कल शाम जब भोपाल को सावन अलगारों बौछारों से भिगो रिया था, उसी वखत एनडीटीवी भोपाल के रिजिड़ेंट एडिटर अनुराग द्वारी को गांधी भवन में लोकजतन अवार्ड से नवाजा जा रिया था। जनवादी विचारों की पत्रिका लोकजतन असली और रेडिकल सहाफियों (पत्रकारों) को ही ये अवार्ड देती है। अभी तक भोपाल के लज्जाशंकर हरदेनिया, बस्तर के कमल शुक्ला, ग्वालियर के राम विद्रोही को ही ये अवार्ड मिला है। ग्वालियर के जानेमाने जनवादी मरहूम शैलेन्द्र शैली की जयंती पे ये अवार्ड अता किया जाता है। इंडियन एक्सप्रेस और बीबीसी की साबिक़ एडिटर सीमा चिश्ती ने अनुराग द्वारी को लोकजतन अवार्ड दिया। चिश्ती ने आज की बिकाऊ पत्रकारिता पे सवाल उठाए। अवार्ड से नवाजे गए अनुराग द्वारी ने बताया कि उनकी 22 बरस की सहाफत में ये पहला अवार्ड है। उन्ने इस अवार्ड को दूसरे कारपोरेट अवार्डों से कहीं बेहतर बताया। दरअसल अनुराग द्वारी की सहाफत का अंदाज़े बयां दूसरे तमाम सहाफियों से एकदम हटके हेगा। खासतौर से टीवी चैनलों की चूहा दौड़ से बिल्कुल अलग है ये बंदा। खामखां की चिल्लाचोट, गदर, कांव कांव किलकिल इनकी पेशकश में नहीं होता। इसके बरक्स अनुराग अपनी बात बहुत संजीदगी और नफासत से कह जाते हैं। खासतौर से सरकारी कारगुज़ारी और लापरवाहियों पे इनकी खबरें लाजवाब करने वाली होती हैं। एनडीटीवी के रिजिड़ेंट एडीटर अनुराग द्वारी की खोजी और मैदानी खबरें हम अक्सर रवीश कुमार के प्राइम टाइम में देखते हैं।
इनकी खबरें बरहमेश करप्ट सिस्टम पे गहरा वार करती हैं। गोया के इनके यहां प्रायोजित या भड़ैती वाली खबरों को नो लिफ्ट है। अनुराग इसी लिए किसी मंत्री संतरी या पावर कोरीडोर्स में नहीं पाए जाते। इसके बजाय वो किताबे पढऩे, अच्छी फिल्म या थियेटर देखना पसंद करते हैं। भोपाल आने से पहले अनुराग ने कोई 14 बरस मुम्बई में एनडीटीवी के लिए काम किया। वैसे अनुराग ने माखनलाल यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता की डिग्री ली है। इसके बाद ये जामिया इस्लामिया मिलिया दिल्ली में पीजी करने चले गए थे। कुछ अरसा ये दिल्ली आकाशवाणी और पीटीआई में भी रहे। इस मौके पे लोकजतन के कार्यकारी संपादक रामप्रकाश त्रिपाठी, संध्या शैली और पलाश सुरजन ने भी अपनी बात रखी। मुबारक हो अनुराग मियां। आगे आपको और भी अवार्ड मिलें सूरमा येई दुआ करता है।
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