वॉशिंगटन । अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन (America President Joe Biden ) एवं उनके प्रशासन ने अपने शुरुआती दिनों में ये संकेत दिए हैं कि वह उन आर्थिक नीतियों से हटने को तैयार हैं, जिन पर देश पिछले चार दशकों से चलता रहा था। इसका सबसे ठोस संकेत हाल ही में देेेेेेखने को मिला, जब उप राष्ट्रपति कमला हैरिस ने अपने हस्तक्षेप से सीनेट में बाइडन के 1.9 खरब डॉलर के कोरोना राहत पैकेज को पारित करने का रास्ता साफ कर दिया। सीनेट ने पहले वह प्रस्ताव पारित किया, जिसके तहत अब साधारण बहुमत से इस प्रस्ताव को पास किया जा सकेगा। इस प्रस्ताव पर 100 सदस्यीय सदन में पक्ष और विपक्ष में 50-50 वोट पड़े। तब उप राष्ट्रपति ने अपने टाई- ब्रेकर वोट से प्रस्ताव को पास कराया।
विश्लेषकों ने कहा है कि बाइडन प्रशासन ने शुरुआती संकेत दिया है कि उसकी प्राथमिकता वॉल स्ट्रीट नहीं, बल्कि आम अमेरिकी नागरिक हैं। 1980 के दशक से देश वित्तीय अनुशासन और कॉरपोरेट हितों की रक्षा की नीति पर चल रहा था, लेकिन अब संकेत है कि नए प्रशासन का मिशन नौकरियां पैदा करना और उद्योगों को अपने देश में वापस लाना होगा। इसका सीधा असर चीन पर पड़ेगा। गुजरे दशकों में अमेरिकी कंपनियां चीन के सस्ते श्रम का लाभ उठाने के लिए अपने कारखाने वहां ले गईं। अब उनके लिए चीन से उत्पादन कर वापस अमेरिका में लाकर चीजें बेचना मुश्किल बनाया जा सकता है।
राष्ट्रपति जो बाइडन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवान उन अधिकारियों में शामिल हैं, जो जॉब्स ऐट होम (यानी देश में नौकरी पैदा करो) की नीति को बढ़ावा दे रहे हैं। बाइडन के सत्ता संभालने से ठीक पहले उन्होंने नेशलन पब्लिक रेडियो को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि भविष्य मेड इन अमेरिका का होगा। उन्होंने चीन से व्यापार वार्ता में वित्तीय कंपनी समूहों के हित को केंद्र में रखने के लिए तत्कालीन डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन की कड़ी आलोचना की थी। तब उन्होंने सवाल उठाया था कि जेपी मॉर्गन या गोल्डमैन शैक्स के लिए बीजिंग या शंघाई में वित्तीय गतिविधियां चलाना आसान करने से अमेरिका में नौकरियों की स्थिति कैसे सुधरेगी? जो बाइडन की मनोनीत व्यापार प्रतिनिधि कैथरिन टाय ने भी सुलिवान की राय से सहमति जताते हुए कहा है कि नए राष्ट्रपति श्रमिक केंद्रित नीति पर जोर दे रहे हैं।
अब ऐसा लगता है कि बाइडन प्रशासन अपनी इसी समझ के मुताबिक अपनी नीतियों को ठोस रूप दे रहा है। वित्तीय अनुशासन के समर्थकों की राय की अनदेखी करते हुए 1.9 खरब डॉलर के कोरोना राहत पैकेज को अमली जामा पहनाने में वह जुट गया है। जिन लोगों ने इस कदम पर एतराज जताया उनमें पूर्व डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के वित्त मंत्री और पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की राष्ट्रीय आर्थिक परिषद के निदेशक लैरी समर्स भी हैं, लेकिन बाइडन प्रशासन ने उनकी राय को ज्यादा अहमियत नहीं दी है।
बाइडन प्रशासन की इस नीति का सीधा असर चीन पर पड़ना स्वभाविक है। पिकिंग यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर माइकल पेटिस ने हांगकांग के अखबार साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट से कहा, ‘बाइडन प्रशासन अमेरिकी नीति में महत्त्वपूर्ण बदलाव ला रहा है। पिछली नीति का लाभ अमेरिका के बैंकरों और चीन के शासक वर्ग को मिला, लेकिन इससे दोनों देशों में आम श्रमिकों को नुकसान हुआ।’ पेटिस ने कहा, ‘1980 के बाद अमेरिका के जीडीपी में बहुत इजाफा हुआ, लेकिन निचली आधी आबादी की आमदनी जहां की तहां रही। इसका मतलब हुआ कि विकास का 100 फीसदी लाभ धनी तबकों की तिजोरी में चला गया। इससे गैर बराबरी बढ़ी है। मेरी राय में अब इस समस्या को समझा जा रहा है।’
चीन के खिलाफ जुबानी युद्ध के बावजूद ट्रंप प्रशासन के दौरान चीन को असल में कोई नुकसान नहीं हुआ था। ट्रंप प्रशासन में बड़े वित्तीय हितों के प्रतिनिधियों महत्त्वपूर्ण पदों पर थे, जो उन कंपनियों को संरक्षण देते थे, जिनका कारोबार चीन में फल-फूल रहा है। इन कंपनियों ने चीन के वित्तीय बाजारों को विदेशी निवेश के लिए खोलने के फैसले की तारीफ की थी, लेकिन अब बाइडन ने चीन को अमेरिका का सबसे गंभीर प्रतिस्पर्धी घोषित किया है। साथ ही फिलहाल वह अपनी नीति में कंपनियों के हितों के बजाय आम लोगों के हितों को तरजीह दे रहे हैं। इससे जहां अमेरिका के भीतर आर्थिक मामलों में बड़े बदलाव देखने को मिल रहे हैं, वहीं चीन के साथ अमेरिका के कारोबारी संबंध में बुनियादी बदलाव आने की संभावना अब प्रबल हो गई है। चीन में इस बात की चिंता देखी जा रही है।
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