डेस्क: कहते हैं कि नीतीश कुमार अपने दुश्मन की एक बार शिनाख्त कर लेते हैं तो फिर उसे भूलते नहीं. आरसीपी सिंह को उन्होंने दुश्मन बनाया तो आखिरकार उनकी गति डगरा के बैंगन की कर दी. जेडीयू से निकाले जाने पर वे भाजपा में गए. भाजपा ने उनसे बाग तो सजाया, लेकिन उन्हें कोई लाभ नहीं दिया. अब वे भाजपा छोड़ अलग पार्टी बनाने जा रहे हैं. भूतपूर्व केंद्रीय मंत्री दिग्विजय सिंह को दुश्मन माना तो नीतीश ने उन्हें नेस्तनाबूद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. प्रशांत किशोर के साथ भी नीतीश ने यही किया. लालू यादव के परिवार से भी उन्होंने दुश्मनी नहीं भुलाई है. दो बार साथ गए भी तो वह उनकी रणनीति का हिस्सा था. चिराग पासवान ने वर्ष 2020 में नीतीश को जो घाव दिए, उसकी टीस अब भी वे महसूस कर रहे हैं. अब उनसे निपटने का नीतीश कुमार ने पुख्ता प्लान बना लिया है.
नीतीश कुमार विधानसभा चुनाव के पहले चिराग पासवान का खेल बिगाड़ने वाले हैं. सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति (SC) के आरक्षण में सब कोटा तय करने के लिए राज्यों को छूट दे दी है. नीतीश कुमार ने पहले से ही वर्गीकरण कर अपने स्तर से उन्हें खास सुविधाएं दी हैं. इतना ही नहीं, नीतीश ने दलित जाति की कुल 22 उपजातियों में पहले 21 को महादलित कैटगरी में रखा. बाद में पासवान जाति को भी इसमें शामिल कर लिया गया. यानी बिहार की दलित जातियां ही अब महादलित हो गई हैं. पासवान जाति से ही चिराग आते हैं. अब नीतीश कुमार की योजना सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करने की है. ऐसा हुआ तो दलित आरक्षण में कोई फर्क तो नहीं आएगा, लेकिन चिराग के सामने बड़ी मुसीबत खड़ी हो जाएगी. चिराग पासवान लगातार सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आलोचना करते रहे हैं.
नीतीश कुमार ने बिहार की सत्ता संभालते ही दो काम महत्वपूर्ण काम किए. वर्ष 2006 में नीतीश सरकार ने महिलाओं को निकाय चुनावों में 50 प्रतिशत का आरक्षण दिया. 2016 में सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए 35 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया. दूसरा काम उन्होंने महादलित आयोग बना कर किया. महादलित आयोग की सिफारिशों पर ही उन्होंने दलितों की दो कैटगरी बनाई. दलित और महादलित कैटगरी बना कर नीतीश सरकार ने महादलितों को विशेष सुविधाएं मुहैया कराईं. हालांकि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के इस साल आए फैसले की तरह आरक्षण में कोई सब कोटा निर्धारित नहीं किया. वैसे नीतीश ने अनुसूचित जाति के तहत आने वाली सभी उपजतियों को महादलित की कैटगरी में ही रखा है. इसलिए आरक्षण सीमा पर कोई फर्क नहीं आएगा, लेकिन चिराग पासवान के लिए वे मुसीबात तो पैदा कर ही देंगे, जो इसका विरोध करते रहे हैं.
चिराग पासवान ने न सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के पैसले पर आपत्ति जताई, बल्कि अपने आचरण और बयान से वे विपक्ष की भूमिका में दिखने लगे. केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के पैसले को न माने, इसके लिए उन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी पर दबाव बनाया. इस बीच हरियाणा की भाजपा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू कर दिया. चिराग ने इस पर भी आपत्ति जताई है. वे कहते हैं कि हरियामा सरकार ने ठीक नहीं किया. आरक्षण में सब तकोटा पर उनका स्टैंड पहले जो रहा है, उस पर वे आज भी कायम हैं. उनका तर्क है कि प्रधानमंत्री भी इसे लागू करने के खिलाफ हं. इसीलिए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करने से मना कर दिया था.
नीतीश कुमार ने अगर सब कोटा निर्धारित कर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन किया तो यह चिराग पासवान पर उनका गंभीर प्रहार होगा. इसी बहाने नीतीश 2020 के घाव का बदला भी चुका लेंगे. हालांकि नीतीश ने बदला तो उसी वक्त चुका लिया था, जब लोजपा दो हिस्सों में बंट गई. चिराग के चाचा पशुपति कुमार पारस ने चार सांसदों को लेकर अलग पार्टी बना ली. चिराग अपनी पार्टी के अकेले सांसद रह गए. इससे पारस को फायदा यह हुआ कि वे केंद्र में मंत्री बन गए और चिराग पासवान को नुकसान यह हुआ कि उनसे पता के नाम आवंटित बंगला भी सरकार ने छीन लिया. अब नीतीश कुमार चिराग का राजनीतिक जमीन ही खिसकाने की तैयारी में हैं.
चिराग पासवान ने मंगलवार को अपनी पार्टी लोजपा-आर की कार्यकारिणी की बैठक बुलाई है. कहने के लिए बैठक नवंबबर में पटना में प्रस्तावित पार्टी की रैली की तैयारियों को लेकर है, लेकिन बात सिर्फ इतनी भर नहीं है. चिराग के लाख हाय-तौबा मचाने के बावजूद भाजपा ने झारखंड विधानसभा चुनाव में लोजपा-आर को सिर्फ एक सीट दी है. चिराग भीतर ही भीतर इससे भारी नाराज हैं. नीतीश ने अगर सुप्रीम कोर्ट का पैसला लागू कर दिया तो चिराग की सियासी जमीन ही खिसक जाएगी. वे तो देश भर में अपनी पार्टी का विस्तार करना चाहते हैं. इसके लिए उन्हें राष्ट्रीय स्तर का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट के फैसले के रूप में मिला था. अदालती फैसले पर विऱोध जता कर उन्होंने सुर्खियां तो बटोरीं, लेकिन भाजपा को विपक्षी सुर में सुर मिलाना अच्छा नहीं लगा. इसलिए संभव है कि अगले साल होने बिहार विधानसभा चुनाव की रणनीति पर भी कार्यकारिणी की बैठक में चर्चा हो.
बिहार में करीब 17 फीसद दलित (अनुसूचित जाति) मतदाता हैं. इनकी 22 उप जातियां हैं. बिहार के दलित समुदाय में मुसहर, रविदास और पासवान समाज भी आता है. करीब साढ़े पांच प्रतिशत मुसहर आबादी है तो चार फीसद रविदास और साढ़े तीन फीसदी से अधिक पासवान जाति के लोग बिहार में हैं. इनके अलावा धोबी, पासी, गोड़ आदि जातियों की भागीदारी अच्छी खासी है. मुसहर समाज से आने वाले केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी सुप्रीम कोर्ट का फैसला लागू करने के पक्षधर रहे हैं. दलित समुदाय से ही आने वाले जेडीयू नेता अशोक चौधरी भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के समर्थक हैं. बिहार में विरोध सिर्फ चिराग पासवान ही कर रहे हैं.
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved