उज्जैन। नगर निगम द्वारा जीआईएस सर्वे के बाद संपत्तियों को सूचीबद्ध किया गया था लेकिन अभी तक आधी संपत्तियों के टैक्स भी जमा नही हुए..पिछले वर्ष की जो वसूली हुई थी, उसी में 3 करोड़ रुपए अभी बाकी हैं और बचे हुए 40 दिनों में वसूली करना है। इस वित्तीय वर्ष के 40 दिन और बचे हैं और संपत्ति कर का पिछले वर्ष का आंकड़ा छूने के लिए भी अभी साडे 3करोड़ रुपए से अधिक की वसूली करनी है। ऐसे में नगर निगम का संपत्ति कर विभाग काफी पिछड़ा हुआ है। नगर निगम के संपत्ति कर विभाग में शहर की एक लाख 25 हजार के करीब संपतिया दर्ज है और कर वसूली के मामले में देखा जाए तो अभी आधी संपत्ति उसे भी वसूली नहीं हो पाई है। कल तक जो आंकड़े सामने आए हैं उनमें 125000 संपत्तियों में से मात्र 47249 संपत्तियों का ही कर नगर निगम के पास जमा हुआ है नगर निगम के पास 17 फरवरी तक 23 करोड़ 92 लाख 84 हजार 416 यूपीए अब तक जमा हुए हैं जबकि पिछले वर्ष कोरोना की दूसरी लहर के बावजूद नगर निगम ने करोड़ रुपएकी वसूली की थी। इस साल कोरोना का इतना प्रभाव भी नहीं है, इसके बावजूद नगर निगम की वसूली कम हो रही है। इस संबंध में नगर निगम के अधिकारी बताते हैं कि नगर निगम के कर्मचारियों की ड्यूटी अन्य सर्वे आदि में लगाई जाती है इसके चलते संपत्ति कर का काम प्रभावित होता है। अब आने वाले दिनों में लोक अदालत से उम्मीद है क्योंकि हर लोक अदालत में 3 से 4 करोड रुपए की वसूली होती है। वैसे नगर निगम संपत्ति कर में हर बार पिछड़ा हुआ ही रहता है क्योंकि वित्तीय वर्ष में जो लक्ष्य किया जाता है, उसके अनुसार 30 से 35 प्रतिशत ही संपत्ति कर की वसूली हो पाती है। इस बार तो यह आंकड़ा फिलहाल 24 से 25 प्रतिशत पर ही पहुंचा है। ऐसे में लगता है कि पिछले साल का आंकड़ा छूने में भी संपत्ति कर के मामले में नगर निगम को काफी मशक्कत करना पड़ेगी। उल्लेखनीय की संपत्ति कर बढ़ाने के लिए जीआइएस सर्वे कराया जा रहा है, लेकिन इस सर्वे को भी पूरा साल होने को आया है अभी तक 89 वार्डों में ही यह सर्वे हो पाया है। ऐसे में 54 वार्डों में यह सर्वे कब तक हो पाएगा और संपत्ति कर का आंकड़ा 50 करोड़ कब तक पहुंचेगा, यह कहना अभी मुश्किल है। नगर निगम की आय का सबसे बड़ा साधन संपत्ति कर ही है।
स्मार्ट सिटी बन गई लेकिन टैक्स की वसूली वही पुराने ढर्रे से
होना यह चाहिए कि जो संपत्ति मालिक टैक्स जमा नहीं करता है उस पर कड़ी कार्रवाई होना चाहिए तथा उनके नल कनेक्शन काटे जाने चाहिए लेकिन पुराने ढर्रे से ही वसूली हो रही है और नगर निगम के तृतीय श्रेणी कर्मचारियों को ही इसकी जिम्मेदारी दी गई है जिन्हें कोई गंभीरता से नहीं लेता।
जल कर वसूलने में भी फिसड्डी
नगर निगम का पीएचई विभाग वैसे भी प्रशासन का सफेद हाथी है क्योंकि यहां पर जितना खर्च होता है उसका 50 प्रतिशत भी वसूल नहीं हो पाता है। जल प्रदाय में पानी को प्लांट पर लाने और उसका शुद्धिकरण करने में करोड़ों रुपया खर्च होता है और इस राशि के बदले जल प्रदाय की राशि मासिक रूप से वसूली जाती है। हर वर्ष पीएचई से वसूली का लक्ष्य 20 करोड़ रुपए के आसपास तय किया जाता है लेकिन वसूली सात करोड़ ही हो पाती है। वर्ष 7 करोड़ 76 लाख रुपए वसूले थे लेकिन इस बार 17 फरवरी तक पीएचई ने जलकर की 5 करोड़ 60 लाख रुपये की राशि वसूली है जो पिछले वर्ष से दो करोड़ 16 लाख रुपए कम है। पिछले साल का आंकड़ा छूने के लिए पीएचई को अभी यह राशि 40 दिन में वसूलनी है। बिल जारी किए जा रहे हैं और शिविर लगाकर कनेक्शन भी काटने का काम चलाया जाएगा। अधिकारियों के अनुसार वसूली में इस अंतिम माह में सख्ती की जाएगी।
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