जबलपुर। मप्र उच्च न्यायालय में राज्य सरकार ने ऑनलाइन गैम्बलिंग पर अंकुश लगाने के कानून का न तो ड्राफ्ट पेश किया और न ही यह बताया कि यह बिल विधानसभा में विचार के लिए कब रखा जाएगा। जिसपर न्यायालय ने इस रवैये पर कड़ी नाराजगी जाहिर की है। उच्च न्यायालय ने सरकार के उस आवेदन को खारिज कर दिया जिसमें पूर्व में तीन माह की समयसीमा दिए जाने का आदेश वापस लेने की मांग की गई थी। उच्च न्यायालय ने कहा कि पिछली सुनवाई के दौरान शासकीय अधिवक्ता ने बताया था कि ऑनलाइन गैम्बलिंग पर अंकुश लगाने कानून बनाने राज्य के वरिष्ठ सचिवों की कमेटी विचार कर रही है। यह भी कहा था कि कानून का खाका तैयार करने तीन माह का समय लगेगा और उसके बाद विधानसभा में अनुमोदन के लिए भेजा जाएगा। जस्टिस विवेक अग्रवाल की एकलपीठ ने प्रमुख सचिव, अतिरिक्त मुख्य सचिव गृह को निर्देश दिए कि आगामी सात दिन के भीतर उक्त तथाकथित कमेटी द्वारा तैयार ड्राफ्ट पेश करें। इसके साथ ही अधिकारी यह भी बताएं कि उक्त बिल विधानसभा में बहस और वोटिंग के लिए कब रखा जाएगा।
न्यायालय ने स्पष्ट कहा कि यदि आगामी सुनवाई तक उक्त अधिकारियों ने हलफनामा पेश नहीं किया तो उन्हें व्यक्तिगत हाजिरी के लिए आदेश देने बाध्य हो जाएंगे। उक्त मामले पर अगली सुनवाई 21 मार्च को होना तय किया गया है।न्यायालय ने अगस्त 2022 को राज्य सरकार को निर्देश दिए थे कि ऑनलाइन गैम्बलिंग पर अंकुश लगाने जरूरी कदम उठाएं। न्यायालय ने कहा था कि ऑनलाइन गैम्बलिंग से देश के युवाओं के आर्थिक, मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य बड़े स्तर पर प्रभावित हो रहा है। इस मामले में ठोस निर्णय लेने में अब अधिक समय इंतजार नहीं किया जा सकता। गौरतलब है कि सिंगरौली जिले के सनत कुमार जायसवाल की जमानत अर्जी पर सुनवाई के दौरान न्यायालय ने इस मुद्दे पर संज्ञान लिया था। अधिवक्ता राजेन्द्र प्रसाद गुप्ता ने बताया कि सनत पर आरोप है कि उसने अपने नाना के खाते से 8 लाख 51 हजार रुपये निकाल लिए। इस रकम को उसने आईपीएल के सट्टे में लगाकर बर्बाद कर दिया।
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