नई दिल्ली: मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव की औपचारिक घोषणा भले ही न हुई हो, लेकिन चुनाव की सियासी बिसात पर राजनीतिक चालें चली जाने लगी हैं. बीजेपी अपनी सत्ता को बचाए रखने की जंग लड़ रही है तो कांग्रेस सत्ता में वापसी की जद्दोजहद में जुटी है. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी पूरे दमखम के साथ चुनावी रण में उतर चुकी हैं. महाकौशल के बाद प्रियंका गांधी ग्वालियर-चंबल इलाके को साधने के लिए शुक्रवार को पहुंच रही हैं, जहां जनसभा को संबोधित करने से पहले रानी लक्ष्मीबाई की समाधि स्थल पर पहुंचकर उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण करेंगी.
ग्वालियर-चंबल का इलाका कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थामने वाले केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का गढ़ माना जाता है. सिंधिया के बीजेपी में शामिल होने के बाद ग्वालियर-चंबल इलाके पर कांग्रेस की नजर है. ऐसे में प्रियंका गांधी का रानी लक्ष्मीबाई समाधि स्थल से ग्वालियर-चंबल इलाके में कांग्रेस के चुनावी अभियान शुरू करने के पीछे कई सियासी मकसद है. इस तरह प्रियंका ने सीधे ज्योतिरादित्य सिंधिया को टारगेट करने की रणनीति बनाई है और रानी लक्ष्मीबाई के प्रति अपना समर्पण दिखाकर सिंधिया परिवार को निशाने पर रखने की रणनीति है.
रानी लक्ष्मीबाई का सिंधिया परिवार का कनेक्शन
मध्य प्रदेश में 15 साल के बाद साल 2018 में सत्ता में लौटी कांग्रेस के 15 महीने में बेदखल होने का मलाल कमलनाथ से लेकर दिग्विजय सिंह सहित कांग्रेस के राज्य और राष्ट्रीय स्तर के नेताओं को अब भी है. यही वजह है कि कांग्रेस के तमाम बड़े नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया पर सीधे निशाने पर लेने से चूकते नहीं हैं. इतना ही नहीं सिंधिया और उनके समर्थकों को पार्टी से बगावत करने के चलते कांग्रेसी नेता उन्हें गद्दार की संज्ञा भी देते आ रहे हैं. यही नहीं सिंधिया राजवंश के शासकों पर 1857 की क्रांति के दौरान रानी लक्ष्मीबाई का सहयोग न करने और अंग्रेजों के साथ देने का आरोप लगते रहे हैं. ऐसे में सिंधिया कांग्रेस छोड़कर बीजेपी खेमे में खड़े हैं तो कांग्रेस भी अब सीधे उन्हें टारगेट पर लेने जा रही हैं.
प्रियंका की रैली से सियासी संदेश देने की रणनीति
ग्वालियर-चंबल इलाके में प्रियंका गांधी एक बड़ी जनसभा को संबोधित करेंगी. प्रियंका की सभा में बड़ी तादाद में कार्यकर्ताओं को जुटाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है. कांग्रेस की रणनीति प्रियंका गांधी के जरिए सिंधिया के गढ़ में अपना शक्ति प्रदर्शन दिखाकर बीजेपी को बैकफुट पर ढकेलने की है. इसीलिए प्रियंका गांधी के कार्यक्रम की रूप रेखा में रानी लक्ष्मीबाई की समाधि स्थल जाकर माल्यार्पण करने की है और उसके बाद रैली को संबोधित करने की है. ऐसे में साफ है कि प्रियंका गांधी रानीलक्ष्मी बाई के जरिए सिंधिया परिवार को फिर से कठघरे में खड़े करने की कोशिश करेंगी और 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के द्वारा बगावत करने का भी जिक्र कर सकती हैं. पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह तो पहले ही कह चुके हैं कि सिंधिया का 1857 में गढ़ ढह गया था और अब एक बार फिर गढ़ ढहने वाला है.
सत्ता का रास्ता ग्वालियर से होकर गुजरता
मध्य प्रदेश की राजनीति में ग्वालियर-चंबल का इलाका किसी किंगमेकर की भूमिका से कम नहीं है. 2018 के विधानसभा चुनाव में ग्वालियर-चंबल संभाल इलाके की 34 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस 26, बीजेपी 7 और बसपा एक सीट जीती थी. इस तरह मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता में वापसी में ग्वालियर-चंबल इलाके की मुख्य भूमिका रही थी, लेकिन कांग्रेस से जीते विधायकों की बगावत ने कमलनाथ सरकार के हटने की वजह भी बने थे. सिंधिया के जाने के बाद कांग्रेस अब ग्वालियर के इलाके में अपने दम पर खड़े होने की कवायद में जुटी है, जिसके चलते ही सिंधिया के करीबी नेताओं की पार्टी में वापसी भी कराई गई है.
ग्वालियर-चंबल में बीजेपी के मजबूत चेहरे
ग्वालियर-चंबल का इलाका सिंधिया परिवार का ही नहीं बल्कि केंद्रीय मंत्री नरेंद्र तोमर, बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा, शिवराज सरकार के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा और प्रभात झा जैसे बीजेपी के दिग्गज नेताओं का भी गढ़ माना जाता है. बीजेपी ये तमाम बड़े नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके पिता माधवराव सिंधिया के खिलाफ सियासत करते रहे हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में आने से ग्वालियर-चंबल रीजन के पार्टी नेता कशमकश की स्थिति में हैं, क्योंकि सिंधिया अकेले नहीं आए हैं बल्कि अपने समर्थक नेताओं की फौज लेकर आए हैं. ऐसे में बीजेपी के पुराने नेताओं को अपने सियासी भविष्य की भी चिंता सता रही हैं, जिन्हें कांग्रेस अपने साथ मिलाने की रणनीति पर काम कर रही है. इस मिशन की जिम्मेदारी दिग्विजय सिंह के कंधों पर है.
ग्वालियर-चंबल दलित बेल्ट
मध्य प्रदेश के ग्वालियर-चंबल इलाके को अनुसूचित जाति मतदाता का बड़ा प्रभाव है. ग्वालियर-चंबल इलाके की 34 सीटों में से 7 सीट दलित वर्ग के लिए आरक्षित हैं, लेकिन बाकी सीटों पर भी उनका प्रभाव है. इसीलिए बसपा इस इलाके में दर्ज करती रही है. इस पूरे रीजन में 20 फीसदी दलित मतदाता है. इस तरह हर एक सीट पर 25 से 55 हजार दलित मतदाता हैं. कांग्रेस ने दलित मतदाताओं को साधने के लिए दलित नेताओं की लीडरशिप तैयार की हैं, जिसमें देवाअशीष, भूलसिंह बरैया और सुरेश राजे जैसे नेता शामिल हैं. प्रियंका गांधी का दौरे का फोकस भी दलित मतदाता है और उन्हीं के इर्द-गिर्द अपनी बात रख सकती हैं. दलितों के मुद्दों को भी प्रियंका गांधी उठाकर शिवराज सरकार को घेर सकती हैं?
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