तेहरान। ईरान में राष्ट्रपति चुनाव(Presidential election in Iran) का माहौल अब गरमाने लगा है। मैदान में जो दावेदार उतरे हैं, उनमें पूर्व राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद(Former President Mahmoud Ahmadinejad) भी हैं। उनके अलावा ईरान के एक पूर्व प्रधान न्यायाधीश (A former Chief Justice of Iran) और संसद के एक पूर्व स्पीकर(A former speaker of parliament) ने भी मैदान में उतरने का एलान किया है। राष्ट्रपति चुनाव(Presidential election) के लिए मतदान अगले 18 जून को होगा। उसमें मौजूदा राष्ट्रपति हसन रूहानी के उत्तराधिकारी का निर्वाचन होगा। ईरान के संविधान के मुताबिक कोई व्यक्ति लगातार दो कार्यकाल से अधिक से राष्ट्रपति नहीं रह सकता। इसलिए इस बार रूहानी उम्मीदवार नहीं हैं।
हसन रूहानी की छवि उदारवादी नेता की रही है। 2015 में उनकी सरकार ने ही अमेरिका और पांच अन्य देशों के साथ बहुचर्चित ईरान परमाणु समझौते पर दस्तखत किए थे। पर्यवेक्षकों को आशंका यह है कि यह अगर इस बार कोई कट्टरपंथी नेता राष्ट्रपति चुना गया, तो उससे ईरान और पश्चिमी देशों के संबंधों में नए टकराव पैदा हो सकते हैँ। अहमदीनेजाद को ऐसा ही कट्टरपंथी नेता समझा जाता है। रूहानी से पहले वे लगातार दो बार ईरान के राष्ट्रपति चुने गए थे। लेकिन 2009 में उनके चुनाव पर अंगुलियां उठी थीं और उनके खिलाफ देश में कई दिनों तक जोरदार विरोध प्रदर्शन हुए थे। अहमदीनेजाद के कार्यकाल में पश्चिमी देशों के साथ ईरान का संबंध टकराव भरा रहा था।
अहमदीनेजाद ने 2017 के चुनाव में भी अपनी उम्मीदवारी घोषित की थी। लेकिन तब उन्हें चुनाव लड़ने से रोक दिया गया था। ईरान के संविधान के मुताबिक सभी उम्मीदवारों के दावे पर पहले एक गार्जियन परिषद विचार करती है। वह जिनके नाम पर मुहर लगाती है, वे ही असल में चुनाव में उतर पाते हैं। इस बार अपनी उम्मीदवारी पेश करते हुए अहमदीनेजाद ने कहा कि अगर फिर उन्हें चुनाव लड़ने से रोका जाता है, तो वे चुनाव का विरोध करेंगे और मतदान भी नहीं करेंगे। लेकिन जानकारों के मुताबिक इस बार उनकी उम्मीदवारी रद्द होने की संभावना नहीं है। चुनाव मैदान धुर रूढ़िवादी छवि वाले पूर्व प्रधान न्यायाधीश इब्राहीम रायसी और संसद के पूर्व स्पीकर अली लारिजानी भी उतरे हैं। इब्राहीम को होज्जात अल-इस्लाम का खिताब मिला हुआ है। ईरान के शिया मौलाना परंपरा में ये खिताब सर्वोच्च खिताब अयातुल्लाह के बाद दूसरे नंबर पर माना जाता है। इस तरह ईरान में सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अली खामेनई के बाद रायसी का दर्जा धार्मिक पायदान पर दूसरे नंबर पर है। रायसी ने 2017 में भी राष्ट्रपति लड़ा था, लेकिन रूहानी से हार गए थे। लेकिन रायसी को मजबूत उम्मीदवार समझा जा रहा है। इस बार वे ‘परिवर्तन’ के नारे के साथ मैदान में उतरे हैं। उन्होंने देश की सरकारी व्यवस्था को बदलने और गरीबी, भ्रष्टाचार और भेदभाव के खिलाफ अथक संघर्ष करने का वादा किया है। रायसी को देश के कट्टरपंथी और रूढ़िवादी ताकतों का पूरा समर्थन मिल रहा है। गौरतलब है कि रायसी ने 2015 के ईरान परमाणु समझौते की आलोचना की थी। अली लारिजानी ने 2005 में अहमदीनिजाद के खिलाफ चुनाव लड़ा था, लेकिन हार गए थे। बाद में वे ईरान की सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के महासचिव पद पर रहे। 2020 तक वे संसद के स्पीकर थे। वे अभी भी अयातुल्लाह अली खामेनई के सलाहकार हैं। लारिजानी की छवि उदारपंथी और सुधारवादी की है। वे 2015 के परमाणु समझौते के समर्थक रहे हैं। उन्होंने अपना चुनाव अभियान आर्थिक मुद्दों पर केंद्रित किया है और ये दावा किया है कि दूसरे उम्मीदवार देश की प्रमुख आर्थिक समस्याओं को हल करने में सक्षम नहीं हैं। विश्लेषकों का कहना है कि ईरान के राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे का 2015 के परमाणु डील को फिर से जिंदा करने की हो रही कोशिशों पर अवश्य असर पड़ेगा। अगर लारिजानी जीते तो समझौते की संभावनाएं उज्ज्वल होंगी, वरना इसको लेकर नई आशंकाएं पैदा हो सकती हैं। हालांकि उम्मीदवारों ने अपना एजेंडा सामने रख दिया है, लेकिन उनके बीच से सचमुच कौन चुनाव में उतर पाएगा, यह 27 मई को पता चलेगा, जब गार्जियन परिषद उम्मीदवारों की लिस्ट जारी करेगी। गार्जियन परिषद 12 सदस्यीय संस्था है, जिसमें छह इस्लामी कानून के विशेषज्ञ और छह सामान्य न्यायाधीश शामिल हैं।