भोपाल। देश से 74 साल पहले विलुप्त हुए चीतों को फिर से यहां बसाने के लिए मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के श्योपुर जिले में स्थित कूनो-पालपुर अभयारण्य (Kuno-Palpur Sanctuary) में तैयारियां तेज हो गईं हैं। नवंबर में साउथ अफ्रीका से लाए जा रहे चीते के पांच जोड़ों की सुरक्षा के लिए कूनो में स्पेशल एनक्लोजर (Special Enclosure) बनाया जा रहा है। इसे ट्रिपल सिक्यूरिटी कवर (Triple Security Cover) दिया जाएगा। दरअसल, 768 वर्ग किलोमीटर में फैले कूनो-पालपुर अभयारण्य (Kuno-Palpur Sanctuary) में 70 तेंदुए (leopard) हैं और यही चीतों के लिए सबसे बड़ा खतरा बन सकते हैं।
यदि तेंदुए (leopard) और चीते आपस में भिड़े तो भारत में चीतों के कुनबे को बढ़ाने की योजना संकट में पड़ सकती है। इस कारण अफ्रीकन चीतों को पालपुर में पुरानी गढ़ी के पास 5 वर्ग किलोमीटर के एनक्लोजर (Enclosure) में रखा जाएगा। इसे न सिर्फ चैन लिंक फैंसिंग (Chain link Fencing) से कवर किया जाएगा बल्कि बाहरी जानवर मुख्यत: तेंदुए (leopard) इसमें प्रवेश न करें, इसके लिए सोलर फैंसिंग सिस्टम (Solar Fencing System) इस एनक्लोजर (Enclosure) के बाहरी छोर पर रहेगा। इस सिस्टम (System) की खासियत है कि जब कोई भी वन्यजीव या शिकारी इसे छुए तो उसे करंट का जोरदार झटका लगेगा।
1952 में विलुप्त घोषित हुआ था चीता
भारत सरकार ने आधिकारिक तौर पर 1952 में चीते को बिलुप्त प्राय: घोषित कर दिया था। इससे पहले 1947 में छत्तीसगढ़ में तीन चीतों के शव पाए गए थे, जिनका शिकार वहां के राजा ने किया था, तब से भारत में कहीं भी चीतों को नहीं देखा गया। 1958 में छत्तीसगढ़ के तत्कालीन मंत्री रामचंद्र सिंहदेव ने कोरिया में चीतों को देखने का दावा किया लेकिन इसकी कोई तस्वीर नहीं है। पिछले दो दशक में चीतों को भारत में फिर से बसाने की चर्चा खूब हुई लेकिन इसकी पुख्ता योजना 2009 में भारत सरकार ने तैयार की थी। उम्मीद की जा रही है कि 2021 के अंत तक भारत की धरती पर फिर से चीतों की दहाड़ सुनाई देगी।
चीतों के लिए कूनो पालपुर को इसलिए उपयुक्त माना गया, क्योंकि यहां घास के समतल मैदान के साथ बड़ी संख्या में शाकाहारी वन्यजीव हैं। सघन वन होने के साथ बड़ा भू-भाग चीतों के लिए मुफीद है। लंबे समय से यहां एशियाटिक लॉयन को बसाने की योजना पर काम किया जा रहा था, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। अब चीते आने से यह सेंक्चुरी देश में सबसे अहम हो जाएगी।
डॉ. एमके रणजीत सिंह, वन एवं पर्यावरण विशेषज्ञ
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