबा सच करके दिखा दिया था बल्कि विश्व रिकॉर्ड भी बनाया था, सर्वोत्तम स्पेस एजेंसी मानी जाने वाली नासा भी भारत की इस उपलब्धि पर दंग रह गई थी। पीएसएलवी-सी37 अपनी 39 वीं उड़ान में 104 सैटेलाइट अपने साथ लेकर गया था, इसमें संयुक्त राज्य अमेरिका की सर्वाधिक 96 सैटेलाइट थीं।
अब इसी को लेकर इसरो ने कहा कि उपग्रहों के निष्क्रियता के बाद ऊपरी चरण को लगभग 470 x 494 किमी आकार की कक्षा में छोड़ दिया गया था। बाद में इसे रोजाना ट्रैक किया गया। इससे सामने आया की इसकी कक्षीय ऊंचाई धीरे-धीरे कम होती जा रही थी। मुख्य रूप से वायुमंडलीय प्रभावों के कारण इसकी ऊंचाई पर असर पड़ा था।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने बताया, इस साल सितंबर से, आईएस4ओएम (सुरक्षित और सतत अंतरिक्ष संचालन प्रबंधन के लिए इसरो सिस्टम) ने अपनी नियमित गतिविधियों के हिस्से के रूप में नियमित रूप से कक्षा की निगरानी की और अक्तूबर के पहले सप्ताह में वायुमंडल में फिर से प्रवेश की भविष्यवाणी की थी। आखिरकार ऐसा ही हुआ। इसने छह अक्तूबर को फिर से प्रवेश किया। इसका प्रभाव बिंदु उत्तरी अटलांटिक महासागर में है।
इसने यह भी बताया, ‘प्रक्षेपण के आठ सालों के अंदर रॉकेट का वायुमंडल में फिर से प्रवेश अंतरराष्ट्रीय मलबा शमन दिशा-निर्देशों, विशेष रूप से अंतर-एजेंसी अंतरिक्ष मलबा समन्वय समिति के दिशा-निर्देशों के अनुरूप है, जो मिशन के बाद पृथ्वी की निचली कक्षा में निष्क्रिय वस्तु के कक्षीय जीवन को 25 वर्षों तक सीमित करने की सिफारिश करता है।’
इसरो ने कहा कि यह आवश्यकता एक निष्क्रियता अनुक्रम को उचित रूप से डिजाइन करके पूरी की गई थी, जिसने पेलोड के जुड़ने के बाद पीएस4 की कक्षा को कम कर दिया था। वर्तमान में, यह सुनिश्चित करने के लिए विशेष पहल की जा रही है कि पीएसएलवी के ऊपरी चरणों के अवशिष्ट कक्षीय जीवनकाल को इंजन को पुनः चालू करके सक्रिय रूप से निचली ऊंचाई वाली कक्षाओं में हटाकर पांच वर्ष या उससे भी कम किया जाए, जैसा कि पीएसएलवी-सी38, पीएसएलवी-40, पीएसएलवी-सी43, पीएसएलवी-सी56 और पीएसएलवी-सी58 मिशनों में किया गया है।
इसमें कहा गया कि भविष्य के पीएसएलवी मिशनों में ऊपरी चरण के निपटान के लिए ऊपरी चरण के नियंत्रित पुनःप्रवेश की भी परिकल्पना की गई है। यह भी कहा गया है कि इसरो वर्ष 2030 तक मलबा मुक्त अंतरिक्ष मिशन के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए सक्रिय उपायों को लागू करना जारी रखेगा।
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