– गजेंद्र सिंह शेखावत
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ‘कचरे से कंचन’ का विचार अब देश में साकार हो रहा है। प्रधानमंत्री ने 2014 में लाल किले की प्राचीर से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती पर 02 अक्टूबर से खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) भारत के निर्माण का आह्वान लोगों से किया था। इसके लिए सरकार ने स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम) का आगाज किया । अब यह सिर्फ सरकारी कार्यक्रम नहीं है। यह जनांदोलन का रूप ले चुका है। परिणाम दुनिया के सामने है। 02 अक्टूबर, 2019 तक 110 मिलियन शौचालयों का निर्माण हुआ। 550 मिलियन ग्रामीण आबादी को घरेलू स्वच्छता सुविधाएं प्राप्त हुईं। देश ने ओडीएफ का लक्ष्य हासिल किया।
इसी साल प्रधानमंत्री को उल्लेखनीय रूप से बेहतर स्वास्थ्य परिणामों और उसके बाद के आर्थिक लाभ के लिए बिल एंड मेलिंडा गेट फाउंडेशन के ग्लोबल गोल कीपर्स अवार्ड से सम्मानित किया गया। स्वस्थ राष्ट्र ही सशक्त राष्ट्र होता है। प्रधानमंत्री के मजबूत और दूरदर्शी नेतृत्व में एसबीएम ने भारत को दुनिया की पांचवीं अग्रणी अर्थव्यवस्था बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यूनिसेफ ने स्वतंत्र अध्ययन में स्वीकार किया है कि ओडीएफ गांवों में रहने वाले औसत परिवार ने प्रति वर्ष 50,000 रुपये का संचयी लाभ अर्जित किया और नए शौचालय वाले घरों के संपत्ति मूल्य में एक बार के लिए 19,000 रुपये की वृद्धि हुई। औसतन नए घरेलू शौचालयों की कुल लाभ लागत से 4.7 गुना अधिक देखने को मिली।
इस साल (2022) गांधी जयंती पर स्वच्छ भारत दिवस मनाने के साथ एसबीएम अपने दूसरे चरण में प्रवेश कर गया। ओडीएफ की उपलब्धि के बाद अब ओडीएफ प्लस के लिए प्रयास शुरू हो गए हैं। आइए इसे आसान शब्दों में समझते हैं- एसबीएम-जी के चरण II, ‘ओडीएफ प्लस’ के मुख्य उद्देश्यों में शामिल हैं- शौचालयों के निर्माण और उपयोग से आगे बढ़कर समग्र सार्वभौमिक स्वच्छता की दिशा में शौचालयों का निरंतर उपयोग; हमारे घरों व समुदायों से उत्पन्न जैविक रूप से अपघटित होने वाले और गैर-अपघटित रहने वाले कचरे सहित ठोस एवं तरल अपशिष्ट का पर्यावरण-अनुकूल और आर्थिक रूप से व्यवहार्य प्रबंधन और परिणामतः स्वच्छ परिवेश का निर्माण आदि। यह ‘संपूर्ण स्वच्छता’ के गांधीवादी सिद्धांतों के अनुरूप है और ठोस व तरल अपशिष्ट प्रबंधन (एसएलडब्ल्यूएम) के लिए समर्पित और विशिष्ट तकनीकी उपायों के माध्यम से स्वच्छता मिशन के चरण II के हिस्से के रूप में आजीविका के अवसरों के सृजन से जुड़े हमारे उद्देश्य का भी समर्थन करता है।
देश के हजारों गांवों में, ठोस अपशिष्ट का प्रबंधन अब घरेलू स्तर पर कचरे को गीले एवं सूखे कचरे में अलग-अलग करके और घर-घर जाकर इसके संग्रहण के जरिए से किया जा रहा है। पंचायतों और महिला स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) को कंपोस्टिंग और जहां संभव हो वहां बायोगैस के उत्पादन के जरिए गीले कचरे के प्रबंधन के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है। यह भगीरथ प्रयास बाद में आय सृजन का साधन बनते हैं। घरों और विभिन्न संस्थानों से निकले प्लास्टिक कचरे का प्रबंधन गांवों में फॉरवर्ड लिंकेज की व्यवस्था के साथ संग्रहण एवं अलगाव केंद्रों के जरिए किया जा रहा है। प्लास्टिक कचरे को टुकड़ों में बांट करके उसे उपयुक्त रूपों में परिवर्तित कर दिया जाता है। इससे इसका सड़क निर्माण और सीमेंट कारखाने जैसी गतिविधियों में इस्तेमाल संभव हो पाता है। इस क्रम में आजीविका का सृजन होता है।
उदाहरण के लिए कर्नाटक के वंदसे की ग्राम पंचायत में खाद एवं एकत्र किए गए सूखे कचरे की बिक्री से प्रति माह लगभग 88,000 रुपये मिलते हैं। इसी तरह 100 केएलडी की क्षमता वाली जल शोधन प्रणाली की सहायता से हरियाणा के कुरक जागीर की ग्राम पंचायत में शोधित अपशिष्ट जल के जरिए मछली पालन से सालाना लगभग एक लाख रुपये जुटाए गए हैं। ग्रामीण भारत से रोजाना सामने आने वाली ऐसी कई कहानियों के ये दो प्रतिनिधि उदाहरण हैं। ऐसी खुशहाल तस्वीरें भी ‘कचरे से कंचन’ का विचार को फलीभूत कर रही हैं। ऐसे ही विकल्पों में से एक गोवर्धन योजना भी है। हमारे गांवों को रसोई से निकलने वाले बचे हुए खाद्य पदार्थों, फसलों के अवशेष और बाजार के कचरे सहित पशु एवं अन्य जैव-अपशिष्टों के प्रबंधन की चुनौती का सामना करना पड़ता है। इस पीड़ा को समझते हुए प्रधानमंत्रीने ‘कचरे से कंचन’ बनाने का विचार दिया। इसका ईमानदारी से कार्यान्वयन किया गया।
नतीजतन गोवर्धन योजना से 125 जिलों में लगे 333 गोवर्धन संयंत्र न सिर्फ खाना पकाने के लिए स्वच्छ ईंधन प्रदान कर रहे हैं, बल्कि अनगिनत घरों में रोशनी बिखेर रहे हैं। साथ ही कुछ लोगों के लिए नौकरी और आय का स्रोत भी सृजित कर रहे हैं। यह वास्तव में एक ‘अपशिष्ट से धन’ की प्रणाली है जो जैव-अपघटित कचरे को संग्रहित करने और कचरे को संसाधनों में बदलने, जीएचजी उत्सर्जन को कम करने व कच्चे तेल के आयात पर हमारी निर्भरता को कम करने, उद्यमशीलता को सुदृढ़ करने और जैविक खेती को बढ़ावा देने में मदद करती है।
घरेलू अपशिष्ट जल (शौचालय से निकलने वाले पानी को छोड़कर), जिन्हें तकनीकी रूप से ‘गंदला पानी’ (ग्रे वाटर) कहा जाता है, के प्रबंधन के लिए सुजलम 1.0 और सुजलम 2.0 अभियान की शुरुआत यह सुनिश्चित करने के उद्देश्य से की गई थी कि तालाब, झील और नदी जैसे मूल्यवान ग्रामीण प्राकृतिक जल संसाधनों को इस किस्म का अपशिष्ट जल दूषित नहीं करे। मलयुक्त गाद के प्रबंधन के लिए हम राज्यों को सभी एकल-पिट वाले शौचालयों को दोहरे-पिट वाले शौचालयों में बदलने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। इनमें शोधन की सुविधा अंतर्निहित होती है। सेप्टिक टैंक जैसे अन्य प्रकार के शौचालयों के लिए मलयुक्त गाद के शोधन संयंत्रों में सेप्टेज और मल अपशिष्ट के संग्रह, परिवहन व शोधन सहित मलयुक्त गाद की प्रबंधन प्रणाली स्थापित करने पर फोकस किया गया है। इसके अलावा लोगों को सुरक्षित स्वच्छता प्रणालियों और तौर-तरीकों को अपनाने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान चलाए जा रहे हैं।
इसके लिए ‘स्वच्छता ही सेवा (एसएचएस)’ अभियान के परिणाम धरातल पर नजर आने लगे हैं। एसबीएम के तहत वार्षिक स्वच्छता पखवाड़ा मनाया जाता है। बहुत पुराने कचरे या अपशिष्ट एवं कचरे की भरमार वाले स्थलों की सफाई कर अच्छा जीवन देने की कोशिश की जा रही है। कचरा निकलने वाले स्थल पर ही उसका पृथक्करण सुनिश्चित करने में कामयाबी के प्रमुख सूत्र कचरा संग्रह एवं पृथक्करण शेड, कचरा संग्रह वाहनों का काफिला, घर-घर जाकर गैर-जैवकीय कचरे का संग्रह, जल स्रोतों को साफ रखना, पौधरोपण, एकल उपयोग वाली प्लास्टिक (एसयूपी) पर लगाए गए प्रतिबंध को लागू करवाना हैं। इस वर्ष 2 करोड़ से भी अधिक लोगों ने श्रमदान कर एसएचएस 2022 में हिस्सा लिया और 4,60,000 से अधिक पुराने कचरे के ढेरों की पहचान कर उन्हें साफ किया।
पिछले ढाई वर्ष के हासिल पर गर्व है। 1.14 लाख से भी अधिक गांवों ने स्वयं को ‘ओडीएफ प्लस’ घोषित कर कर प्रधानमंत्री के विचार को साकार किया है। लगभग तीन लाख गांवों ने ‘ओडीएफ प्लस’ बनने की अपनी यात्रा शुरू करठोस व तरल कचरा निपटान कार्य खुद शुरू कर दिया है। इसके तहत मुख्य लक्ष्य छह लाख ‘ओडीएफ प्लस’ गांवों को बनाना है। प्रधानमंत्री का सपना है कि इस समग्रता में ग्रामीण भारत में रहने वाले लोगों को रोजगार मिले और उनकी आय का स्तर बढ़े। तो आइए, बिना एक पल गंवाए हम सब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व में देश के जिम्मेदार और गौरवान्वित नागरिक के रूप में ‘स्वच्छता से स्वावलंबन’ के अभियान की यात्रा में शामिल हो जाएं।
(लेखक, केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री हैं।)
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