नई दिल्ली । अमेरिका (America) के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (President Donald Trump) और इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू (Israeli Prime Minister Benjamin Netanyahu) ने मिलकर फिलिस्तीनियों (Palestinians) के लिए नया ठिकाना ढूंढ़ निकाला है। फिलिस्तीनियों को गाजा से हटाकर पूर्वी अफ्रीका के तीन देशों में बसाने की योजना बनाई है। इस योजना के तहत सूडान, सोमालिया और सोमालीलैंड को चुना गया है। अमेरिकी और इजरायली अधिकारियों ने इस बात की पुष्टि की है कि इन तीन देशों के अधिकारियों से इस संबंध में संपर्क किया गया है।
क्या है ट्रंप की योजना
ट्रंप की योजना के अनुसार, गाजा के 20 लाख से ज्यादा फिलिस्तीनियों को स्थायी रूप से वहां से निकालकर अन्य स्थानों पर बसाया जाएगा। उन्होंने प्रस्ताव दिया है कि अमेरिका गाजा की जमीन पर अधिकार कर लेगा, वहां सफाई और पुनर्निर्माण कर इसे एक रियल एस्टेट प्रोजेक्ट के रूप में विकसित करेगा। इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इस विचार को शानदार करार दिया है, जबकि फिलिस्तीनी इसे एक जबरन विस्थापन मानते हुए पूरी तरह से खारिज कर चुके हैं।
गौरतलब है कि अरब देशों ने भी इस योजना का कड़ा विरोध किया है और फिलिस्तीनियों को उनके ही देश में पुनर्निर्माण की पेशकश की है। मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि अगर फिलिस्तीनियों को जबरदस्ती निकाला गया, तो यह एक संभावित युद्ध अपराध होगा।
फिलिस्तीनियों को बसाना कितना कठिन?
फिलिस्तीनियों को इन चुने गए देशों में बसाना काफी मुश्किल है। बात करें सूडान की तो 2020 में इजरायल के साथ अब्राहम समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले इस को इस योजना के तहत शामिल करने की कोशिश की गई। अमेरिकी अधिकारियों के अनुसार, ट्रंप प्रशासन ने सूडान की सैन्य सरकार से संपर्क कर उसे सैन्य सहायता और ऋण राहत जैसी पेशकश की थी। हालांकि, सूडानी सरकार ने इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया।
वहीं सोमालिलैंड ने पिछले 30 सालों से सोमालिया से अलग होकर स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में पहचान चाहता है। यह देश अमेरिकी योजना में अहम भूमिका निभा सकता है। अमेरिका ने इस अर्ध-स्वायत्त क्षेत्र को अंतरराष्ट्रीय मान्यता के बदले फिलिस्तीनियों को बसाने पर विचार करने का प्रस्ताव दिया है। हालांकि, सोमालिलैंड के अधिकारियों ने फिलहाल ऐसे किसी भी संपर्क से इनकार किया है।
जहां तक सोमालिया की बात है तो इस देश ने ऐतिहासिक रूप से फिलिस्तीनियों का समर्थन किया है और हाल ही में अरब देशों के उस सम्मेलन में शामिल हुआ था जिसने ट्रंप की योजना को खारिज कर दिया था। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या ट्रंप प्रशासन उसे अपने पक्ष में ला पाएगा। सोमाली अधिकारियों का कहना है कि उन्हें इस संबंध में कोई औपचारिक बातचीत नहीं हुई है।
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