वाशिंगटन। तालिबान (Taliban) का चीन (China) के प्रति दोस्ताना रुख अमेरिका (America) समेत दुनिया के कई देशों (countries) को आशंकित कर रहा है। इसी बीच चीन द्वारा तालिबान को धन मुहैया कराए जाने संबंधित चिंता लेकर जब अमेरिकी राष्ट्रपति (US President) से सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि ‘तालिबान के साथ चीन की वास्तविक समस्या है। इसलिए वे तालिबान के साथ कुछ समझौता करने की कोशिश करने जा रहे हैं, मुझे यकीन है। जैसा पाकिस्तान करता है, वैसा ही रूस करता है, जैसा ईरान करता है। वे सभी यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि तालिबान अब क्या करता है।
बता दें कि तालिबान के चीन की दोस्ती से अफगानिस्तान में रहने वाले उइगर मुसलानों में भय समा गया है। इन मुसलमानों में ये डर समया हुआ है कि तालिबान सरकार चीन को खुश करने के लिए उन्हें जबरन वापस चीन भेज सकती है। जबकि इनमें से कई मुसलमानों का कहना है कि वे सरकारी दमन से बचने के लिए चीन के शिनजियांग प्रांत से भाग कर अफगानिस्तान आए थे।
जानकारों का कहना है कि उइगर मुसलमानों के भयभीत होने की वजहें हैं। उनमें सबसे ज्यादा डर तब पैदा हुआ, जब पिछले जुलाई में तालिबान नेताओं के एक दल ने चीन की यात्रा की। वहां तालिबान और चीन दोनों ने एक दूसरे की तारीफ की। तालिबान ने चीन को अपना ‘अच्छा दोस्त’ बताया और कहा कि वह अपनी जमीन का कभी भी चीन के खिलाफ इस्तेमाल नहीं होने देगा।
पिछले हफ्ते तालिबान के प्रवक्ता जबिहुल्लाह मुजाहिद (Taliban spokesman Zabihullah Mujahid) ने चीन के टीवी चैनल सीजीटीएन को दिए इंटरव्यू में कहा- ‘चीन हमारे पड़ोस में एक महत्वपूर्ण और मजबूत देश है। चीन के साथ हमारे सकारात्मक और अच्छे संबंध रहे हैं। अब हम इन संबंधों को और मजबूत करना चाहते हैं और आपसी विश्वास के स्तर में बढ़ोतरी करना चाहते हैं।’
इन बातों को उइगर मुसलमानों ने अपने खतरे का संकेत माना है। जॉर्ज वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर सीन रॉबर्ट्स ने कहा- ‘ऐसे बहुत सी वजहें हैं, जिनके कारण तालिबान चीन की शर्तों को मानते हुए उससे संबंध गहरा करने की कोशिश करेगा। खासकर उस समय उसके सामने ऐसा करने की मजबूरी भी है, जब अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने उसकी वित्तीय सहायता रोक दी है।’
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