नई दिल्ली। दिल्ली ही नहीं देश में इस बार 18 से 44 साल तक लोगों के टीकाकरण के मामले में सरकारी सेंटर्स ही ज्यादा सक्रिय हैं। वहीं कुछ हेल्थ सेक्टर्स के बडे अस्पतालों में टीकाकरण चल रहा है जबकि मझोले या छोटे किस्म के अस्पताल में अभी भी दवाई नहीं पहुंच रही है। दिल्ली और एनसीआर में 18 साल से44 के लोगों के लिए टिकाकरण में केंद्र सरकार की वेबसाइट पर जैसे ही हम जाते हैं दिल्ली के सरकारी स्कूलों पर बने सेंटर्स के बार में जानकारी मिल जाती है वहां थोड़ी परेशानी के बाद रजिस्ट्रेशन भी हो जाता है।
दिल्ली एनसीआर के किसी भी हिस्से में रहने वालों की पहली कोशिश होती है कि किसी निजी अस्पताल में टिका लगवाया जाएं। यह एक विश्वास की बात है और 45 साल और 60 साल के उम्र को लोगों को जब सुई लगी तो लोग सबसे पहले निजी अस्पताल को ही चुन रहे थे और आसानी से वहा बुकिंग या फिर जाकर सुई लगवा रहे थे।
छोटे अस्पतालों के लिए वैक्सीन खरीदना हो रहा मुश्किल
इस बार तीसरे चरण में हाल बिल्कुल उलट हो गया है दिल्ली और देश के बड़े-बड़े अस्पतालों के चेन वाले ही कोवैक्सिन हो या कोविशिल्ड के टीकाकरण अपने यहां करवा रहे हैं। लेकिन अब तक जो अस्पताल ज्यादा सक्रिय थे अब उनके पास कुछ भी नहीं है। धर्मशीला अस्पताल के डायरेक्टर डाक्टर अंशुमान कुमार बताते हैं कि सरकार के कुप्रबंधन के कारण ही दिक्कतें आई हैं। पहले जो टीका हमारे पास 45 और 60 वर्षों के लिए थी उसे भी वापस ले लिया गया है। सरकार पीछे हट गई है अब कंपनी से सीधे हमें खरीदना है इसकी कीमत से लेकर तमाम चीजों का हमे ध्यान रखना पड़ रहा है। इसलिए बड़े अस्पताल ही वैक्सीनेशन कर रहे हैं।
पहले ही दिया जाना चाहिए था युवाओं को टीका
छोटे अस्पतालों को या तो टीका मिल नहीं पा रही है या फिर कोस्टिंग ज्यादा पड़ रही है। श्रीकुमार के मुताबिक सरकार ने इन युवाओं का टिकाकरण कराने में बहुत देर लगा दी है हमने एक साल पहले ही कहा था कि सबसे पहले युवाओं को ही टीका दिया जाए और उन्हें मैदान में उतारा जाए तो देश की यह हालत नहीं होती।
विदेशी कंपनियों की दवाओं के लिए दरवाजा खोले सरकार
देश में अभी 90 फिसदी दवाएं गंभीर बीमारी के लिए विदेशी कंपनी से ही हम खरीदते हैं इसलिए अब हमारी सरकार विदेशी कंपनियों को अपने देश में दवा लाने की अनुमति दे रही है। जितनी जल्दी हो सके उन दवाओं के लिए निजी अस्पतालों को भी इसकी अनुमति दी जानी चाहिए। क्योंकि देश में तकरीबन 10 फीसदी ऐसी आबादी है जो महंगी से महंगी दवा खरीद सकती है। उनके निजी अस्पताल में जाने से सरकार पर भी दवाब कम बढ़ेगा।
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