इंदौर, राजेश ज्वेल। जमीनों की आसमान छूती कीमतों के साथ राजस्व विवादों की संख्या में भी तेजी से इजाफा हो गया है और इंदौर तो वैसे ही जमीनी जादूगरों-भूमाफियाओं का गढ़ रहा है, जिन पर नकेल कसने के साथ कलेक्टर मनीष सिंह ने 117 साल पुराने महाराजा होलकर द्वारा बनवाए गए बेशकीमती राजस्व रिकॉर्डों को सहेजने का काम करवाया। इंदौर की धरोहर हैं ये जमीनों के रिकॉर्ड। 1584 नक्शा शीटें, जिनमें से अधिकांश जीर्ण-शीर्ण हो गई थीं, उन्हें लेमिनेट कराने के साथ उनके डिजिटल रिकॉर्ड भी तैयार करवाए और एमपी लैंड रिकॉर्ड के माध्यम से उन्हें ऑनलाइन भी कर दिया है। जिले के 676 गांवों के ये राजस्व नक्शे तहसीलदार, कलेक्टर से लेकर हाईकोर्ट-सुप्रीम कोर्ट तक तमाम राजस्व प्रकरणों-विवादों में मददगार साबित होते रहे हैं।
कलेक्टर कार्यालय में वर्षों से ये राजस्व रिकॉर्ड उपेक्षित पड़े थे और किसी भी पूर्व कलेक्टर ने इनके संरक्षण में रुचि नदीं दिखाई। मगर जब कलेक्टर मनीष सिंह को पता चला कि इंदौर में ही ये बेशकीमती जमीनी रिकॉर्ड मौजूद है, तो उन्होंने उसे संरक्षित करने का बीड़ा उठाया। लैंड रिकॉर्ड शाखा में पदस्थ अनुलेखक यानी ट्रैसर अशफाक खान का कहना है कि 1905-06 में महाराजा होल्कर ने जमीनों के ये रिकॉर्ड तैयार करवाए थे, जिसमें जिले के सभी 676 गांवों की 1584 नक्शा शीटें तैयार की गई। मगर 2001 में इनमें से कई नक्शे पानी में भी भीग गए थे। उसके बाद कलेक्टर मनीष सिंह ने इनकी सुध ली और इन्हें संरक्षित करने के निर्देश दिए। नाप-नाप कर स्केल के जरिए इन नक्शों को चिपकाया, टेप लगाए और लेमिनेट कर अलमारियों में बंद कर दिए हैं। इनकी एक-एक कॉपी अलग से तैयार की गई, जो इस्तेमाल में लाई जाएगी। आवश्यकता पडऩे पर ही अलमारी में बंद असल रिकॉर्ड निकाले जाएंगे। कलेक्टर मनीष सिंह ने कल इन सभी रिकॉर्डों का अवलोकन किया और उन्हें संरक्षित करने वाले श्री खान सहित 6 कर्मचारियों को 25-25 हजार रुपए का पुरस्कार देने के साथ प्रशस्ति-पत्र देने की भी घोषणा की।
कलेक्टर मनीष सिंह के मुताबिक वाकई होलकर महाराज द्वारा बनवाए गए ये राजस्व रिकॉर्ड इंदौर की धरोहर हैं। आजादी के पूर्व होल्कर कालीन नक्शों के संरक्षण और सुधार के कार्य में लगे कर्मचारियों की उन्होंने प्रशंसा भी की और कहा कि ये नक्शे जमीनों के विवादों के निराकरण में बेहद उपयोगी साबित होंगे। लिहाजा इन नक्शों का संरक्षण किया जाना अत्यंत जरूरी था। सभी राजस्व न्यायालयों में जमीनों के विवाद में ये नक्शे पूर्व में भी मददगार साबित होते रहे हैं। इंदौर में जमीनों की कीमतें बढऩे के साथ अब राजस्व विवाद भी बढऩे लगे हैं और तहसील न्यायालयों से लेकर जिला कोर्ट, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक ये राजस्व प्रकरण वर्षों तक चलते हैं, जिनमें होल्करकालीन ये नक्शे बड़े मददगार साबित होते हैं। पूर्व में भी कई सरकारी जमीनों की लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक शासन-प्रशासन जीतता रहा है। कलेक्ट्रेट स्थित लैंड रिकॉर्ड के कर्मचारियों का कहना है कि उन्होंने बीते वर्षों में कई मर्तबा प्रयास किए कि ये नक्शे और रिकॉर्ड संरक्षित हो जाए। मगर यह पहला मौका है जब कलेक्टर मनीष सिंह जी ने इसमें विशेष रुचि दिखाई और उनके गंभीर प्रयासों का ही नतीजा है कि आज 1584 नक्शा शीटों को ना सिर्फ संरक्षित किया, बल्कि भविष्य में भी ये रिकॉर्ड शासन-प्रशासन के लिए मददगार साबित होते रहेंगे।
1925 के बाद इंदौर में हुआ ही नहीं मिसल बंदोबस्त
अंग्रेजों ने 1925 से लेकर 30 तक पूरे देश में जमीनों के एक-एक इंच के रिकॉर्ड का दस्तावेजीकरण किया था, जिसे राजस्व भाषा में मिसल बंदोबस्त कहा जाता है। इसी रिकॉर्ड के आधार पर केन्द्र और राज्य सरकारें जमीनों का प्रबंधन करती रही। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के अलग होने के चलते कई जिलों के मिसल बंदोबस्त रिकॉर्ड गायब भी हो गए। इंदौर का ही मिसल बंदोबस्त 1925 में हुआ। उसके बाद 2001-02 में तत्कालीन दिग्गी सरकार ने मिसल बंदोबस्त नए सिरे से करवाने के प्रयास किए, मगर जमीनी जादूगरों ने उसे बंद करवा दिया। उस वक्त सांवेर के सिर्फ 30 गांवों का ही मिसल बंदोबस्त हो सका था। हालांकि देवास, रतलाम, झाबुआ सहित कुछ जिलों में मिसल बंदोबस्त हुआ भी है, मगर इंदौर में चूंकि जमीनों के खेल बड़े पैमाने पर हुए और अगर अब मिसल बंदोबस्त होता है तो कई नए विवाद उठ खड़े होंगे। नतीजतन शासन से लेकर किसी भी जिला कलेक्टर ने मिसल बंदोबस्त नहीं करवाया।
खजराना सहित जागीरी गांव में ही अधिक जमीनी विवाद
महाराजा होल्कर ने 117 साल पहले जमीनों के जो नक्शे तैयार करवाए उसमें जिले के अधिकांश गांव शामिल हुए। मगर कुछ गांव, जो जागिरी गांव थे, उनके नक्शे अवश्य नहीं बन पाए। उनमें राऊ, मानपुर, खजराना जागीर प्रमुख है। यही कारण है कि इन गांवों में जमीनों के राजस्व विवाद ज्यादा होत आए हैं। हालांकि नजूल सहित अन्य उपलब्ध रिकार्डों के आधार पर खजराना के नक्शे तैयार भी किए गए। वर्तमान में 90 फीसदी से अधिक जिले की जमीनों के राजस्व रिकॉर्ड उपलब्ध हैं और अब इन बेशकीमती 1584 नक्शा शीटों को भी सहेज लिया गया है।
ग्वालियर मुख्यालय के अलावा भोपाल में भी नहीं है ये अमूल्य नक्शे
लैंड रिकॉर्ड का मुख्यालय तो ग्वालियर है ही, वहीं राजस्व मंडल भी वहीं पर स्थापित कर रखा है। मध्यप्रदेश भू-राजस्व संहिता 1959 के अंतर्गत राजस्व मंडल का गठन किया गया और उसका मुख्यालय ग्वालियर है, जहां पर न्यायालयीन प्रकरणों की अपील, पुनरीक्षण, पुनर अवलोकन व अन्य प्रकरण दर्ज होते हैं, लेकिन इंदौर में जो होल्करकालीन रिकॉर्ड सहेजा गया है वह ग्वालियर मुख्यालय के साथ-साथ राजधानी भोपाल में भी नहीं है। मास्टर प्लान की महत्वपूर्ण सडक़ों, एमआर से लेकर प्राधिकरण की योजना सहित मेट्रो प्रोजेक्ट में भी ये नक्शे काम आ रहे हैं।
पांच वन ग्रामों को भी राजस्व बनाने की कवायद शुरू
1925 के मिसल बंदोबस्त में कुछ फॉरेस्ट गांव जैसे नाहर झाबुआ, बेरछा छूट गए थे। अभी शासन के निर्देश पर इंदौर के 5 वन ग्रामों को राजस्व ग्रामों में परिवर्तित करने की भी कवायद शुरू की गई है, जिसमें महू तहसील के तीन और भिचौलीहब्सी तथा खुडैल को शामिल किया गया है। कल कलेक्टर कार्यालय में इसकी तैयारियों को लेकर भी समीक्षा बैठक हुई, जिसमें वन मंडला अधिकारी नरेन्द्र पंड्या, अपर कलेक्टर आरएस मंडलोई सहित राजस्व आदिम जाति कल्याण और वन विभाग के अधिकारी मौजूद रहे। महू के रसकुंड्या, तेलनमार और उमठ के अलावा भिचौली हब्सी के नेहरू वनगाम और खुड़ैल के नाहर झाबुआ को शामिल किया है।
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