नई दिल्ली: एक तरफ देश कोरोना रोधी वैक्सीन की कमी से दो चार हो रहा है तो वहीं दूसरी सरकारी आंकड़ों से साफ हो रहा है कि प्राइवेट अस्पतालों के पास इसका अच्छा खासा स्टॉक मौजूद है. केंद्र सरकार के आंकड़ों के अनुसार पिछले महीने में प्राइवेट अस्पतालों में केवल 17 फीसदी खुराक का ही इस्तमाल किया गया था.
इसके बाद भी उनके पास बड़े पैमाने पर वैक्सीन का स्टॉक बचा हुआ है. सरकार द्वारा जारी प्रेस रिलीज के अनुसार देश भर में वैक्सीन की 7.4 करोड़ खुराकें उपलब्ध कराई गईं थी, जिसमें से प्राइवेट अस्पतालों को 1.85 डोज दी गईं थीं. मई के महीने में इन प्राइवेट अस्पतालों को 1.29 खुराक उपलब्ध कराई गई थी, जिसमें से सिर्फ 22 लाख टीकों का इस्तेमाल हुआ है.
विशेषज्ञों का मानना है कि सरकारी अस्पतालों की मुकाबले, प्राइवेट अस्पतालों में वैक्सीन ऊंचें दामों में बेची जा रही है. इसी कारण लोग प्राइवेट अस्पतालों में वैक्सीन लगवाने में लोगों में हिचकिचाहट देखने को मिल रही है. विडंबना यह है कि कम उपयोग की स्वीकृति का उल्लेख सरकारी प्रेस विज्ञप्ति में मीडिया रिपोर्टों का खंडन करने के लिए किया गया है कि केवल 7.5 प्रतिशत जैब्स का उपयोग किया जा रहा था.
सरकारी विज्ञप्ति में कहा गया है, “कुछ मीडिया रिपोर्टों में उल्लेख किया गया है कि ‘निजी अस्पतालों को 25 प्रतिशत खुराक आवंटित की गई हैं, लेकिन वे कुल डोज का केवल 7.5 प्रतिशत हिस्सा ही हैं’. ये रिपोर्ट सटीक नहीं हैं और उपलब्ध आंकड़ों से मेल नहीं खाती हैं.”
इस महीने की शुरुआत में सरकार ने विपक्ष के मुनाफाखोरी के आरोपों के बीच कोविड टीकों के लिए निजी अस्पतालों द्वारा ली जाने वाली अधिकतम कीमत तय की थी. कोविशील्ड की कीमत 780 प्रति खुराक, रूसी वैक्सीन स्पुतनिक वी की कीमत 1,145 प्रति खुराक और स्वदेशी रूप से निर्मित कोवैक्सिन की कीमत 1,410 प्रति खुराक पर तय की गई है. इसमें टैक्स के साथ-साथ अस्पतालों के लिए 150 रुपये का सर्विस चार्ज भी शामिल है.
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