भोपाल। जंगलों के उजडऩे के बाद उन्हें संवारने में सरकार की बड़ी रकम खर्च हो रही है। इसके बावजूद जितने पौधे हर साल लगाए जाते हैं उसमें कुछ ही जीवित रह पाते हैं। लगातार बढ़ते खर्च को देखते हुए अब वन विभाग ने तय किया है कि वनों में हरियाली बढ़ाने की जिम्मेदारी निजी क्षेत्र की कंपनियों को सौंपी जाएगी। इसके लिए सरकार ने वन भूमि को लीज पर देने के नियमों में संशोधन कर दिया है। साथ ही वन मुख्यालय का पत्र प्रदेशभर के सीसीएफ और डीएफओ के पास पहुंच चुका है जिसमें क्षेत्र के वनों की वर्तमान स्थिति मांगी गई है। कंपनियों के साथ अनुबंध करने की जिम्मेदारी सरकार ने अभी अपने पास ही रखी है, वहीं से तय होगा कि जिलों के जंगलों की रखवाली आने वाले समय में कौन करेगा।
आय का 60 प्रतिशत लाभ कंपनी को
वन मुख्यालय के पत्र में कहा गया है कि बिगड़े वनों को निजी निवेश के सहयोग से विकसित किया जाना है। निजी कंपनियां या संस्थाएं जिन्हें वन क्षेत्र की जिम्मेदारी दी जाएगी वह स्थानीय वन समितियों और विभाग के सहयोग से वहां पर पौधरोपण कराएंगी और वहां के वन क्षेत्र की रखवाली करेंगी। इससे तैयार होने वाली लकड़ी से जो आय होगी उसमें 60 प्रतिशत हिस्सेदारी संबंधित कंपनी और शेष 40 प्रतिशत हिस्सा वन समिति या विभाग का होगा। विभाग का कहना है कि निजी कंपनियों से जो आय प्राप्त होगी उसका आधा हिस्सा वन समितियों को दिया जाएगा। विभाग ने कहा है कि 30 वर्ष तक की लीज दी जाएगी। बताया गया है कि इसमें वन्यप्राणियों से जुड़े और वन विकास निगम द्वारा प्रतिबंधित किए गए क्षेत्र को छोड़कर सभी जंगलों की स्थिति मांगी गई है।
वनों के प्रकार
वन मंत्रालय ने मध्यप्रदेश में पेड़ों और वनों के घनत्व को तीन भागों में बांटा है। शून्य से एक तक इसका मानक तय किया गया है। जिसके तहत 0.4 तक घनत्व के एरिया को खुला या बिगड़ा वन कहा जाता है। 0.5 से 0.7 तक के घनत्व को मीडियम वन क्षेत्र और 0.8 या उससे अधिक के घनत्व पर सघन घनत्व का वन माना जाता है। केन्द्र सरकार की रिपोर्ट में रीवा जिले में स्थित पेड़ों का औसत घनत्व 0.8 माना गया है।
चयन का यह मापदंड किया गया है निर्धारित
वन मुख्यालय के पत्र में डीएफओ से कहा गया है कि प्रथम चरण में अज्छी संभावनाओं वाले वनों का चयन किया जाएगा। इसमें यह देखा जाएगा कि 60 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र 0.2 घनत्व से कम वाला हो। एक स्थान पर 500 से एक हजार हेक्टेयर क्षेत्र की वर्किंग यूनिट बनाई जा सके। एक यूनिट का क्षेत्र दस किलोमीटर के दायरे में होगा। संबंधित क्षेत्र अतिक्रमण मुक्त होना चाहिए। वन के नजदीक यदि राजस्व भूमि है तो कलेक्टर के सहयोग से उसे भी प्रोजेक्ट में शामिल किया जा सकता है। मुनारों की स्थिति का भी परीक्षण किया जाएगा।
निजी निवेश पर देने के ये कारण बताए गए
वनों को निजी निवेश पर देने का कारण भी वन मुख्यालय ने स्पष्ट किया है। जिसमें कहा गया है कि अल्पावधि स्थानीय समुदाय को रोजगार में वृद्धि करने और दीर्घावधि में प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित आजीविका को सुदृढ़ करना है। काष्ठ आधारित उद्योगों को स्थानीय उत्पाद उपलब्ध कराकर आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को प्राप्त करना भी है। जलवायु परिवर्तन की दिशा में सकारात्मक कदम बढ़ाते हुए हरियाली की मात्रा बढ़ाई जानी है।
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