नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगस्त महीने के आखिरी रविवार यानी आज 30 अगस्त को मन की बात (Mann Ki Baat) कार्यक्रम के जरिए देश को संबोधित किया। इस दौरान पीएम ने देश को एक बार फिर आत्मनिर्भर भारत का संदेश दिया। प्रधानमंत्री मोदी ने खिलौना इंडस्ट्री से आह्वान किया के वे आगे आएं और देश को आत्मनिर्भर बनाने में अपनी भूमिका अदा करें। मन की बात में पीएम मोदी ने कहा कि कोरोना काल में नागरिकों में अपने दायित्वों का अहसास है। हर तरह के उत्सवों में लोग संयम बरत रहे हैं. देश में हो रहे हर आयोजन में जिस तरह का संयम और सादगी इस बार देखी जा रही है, वो अभूतपूर्व है।
पीएम मोदी ने कहा कि हम बहुत बारीकी से अगर देखेंगे, तो एक बात अवश्य हमारे सामने आएगी- हमारे पर्व और पर्यावरण. इन दोनों के बीच एक बहुत गहरा नाता है। बिहार के पश्चिमी चंपारण में सदियों से थारू आदिवासी समाज के लोग 60 घंटे के लॉकडाउन, उनके शब्दों में ’60 घंटे के बरना’ का पालन करते हैं. प्रकृति की रक्षा के लिए बरना को थारू समाज के लोगों ने अपनी परंपरा का हिस्सा बना लिया है और ये सदियों से है। पीएम मोदी ने कहा कि आम तौर पर ये समय उत्सव का है. जगह-जगह मेले लगते हैं, धार्मिक पूजा-पाठ होते हैं. कोरोना के इस संकट काल में लोगों में उमंग और उत्साह तो है ही, मन को छू लेने वाला अनुशासन भी है।
पीएम मोदी की बड़ी बातें…
– कोरोना काल में नागरिकों में अपने दायित्वों का एहसास | हर तरह के उत्सवों में लोग संयम बरत रहे हैं |
– देश में हो रहे हर आयोजन में जिस तरह का संयम और सादगी इस बार देखी जा रही है, वो अभूतपूर्व है|
– बिहार के पश्चिमी चंपारण में, सदियों से थारु आदिवासी समाज के लोग 60 घंटे के लॉकडाउन या उनके ही शब्दों में कहें तो ’60 घंटे के बरना’ का पालन करते हैं|
– हमारे देश में इस बार खरीफ की फसल की बुआई पिछले साल के मुकाबले 7 प्रतिशत ज्यादा हुई है। मैं इसके लिए देश के किसानों को बधाई देता हूं, उनके परिश्रम को नमन करता हूं|
– किसानों की शक्ति से ही तो हमारा जीवन, हमारा समाज चलता है। हमारे पर्व किसानों के परिश्रम से ही रंग-बिरंगे बनते हैं|
– वैसे मैं ‘मन की बात’ सुन रहे बच्चों के माता-पिता से क्षमा मांगता हूं क्योंकि हो सकता है, उन्हें अब ये ‘मन की बात’ सुनने के बाद खिलौनों की नई-नई डिमांड सुनने का शायद एक नया काम सामने आ जाएगा|
– खिलौने जहां ऐक्टिविटी को बढ़ाने वाले होते हैं, तो खिलौने हमारी आकांक्षाओं को भी उड़ान देते हैं। खिलौने केवल मन ही नहीं बहलाते, खिलौने मन बनाते भी हैं और मकसद गढ़ते भी हैं|
– बच्चों के जीवन के अलग-अलग पहलू पर खिलौनों का जो प्रभाव है, इस पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी बहुत ध्यान दिया गया है। खेल-खेल में सीखना, खिलौने बनाना सीखना, खिलौने जहां बनते हैं वहां की विजिट करना, इन सबको करिकुलम का हिस्सा बनाया गया है|
– अब सभी के लिए लोकल खिलौनों के लिए वोकल होने का समय है। आइए, हम अपने युवाओं के लिये कुछ नए प्रकार के अच्छी क्वालिटी वाले खिलौने बनाते हैं|
– खिलौना वो हो जिसकी मौजूदगी में बचपन खिले भी, खिलखिलाए भी। हम ऐसे खिलौने बनाएं, जो पर्यावरण के भी अनुकूल हों|
– हमारे देश में इतने आइडियाज हैं, इतने कॉन्सेप्ट्स हैं, बहुत समृद्ध हमारा इतिहास रहा है। क्या हम उन पर गेम्स बना सकते हैं?
– मैं देश के युवा टैलंट से कहता हूं, आप भारत में भी गेम्स बनाइए और भारत के भी गेम्स बनाइए। कहा भी जाता है |
– पूरे देश में सितम्बर महीने को पोषण माह (न्यूट्रिशन मंथ) के रूप में मनाया जाएगा। नेशन और न्यूट्रिशन का बहुत गहरा सम्बन्ध होता है । हमारे यहाँ एक कहावत है- ‘यथा अन्नम तथा मन्न्म’ यानी जैसा अन्न होता है, वैसा ही हमारा मानसिक और बौद्धिक विकास भी होता है |
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