भोपाल। गंगा नदी की तर्ज पर प्रदेश में नर्मदा के दोनों किनारों पर प्राकृतिक खेती कराए जाने की तैयारी है। इसके लिए कृषि विभाग का अमला जी-तोड़ मेहनत कर रहा है। डीपीआर तैयार कर राज्य शासन को भेज दी गई है। उस पर सरकार विचार कर अगले चरण की कार्रवाई का निर्णय लेगी। संभव है कि आगामी बजट में इसके लिए शासन राशि का प्रावधान कर दे। बड़ी नदियों के दोनों किनारों पर बढ़ती बसाहट और तेजी से कटते जंगल पर्यावरण के लिहाज से बड़ा संकट बनकर सामने आए आए हैं। इनकी वजह से जहां नदियों में मिट्टी के कटाव की समस्या बढ़ी है, वहीं इनमें बढ़ते प्रदूषण ने जल-जीवन को पर भी बुरा असर डाला है। केंद्र सरकार की ओर से गंगा नदी के दोनों किनारों पर प्राकृतिक खेती के लिए योजना बनाई गई है। इसी तर्ज पर कृषि विभाग के अफसर नर्मदा के किनारे-किनारे भी नवाचार की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। कृषि विभाग के संयुक्त संचालक की ओर से इसके लिए एक डीपीआर तैयार की गई है। जिसे राज्य शासन को भेजा जा चुका है।
इन जिलों में हो सकता है नवाचार
नर्मदा नदी की कुल लंबाई 1312 किलोमीटर है जिसमें से 1077 किलोमीटर वह मध्यप्रदेश में ही बहती है। प्रदेश के अनूपपुर, डिंडौरी, मंडला, जबलपुर, नरसिंहपुर, होशंगाबाद, हरदा, देवास, खंडवा, खरगोन, बड़वानी, धार, अलीराजपुर, झाबुआ आदि इस योजना में शामिल होंगे। सरकार और कृषि विभाग की तैयारी है कि वो नर्मदा के दोनों किनारों पर पांच-पांच किलोमीटर के दायरे में प्राकृतिक और गैर परंपरागत खेती को बढ़ावा देंगे। लोगों को बागवानी के लिए, फलदार वृक्षों का रोपण करने, और पशुपालन के लिए प्रेरित करेंगे। इसी तरह से नर्मदा तट पर मसाला उद्योग लगाने की सलाह भी किसानों को दी जाएगी। डीपीआर में प्रस्तावित है कि नर्मदा तट पर बांस की खेती कर बांस से जुड़े कुटीर उद्योगों को बढ़ावा दिया जा सकता है। बांस मिट्टी के बटाव को रोकने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।
ये होगा फायदा
नर्मदा तटों पर बड़े फलदार, मसालों के या फिर फूलों के पेड़ लगाए जाने से नर्मदा नदी के किनारे मिट्टी का कटाव थमेगा। परंपरागत खेती नहीं होने से मिट्टी को को उर्वर करने में मदद मिलेगी। तटों पर जहां-जहां गौवंश का पालन किया जाएगा, वहां-वहां गोबर और गौमूत्र से भूमि में औषधीय तत्वों की मात्रा बढ़ेगी। गोबर से जैविक खाद का भी निर्माण हो सकेगा।
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