टीसीएस-इन्फोसिस के जमीन आवंटन की पर्दे के पीछे की कहानी… अग्निबाण की जुबानी… बिना नीति बनाए जरूरत से ज्यादा कौडिय़ों के दाम दे डाली बेशकीमती जमीनें
इंदौर , राजेश ज्वेल
10 साल पहले जब टीसीएस (TCS) और इन्फोसिस (Infosys) को जमीन आवंटन (Land Allotment) की प्रक्रिया चल रही थी उस वक्त सिर्फ अग्निबाण ने ही जरूरत से ज्यादा जमीन आवंटन पर सवाल खड़े किए थे और 26 अप्रैल 2011 को छपी खबर में यह मुद्दा भी उठाया था कि जब अम्बानी 270 करोड़ की जमीन प्राधिकरण (Authority) से टेंडर ( Tender) के जरिए खरीद सकते हैं तो टाटा क्यों नहीं..? इतना ही नहीं, तत्कालीन आवास एवं पर्यावरण विभाग के प्रमुख सचिव इकबालसिंह बैस (Iqbal Singh Bais) जो कि अब मुख्य सचिव हैं, ने बकायदा नोटशीट पर इन आवंटनों का विरोध किया और स्पष्ट कहा कि दर्शाई प्रक्रिया में पारदर्शिता का पूर्णत: अभाव है और रियायती दर पर जमीन देने से पहले नीति यानी पॉलिसी बनाई जाना चाहिए मगर तब प्रमुख सचिव के विरोध को दरकिनार करते हुए मुख्यमंत्री ने सुपर कॉरिडोर (Super Corridor) पर 230 एकड़ जमीन इन दोनों कम्पनियों के लिए नपवा डाली और तब 2 से ढाई करोड़ एकड़ की जमीन मात्र 20 लाख रुपए प्रति एकड़ पर देने का कैबिनेट निर्णय भी कर दिया। अब वही मुख्यमंत्री 230 एकड़ आवंटित जमीन की जांच कलेक्टर से करवा रहे हैं। दरअसल ये दोनों आईटी कंपनियां इंदौर के विकास के लिए अत्यंत जरूरी भी थी लेकिन शासन ने जरूरत से ज्यादा जमीन आवंटन की गलती की अन्यथा इतनी जमीन में आईटी पार्क बन जाता और देश की अन्य कम्पनियां भी यहां आती और आईटी हब का सपना साकार होता ..लेकिन सरकार सिर्फ टीसीएस और इन्फोसिस पर ही पूरी तरह से मेहरबान रही…इन दोनों आईटी कंपनियों के जमीन आवंटन के पर्दे के पीछे की असल कहानी इस तरह है…!
इंदौर में 2007 में पहली ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट का आयोजन किया गया, जिसमें रियल इस्टेट से जुड़े कारोबारियों ने हजारों करोड़ के बोगस एमओयू साइन किए, वहीं इंदौर को आईटी हब बनाने का सपना भी दिखाया गया। इन्फोसिस के फाउंडर नारायण मूर्ति फरवरी 2009 में इंदौर एक कार्यक्रम में शामिल होने आए, तब उनसे जब पूछा गया कि इंदौर में इन्फोसिस कब आएगी..? तब उन्होंने कहा-अभी मंदी का समय है और इंदौर को अपनी बारी का इंतजार करना पड़ेगा, लेकिन मुख्यमंत्री लगातार नारायण मूर्ति को इंदौर आने के लिए मनाते रहे और जब सुपर कॉरिडोर इंदौर विकास प्राधिकरण ने तैयार किया, तो उस पर आईटी कम्पनियों को लाने का विचार सामने आया। नतीजतन टीसीएस और इन्फोसिस को सुपर कॉरिडोर पर लाने का निर्णय लिया गया , लेकिन दिक्कत यह आई कि प्राधिकरण सीधे किसी निजी कम्पनी को जमीन बिना टेंडर रियायती दर पर आबंटित नहीं कर सकता था। लिहाजा नई सूचना प्रौद्योगिकी नीति तैयार की गई और शासन ने अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए प्राधिकरण से जमीन हासिल की और फिर इन दोनों कम्पनियों को 20 लाख रुपए प्रति एकड़ की दर से आवंटित करने का निर्णय लिया, जिसका अनुमोदन 28 दिसम्बर 2011 की कैबिनेट बैठक में किया गया और सुपर कॉरिडोर पर 100-100 एकड़ जमीन टीसीएस और इन्फोसिस को देने की सैद्धांतिक सहमति हुई। हालांकि इन्फोसिस ने बाद में 30 एकड़ जमीन और हासिल कर ली। इसी बीच तत्कालीन प्रमुख सचिव आवास एवं पर्यावरण इकबालसिंह बैस ने इस तरह जमीन आबंटन पर आपत्ति ली। उन्होंने अपनी नोटशीट पर स्पष्ट लिखा कि सूचना प्रौद्योगिकी नीति में निजी निवेशकों को सरकारी जमीन रियायती दरों पर आबंटित करने का प्रावधान है, मगर प्राधिकरण की जमीन सरकारी नहीं है। लिहाजा, रियायती दर पर देने से पहले नीतिगत निर्णय लिया जाना चाहिए । इस नोटशीट में बिन्दु क्र. 4 में यह भी कहा गया कि प्रश्नाधीन भूमि आपसी करार के माध्यम से प्राप्त की गई , लिहाजा यह जमीन भी अधिग्रहण की परिभाषा में ही आएगी। वहीं नोटशीट के बिन्दु क्र. 5 में स्पष्ट कहा गया कि संक्षेपिका में दर्शाई प्रक्रिया में पारदर्शिता का पूर्णत: अभाव है। इतनी वृहद रियायत देने की शासकीय मंशा का व्यापक प्रचार-प्रसार होना चाहिए, ताकि टीसीएस जैसी अन्य कम्पनियां ऐसे लाभ को प्राप्त करने के अवसर से वंचित ना रहे यानी प्रमुख सचिव का स्पष्ट मत था कि अन्य आईटी कम्पनियों को भी इस तरह का लाभ प्राप्त करने का अधिकार है और बकायदा नीतिगत निर्णय लिया जाना चाहिए। प्रमुख सचिव की इस नोटशीट के बाद वल्लभ भवन में हलचल मच गई। चूंकि मुख्यमंत्री दोनों आईटी कम्पनियों को जमीन उपलब्ध करवाने के लिए उतावले थे, लिहाजा उन्होंने सूचना प्रौद्योगिकी विभाग के जरिए आगे की प्रक्रिया पूरी करवाई। उस दौरान इस विभाग के विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी अनुराग श्रीवास्तव थे और मुख्य सचिव अवनी वैश्य थे, जिन्होंने मंत्री परिषद् के आदेश के पालन में टीसीएस और इन्फोसिस को सुपर कॉरिडोर पर जमीन उपलब्ध करवाने के निर्णय पर मोहर लगाई और प्राधिकरण की क्षति की भरपाई राज्य शासन द्वारा करने का निर्णय लिया। उस मीटिंग में मौजूदा तत्कालीन प्रमुख सचिव सचिव श्री बैस की आपत्तियों को दरकिनार करते हुए मुख्यमंत्री ने दो टूक कहा कि दोनों आईटी कम्पनियां इंदौर में आएगी और इन्हें जमीन आवंटित करने का निर्णय लिया जा चुका है और उन्होंने सूचना प्रौद्योगिकी विभाग को उस पर अमल करने के निर्देश दे दिए। यानी तत्कालीन प्रमुख सचिव की आपत्तियों को दरकिनार करते हुए मुख्यमंत्री ने सुपर कॉरिडोर पर 230 एकड़ जमीन टीसीएस और इन्फोसिस के लिए नपवा डाली। इतना ही नहीं, इन दोनों कम्पनियों के भूमिपूजन समारोह में भी मुख्यमंत्री शामिल हुए मगर 10 सालों बाद भी 230 एकड़ के विशाल परिसरों को पूरी तरह से इन कम्पनियों ने विकसित नहीं किया, इन्फोसिस ने 130 एकड़ में से मात्र 11 एकड़ और टीसीएस ने 100 में से 33 एकड़ जमीन का ही उपयोग किया है। जिसके चलते कलेक्टर मनीष सिंह ने दी गई जमीन का पूरा उपयोग ना करने, लीज शर्तों के उल्लंघन के चलते इन दोनों कम्पनियों को नोटिस भी जारी किए हैं और इनसे अनुपयोगी जमीन वापस देने को भी कहा है। इतना ही नहीं, कलेक्टर ने लीज डीड शर्तों, किए गए निवेश, स्थानीय लोगों को दिए गए रोजगार सहित अन्य जानकारी हासिल के लिए टीम भी गठित कर दी, जिसका जिम्मा संयुक्त कलेक्टर प्रतुल्ल सिन्हा को सौंपा गया।
प्राधिकरण दफ्तर में लगा था पंजीयन विभाग
मुख्यमंत्री चूंकि फटाफट टीसीएस और इन्फोसिस को जमीनें आवंंटित करना चाहते थे, लिहाजा पूरी सरकारी मशीनरी उसमें भिड़ गई। किसानों को पकड़-पकडक़र अनुबंध प्राधिकरण ने करवाए। उस वक्त प्राधिकरण सीईओ चंद्रमौली शुक्ला थे और वर्तमान सीईओ विवेक श्रोत्रिय एसडीओ हुआ करते थे। श्री श्रोत्रिय ने ही इन जमीनों के मालिक किसानों को घर जाकर मनाया और बदले में विकसित भूखंड देने के अनुबंध भी करवाए। भोपाल में चूंकि कैबिनेट की मीटिंग में यह प्रस्ताव रखना था, लिहाजा ताबड़तोड़ प्राधिकरण ने जमीन हासिल कर शासन को सौंपी और बकायदा प्राधिकरण दफ्तर में ही पंजीयन विभाग को रजिस्ट्रियों के लिए बैठाया गया। किसानों को गाडिय़ों में बैठाकर प्राधिकरण दफ्तर लाया गया और वहीं पर उनकी रजिस्ट्रियां करवाई गई। उस वक्त वरिष्ठ जिला पंजीयक डॉ. श्रीकांत पांडे हुआ करते थे, वे खुद प्राधिकरण दफ्तर में अपने स्टाफ के साथ बैठे और तत्कालीन कलेक्टर राघवेन्द्रसिंह के निर्देशन में देर रात तक रजिस्ट्रियां करवाई गई।
अग्निबाण के पास नोटशीट सहित सारे दस्तावेज उपलब्ध
टीसीएस और इन्फोसिस को जरूरत से ज्यादा जमीन आवंटन का मुद्दा 10 साल पहले उस वक्त भी अग्निबाण ने प्रमुखता से उठाया था। मगर जमीन लुटाने के लिए एक टांग पर खड़े शासन-प्रशासन ने एक नहीं सुनी, उलटे जो मीडिया आज प्रमुखता से टीसीएस और इन्फोसिस द्वारा इतनी जमीन का इस्तेमाल ना करने और रोजगार सहित अन्य मुद्दे उठा रहा है, उसी ने इंदौर को लंदन, सिंगापुर से लेकर आईटी हब बनाने के सपने दिखाए और जमीनी कारोबारियों को तगड़ा फायदा भी करवाया क्योंकि ऐसी चमकदार खबरों से ही डायरियों पर माल बिक गया। तत्कालीन प्रमुख सचिव इकबालसिंह बैस की नोटशीट से लेकर मुख्य सचिव द्वारा कैबिनेट के आदेश और सूचना प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा दिए गए आदेशों सहित अन्य महत्वपूर्ण दस्तावेज अग्निबाण के पास मौजूद हैं, जिससे साफ जाहिर होता है कि उस दौरान इन दोनों आईटी कम्पनियों को जमीन आवंटन के मामले में किस तरह नियमों को ताक पर रख उतावलापन दिखाया गया और चार गुना अधिक जमीनें आवंटित कर दी ।
प्रमुख सचिव की आपत्ति
तत्कालीन प्रमुख सचिव द्वारा नोटशीट पर ली गई आपत्ति के अंश…जिसमें साफ कहा गया था कि जमीन आवंटन की प्रक्रिया में पारदर्शिता का पूर्णत: अभाव है ।
सबसे ज्यादा जमीन इंदौर में
उल्लेखनीय है कि देशभर में टीसीएस और इन्फोसिस के जितने भी कैम्पस हैं, उनमें इतनी विशाल जमीन कहीं पर भी उपलब्ध नहीं है। मगर शासन मेहरबान हुआ तो इन दोनों दिग्गज आईटी कम्पनियों ने कौडियों के नाम बेशकीमती जमीनें कबाड़ ली। टीसीएस को 100 एकड़ जमीन मात्र 20 करोड़ में और इन्फोसिस को 130 एकड़ जमीन मात्र 26 करोड़ में मिल गई। जबकि ये 230 एकड़ जमीन आज 1 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा कीमत की है और जिस वक्त आबंटित की गई थी, तब भी 500 करोड़ से अधिक इन जमीनों का मूल्य था।
आधी जमीन में काम हो जाता
इन कंपनियों को इतनी जमीन की आवश्यकता ही नहीं है और 50-60 एकड़ में ही दोनों कंपनियों का काम हो जाता , खण्डवा रोड स्थित आईटी पार्क मात्र 13 एकड़ पर है और वहा कई आईटी कंपनियां काम कर रही है और 5 हजार से ज्यादा को रोजगार दे रखा है लेकिन दोनों दिग्गज कंपनियों ने प्रदेश सरकार के साथ ही जनता को भी धोखा दिया
जमीन की वापसी आसान नहीं
हालांकि जानकारों का कहना है कि इन दिग्गज आईटी कम्पनियों से अतिरिक्त जमीन वापस लेना शासन-प्रशासन के लिए इतना आसान नहीं होगा और मुख्यमंत्री पर ही ऊपर से दबाव आ जाएगा। अब देखना यह है कि जांच की यह पूरी कवायद किसी नतीजे पर पहुंचती है या सिर्फ कागजी खानापूर्ति बनकर रह जाएगी।
डायरियों पर बेच डाला जमीनी जादूगरों ने कई गुना माल
टीसीएस और इन्फोसिस के फोटो दिखाकर जमीनी जादूगरों ने डायरियों पर कई गुना माल सुपर कॉरिडोर का बेच डाला। किसानों से इन कालोनाइजरों ने भी धड़ाधड़ जमीनी अनुबंध किए और अखबारों में बड़े-बड़े विज्ञापन और मौके पर शिविर लगाकर माल बेचा। उस वक्त यह स्थिति थी कि हर दिन और हर घंटे सुपर कॉरिडोर की जमीनों के भाव सट्टे या शेयर बाजार की तरह बढ़ाए जा रहे थे। उस दौरान लगातार सुपर कॉरिडोर पर भोपाली अफसर, मंत्री या टीसीएस और इन्फोसिस के अधिकारियों के दौरे हो रहे थे और मीडिया भी इंदौर को आईटी हब बनाने के लिए उतावला था, उसने जमकर इन दौरों का कवरेज किया, जिसके चलते हर घंटे सुपर कॉरिडोर की जमीनों के भाव जादूगरों द्वारा बढ़ाए जाते रहे और ढेर सारे प्रापर्टी ब्रोकर भी बाजार में छोड़ दिए, जिन्होंने डायरियों पर ही माल बुक कर लिया और बाद वाले खरीददार आज तक रो रहे हैं क्योकि इनमें से अधिकांश कालोनियां आज तक विकसित नहीं हो सकी और गुब्बारे की तरह बढ़ाये भाव या तो गिर गए या स्थिर हो गए । आज तक कॉरिडोर पर अन्य कोई प्रोजेक्ट भी फाइनल शेप नहीं ले पाया ।
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