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इमरान और इर्दोगन डाल रहे हैं आग में घी

October 30, 2020

– बिक्रम उपाध्याय

फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रोन के बयान से उठे बवाल को पाकिस्तान और तुर्की खूब हवा दे रहे हैं। इस्लामाबाद और इस्तांबुल में इस बात की होड़ लगी है कि कौन कितना आग में घी डाल सकता है। इमरान खान और इर्दोगन मुसलमानों में यह संदेश पहुंचाने की हरसंभव कोशिश कर रहे हैं कि मैक्रोन ने इस्लाम के संस्थापक हजरत मोहम्म्द की शान में गुस्ताखी की है और इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। आतंकवाद के समर्थन में खड़े ये दोनों नेता पूरी दुनिया के लिए खतरे का सबब बन सकते हैं। कई देशों में पहले से ही इस्लामिक कट्टरता और आतंकवाद का जहर फैला हुआ है, वैसे में पाकिस्तान और तुर्की के भड़काऊ रवैये की जितना हो सके आलोचना की जानी चाहिए।

इस्लाम की तौहीन करने वालों को सजा देने का जो कैंपेन शुरू हुआ है, उसमें उस अतिवादी और आतंकवादी का मानवता विरोधी कृत्य छिप गया है, जिसने एक फ्रांसिसी शिक्षक का गला इसलिए काट दिया था कि उस शिक्षक ने मोहम्मद साहब के कार्टून पर क्लाॅस रूम में कुछ व्याख्यान दिए थे। पूरी दुनिया में कम से 18 ऐसे मजहब हैं, जिनके मानने वालों में करोड़ों लोग शामिल हैं। परंतु पूरी दुनिया में केवल एक इस्लाम ही ऐसा मजहब है, जिसमें अल्लाह या पैगंबर पर कोई सवाल करने वालों की हत्या करने का फतवा जारी कर दिया जाता है। बाकी कोई ऐसा मजहब नहीं है जहां संस्थागत तरीके से किसी को मारने का ऐलान किया जाता हो।

फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रोन ने इस्लाम के नाम पर फैलाई जा रही नफरत और हिंसा के मामले में एक ही बात कही है कि इस्लाम को लेकर दुनिया पर खतरा है। हो सकता है कि मैक्रोन की इस बात में पूरी सच्चाई ना हो, लेकिन इस बात पर भी कोई शंका नहीं है कि कई अन्य देशों की तरह फ्रांस भी ऐसा देश है, जो इस्लामिक आतंकवाद से बुरी तरह प्रभावित है। फ्रांस ने पिछले 10 सालों में न जाने कितने हमले झेले हैं।

8 अक्टूबर 2004 को पेरिस स्थित इंडोनेशिया के दूतावास पर बम धमाका। इस धमाके को अंजाम दिया फ्रांसिसी इस्लामिक आर्मी ने। इस धमाके में एक व्यक्ति की जान गई। 1 दिसंबर 2007 को फ्रांस और स्पेन में सक्रिय अलगाववादी संगठन ईटीए ने स्पेन के दो सिविल गार्ड की गोली मार कर हत्या कर दी। 16 मार्च 2010 को इसी ईटीए के अतिवादियों ने फ्रांसिसी पुलिस वालों की हत्या कर दी। 2012 के 11 मार्च से 22 मार्च के बीच में मोहम्मद मेराह नाम के संगठन ने तीन फ्रेंच पैराटुपर और तीन स्कूली बच्चों समेत 7 लोगों की हत्या कर दी। 25 मई 2013 को एक इस्लामिक सिरफिरे ने फ्रांस के एक सैनिक के पेट में चाकू घोंप दिया। 20 दिसंबर 2014 को भी एक व्यक्ति ने अल्लाहू अकबर का नारा लगाते हुए एक पुलिस वाले को चाकू मार दिया।

फिर जनवरी 2015 का वह हादसा। जब चार्ली अबे के कार्यालय में घुंसकर एक मुस्लिम आतंकवादी ने नरसंहार शुरू कर दिया। इस घटना ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया। इसी हादसे के बाद पता चला कि फ्रांस में अलकायदा और आईएसआईएस ने कितनी जड़े जमा रखी हैं। फ्रांस ने आतंकवादियों के खिलाफ एक बड़ी कार्रवाई की, लेकिन उसके एक महीने बाद ही फरवरी 2015 में फिर से एक मुस्लिम अतिवादी ने तीन सुरक्षा गार्डों को चाकू मार कर घायल कर दिया। 19 अप्रैल 2015 को एक अल्जीरियन जेहादी ने चर्च पर हमला करने की कोशिश की। इसमें एक महिला की जान भी चली गई। 21 अगस्त 2015 को भी एम्सटर्डम से पेरिस जा रही एक ट्रेन पर हमला कर नरसंहार की कोशिश की गई। लेकिन संयोग था कि हमलावर सिर्फ 3 लोगों को घायल कर पाया और उसे यात्रियों ने धर दबोचा।

13-14 नवंबर 2015 को पेरिस हमले को कौन भूल सकता है। फुटबाल मैच के बीच भयानक आतंकवादी हमला हुआ। क्लब, बार और मैदान पर कोहराम मच गया। आईएसआईएस ने इस हमले की जिम्मेदारी ली। इस हमले में 90 फ्रांसिसी मारे गए थे। फ्रांस ने इस घटना के बाद आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक युद्ध का ऐलान कर दिया था, सीरिया पर हमले भी किए, लेकिन फ्रांस अभी भी आतंकवाद की चपेट से बाहर नहीं निकला।

फ्रांस, इस्लामिक आतंकवाद की घटनाओं को लगभग हर महीने झेल रहा है। इसलिए मैक्रोन का यह कहना कि इस्लाम के नाम पर जो हो रहा है उससे दुनिया को खतरा उत्पन्न हो गया है, गलत नहीं है। खुद को और अपने हर नागरिक को बचाने और आतंकवादियों को खत्म करने का पूरा अधिकार मैक्रोन के पास है। जिस विचारधारा को लेकर फ्रांस में हमले हो रहे हैं उसका प्रतिकार और उस विचारधारा की आलोचना करना भी मैक्रोन का अधिकार है। लेकिन इस्लामिस्ट जेहाद के खिलाफ बोलने के बजाय पाकिस्तान और तुर्की फ्रांस को ही इस्लामीफोबिया के लिए जिम्मेदार ठहराने में लगे हैं। कोई मैक्रोन का सिर चाहता है तो कोई फ्रांस के सामानों का बहिष्कार चाहता है।

फ्रांस और राष्ट्रपति मैक्रोन के विरोध पीछे केवल उनका बयान नहीं है, बल्कि वह कानून है, जिसको दिसंबर में लाने की घोषणा मैक्रोन ने की है। फ्रांस 1905 के उस कानून में बदलाव करने जा रहा है, जिसके तहत चर्च और मस्जिद समेत उन तमाम मजहबी संगठनों के वित्तीय पोषण पर रोक लग सकती है, जिन्हें विदेशों से धन प्राप्त होता है। इस कानून के बाद फ्रांस में मुस्लिम संगठनों के उन मदरसों पर रोक लग सकती है, जो निजी तौर पर मुस्लिम बच्चों को कुरान और हदीस की शिक्षा दे रहे हैं। उन इमामों और मुल्लों पर भी प्रतिबंध लग सकता है जो विदेशों से आकर स्थानीय इमामों को ट्रेनिंग आदि देते हैं। मैक्रोन की इस घोषणा से फ्रांस के मौलवियों और इमामों में भी बेचैनी है और मैक्रोन के इस प्रयास को मुस्लिम बच्चों के खिलाफ बता रहे हैं। लेकिन मैक्रोन ने ऐलानिया तौर पर कहा है कि वह फ्रांस में रह रहे मुसलमानों को बाहरी इस्लामिक दुनिया के प्रभाव से मुक्त कर के दम लेंगे। तुर्की और पाकिस्तान की बेचैनी का एक कारण यह भी है कि फ्रांस में जाकर बसने वाले मुसलमानों में एक बड़ी संख्या इन दोनों देशों के नागरिकों की भी है।

वैसे फ्रांस में मुस्लिम शरणार्थियों का बड़े पैमाने पर आगमन 1960 और 1970 के दशक में ही हो गया था, लेकिन उस समय ज्यादातर मुस्लिम फ्रांस में रोजी रोटी के लिए गए थे। उनमें महिलाओं की संख्या काफी कम थी। फ्रांस में जाकर नौकरी करने वालों मुसलमानों में मुख्य रूप से अल्जीरिया और उत्तरी अफ्रीका के लोग थे। लेकिन 1976 में फ्रांस ने एक कानून पास कर प्रवासी मुसलमानों को न सिर्फ फ्रांस की नागरिकता दे दी, बल्कि उनके होम कंट्री से परिवार को लाने और वहां बसाने का भी अधिकार दे दिया। उन्हें यह पता नहीं था कि एक दिन उनके कदम उनके लिए ही खतरा बन जाएंगे।

एक रिपोर्ट के अनुसार सीरिया में आईएसआईएस के लिए लड़ने वालों में लगभग 900 ऐसे भी थे जो फ्रांस से गए थे। 2019 में इराक के एक कोर्ट ने चार फ्रेंच नागरिकों को आईएसआईएस के लिए लड़ने के आरोप में फांसी की सजा सुनाई थी। अल्जीरिया, मोरक्को और ट्यूनिशिया के मुसलमानों के साथ साथ बड़े पैमाने पर सीरिया, तुर्की, पाकिस्तान और बांग्लादेश के प्रवासी भी इन गतिविधियों में शामिल होने लगे हैं।

फ्रांस हालांकि एक सेकुलर देश है। 1905 में ही एक कानून के जरिए शासन प्रशासन में चर्च की दखल को खत्म कर दिया गया, लेकिन फ्रांस की सरकारों ने मुसलमानों के प्रति बेहद उदार रवैया अपनाया। फ्रांस में कानून के विपरीत जाकर मुस्लिम काउंसिल की स्थापना की गई। फ्रांस की मस्जिदों के इमाम आर्म्स जेहाद की वकालत करने लगे हैं।

कैथोलिक स्कूलों के साथ साथ इस्लामिक स्कूलों की स्थापना को भी मंजूरी दे दी गई। फ्रांस में इस समय 2300 मस्जिदें हैं और लगभग 250 और मस्जिदें बनाई जा रही हैं। फ्रेंच मुस्लिम काउंसिल की मांग है कि मस्जिदों की संख्या अभी के मुकाबले दुगनी होनी चाहिए। अब जबकि फ्रांस को इस बात के साक्ष्य मिल गए हैं कि मस्जिदों से ही अलगाववाद को बढ़ावा दिया जा रहा है तो कुछ मस्जिदों को बंद करने का आदेश दिया जा रहा है। लगभग 20 मस्जिदें बंद कर दी गई हैं।

फ्रांस को इस बात का बहुत देर से अहसास हुआ कि उनकी धरती का इस्तेमाल पूरी दुनिया में आतंकवाद फेलाने के लिए किया जा रहा है। फ्रेंच इंटेलिजेंस लगभग 15 हजार अपने मुस्लिम नागरिकों और शरणार्थियों पर नजर रखे हुए है जिनकी भूमिका संदिग्ध है। आतंकवाद की घटनाओं में शामिल मुसलमानों से फ्रांस की जेलें भर गई हैं। जब अक्टूबर 2020 में एक जेहादी ने शिक्षक का सर कलम कर दिया तब जाकर मैक्रोन ने इस्लामिक अलगाववाद के खिलाफ मोर्चा खोला।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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