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आदिवासियों के सहारे सत्ता पाने की कांग्रेस की तैयारी

June 07, 2023

  • 9 जून को हरसूद से चुनावी शंखनाद करेगी कांग्रेस

भोपाल। मप्र में सरकार बनाने के लिए आदिवासी वोटर्स निर्णायक हैं। आदिवासी वोट बैंक जिसके साथ हुआ, वो सत्ता पर काबिज होता है। इसलिए भाजपा-कांग्रेस ने उन 84 सीटों पर फोकस बढ़ा दिया है जहां आदिवासी वोटर किसी को जीताने-हराने का माद्दा रखते हैं। इनमें से 47 सीटें रिजर्व हैं। मिशन 2023 नजदीक है, जहां ऐसे में अब कांग्रेस भी मिशन को फतह करने की तैयारी में जुटी हुई नजर आ रही है। प्रदेश में नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी कांगेस का सबसे ज्यादा-फोकस आदिवासी सीटों पर है। कांग्रेस 9 जून को भगवान बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि पर हरसूद विधानसभा से आदिवासी सीटों पर चुनाव प्रचार का आगाज करेगी। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ इस दिन हरसूद में जनसभा को संबोधित करेंगे। कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए तैयारियां शुरू कर दी गई हैं।
पिछले विधानसभा चुनावों के आंकड़े साफ इशारा करते हैं कि जिस दल ने एससी और आदिवासी सीटों पर कब्जा जमाया, मप्र में उस पार्टी की सरकार बनी है। राजनीतिक इतिहास को देखते हुए कांगे्रस का इन दोनों बड़े वर्गों पर फोकस है। इसलिए कांग्रेस ने भगवान बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि पर आदिवासी बहुल सीट हरसूद से चुनावी शंखनाद करने का प्लान बनाया है। साल 2018 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी वोटों के सहारे सत्ता तक पहुंची कांग्रेस एक बार फिर आदिवासी वर्ग को साधने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है।साल 2018 के विधानसभा चुनाव में मध्य प्रदेश की 47 आदिवासी वर्ग की सुरक्षित सीटों में से कांग्रेस ने 30 सीटों पर विजय हासिल की थी।विगत विधानसभा चुनाव और नगरीय निकाय चुनाव में किए उसी प्रयोग को एक बार फिर से कांग्रेस इस विधानसभा चुनाव में दोहराने जा रही है। इस बार भी कांग्रेस को इन सीटों पर गैर राजनीतिक उम्मीदवारों की तलाश है।


परंपरागत वोट बैंक पर फोकस
कांग्रेस रणनीतिकारों का मानना है कि एससी-एसटी समुदाय कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक रहा है। लेकिन तीन चुनावों के एससी-एसटी के आंकड़े पूरी तरह कांग्रेस के पक्ष में नहीं रहे। ऐसे में कांग्रेस ने इस बार आदिवासी वोट बैंक को पूरी तरह अपने पाले में करने के लिए मिशन मोड में है। 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में आदिवासियों की सबसे अधिक संख्या मप्र में है। राज्य की कुल आबादी का लगभग 21.5 प्रतिशत आदिवासियों का है और उनके लिए 47 विधानसभा सीटें आरक्षित हैं। भाजपा ने 2018 में इन 47 सीटों में से 16 पर जीत हासिल की थी, जबकि उससे पहले 2013 के चुनावों में 31 सीटों पर उनका कब्जा था। पार्टी राज्य में 2003 से सत्ता में है। फिलहाल वह सत्ता विरोधी लहर से जूझ रही है। आरक्षित सीटों के अलावा, 37 और विधानसभा सीटें हैं जिन पर आदिवासी समुदाय का वर्चस्व है। राज्य में राजनीतिक दलों के भाग्य तय करने में यह सीटें निर्णायक भूमिका निभा सकती हैं।

आदिवासी नेताओं को सौंपी जिम्मेदारी
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने आदिवासी नेताओं को अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों की जिम्मेदारी सौंपी है। उन्हें निर्धारित समयावधि में सभी आदिवासी सीटों पर चुनाव की तैयारी पूरी कर पीसीसी चीफ कमलनाथ को रिपोर्ट सौंपना है। दरअसल, प्रदेश में अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए विधानसभा की 47 सीटें आरक्षित हैं। इसके अलावा करीब 40 सीटों पर आदिवासी मतदाता चुनाव में हार- जीत का फैसला करते हैं। यही वजह है कि कांग्रेस का फोकस आदिवासी सीटों पर है। पिछले दिनों पार्टी ने आदिवासी कांग्रेस की कमान रामू टेकाम को सौंपी है। उन्हें आदिवासी कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है। उनके पास चुनाव से पहले आधे जिलों में कार्यकारिणी गठित करने के साथ ही सभी आदिवासी सीटों का दौरा कर पार्टी के पक्ष में माहौल तैयार करने की चुनौती है। रामू टेकाम का कहना है कि मई के आखिर तक सभी जिलों में कार्यकारिणी का गठन कर लिया जाएगा। नौ मई को कमलनाथ हरसूद में बड़ी जनसभा करेंगे। इसके बाद वे प्रदेश की सभी आदिवासी बहुल सीटों का दौरा कर कमलनाथ को रिपोर्ट सौंपेंगे।

पुराने प्रयोग को दोहराएगी कांग्रेस
इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने जो रणनीति बनाई है, उसके अनुसार वो आदिवासी सीटों पर गैर राजनीतिक चेहरों पर भरोसा जताएगी। हालांकि की कांग्रेस की रणनीति के अनुसार समाज में सक्रिय रहने वाले लोगों को टिकट दिया जा सकता है। इसके लिए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता समाज में सक्रिय और सेवानिवृत्त अधिकारियों की जानकारी जुटा रहे हैं। बता दें कि बीते साल मप्र में हुए नगरीय निकाय चुनाव में कांग्रेस ने एक नया प्रयोग किया था। इस प्रयोग के तहत कांग्रेस ने गैर राजनीतिक लोगों को नगरीय निकाय का टिकट दिया था। कांग्रेस के इस प्रयोग के सकारात्मक परिणाम भी देखने को मिले। पूरे प्रदेश में कांग्रेस के पांच महापौर बने जो गैर राजनीतिक रहे। विधानसभा चुनाव में आदिवासी सीटों पर जीताऊ उम्मीदवारों की तलाश के लिए कांग्रेस ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को जिम्मेदारी सौंपी है। वरिष्ठ नेता आदिवासी सीटों पर सामाजिक रूप से सक्रिय और सेवानिवृत्त अधिकारियों की जानकारी जुटा रहे हैं। कांग्रेस के प्रदेश महामंत्री चंद्रिका प्रसाद द्विवेदी के अनुसार साल के अंतिम महीनों में विधानसभा चुनाव है। साल 2018 की भांति इस चुनाव में भी कांग्रेस जीत दर्ज करेगी। जनता का विश्वास कांग्रेस के साथ है। विधानसभा चुनाव में जीत के लिए पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ सभी पहलुओं पर काम कर रहे हैं। उनका विश्वास है कि आगामी विधानसभा चुनाव में आदिवासी सीटों पर हमारा प्रदर्शन पिछले चुनाव से भी बेहतर होगा।

 

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