इंदौर। बड़ी तेजी से लुप्त होते प्रकृति के सफाईकर्मी गिद्धों की गणना की वन विभाग में तैयारियां शुरू हो गई हैं। गणना करने वाले वन कर्मचारियों को गिद्धों की गणना के पहले ट्रेनिंग दी जाएगी। प्रशिक्षण देने लिए इंदौर जिला वन अधिकारी के अनुसार इस बार दिल्ली, लखनऊ, सतना से वाइल्ड लाइफ और गणना स्पेशलिस्ट, वल्चर यानी गिद्ध के बारे शोध अनुसंधान कर चुके विशेषज्ञ जानकर बुलाए जा रहे हैं। यह तीनों विशेषज्ञ 21 दिसम्बर से वन विभाग के कर्मचारियों को प्रशिक्षण देंगे।
इंदौर डीएफओ महेंद्रसिंह सोलंकी के अनुसाए गिद्धों की गणना हर 2 साल में की जाती है। इसके पहले साल 2021 में गिद्धों की गणना की गई थी। इस बार गिद्धों की सटीक गणना के लिए वनकर्मियों को प्रशिक्षण देने के लिए दिल्ली से केके झा, लखनऊ से प्रतिभा झा और सतना से गुलशेर खान आ रहे हैं। यह तीनों विशेषज्ञ गिद्धों की गणना करने वाले लगभग 150 वन कर्मचारियों के अलावा पर्यावरणप्रेमी एनजीओ और वाइल्ड लाइफ में रुचि रखने वाले कॉलेज स्टूडेंट्स को भी ट्रेनिंग और महत्वपूर्ण जानकारी देंगे।
इसके पहले 2021 में हुई थी गिद्धों की गणना
बड़ी तेजी से लुप्त होने की वजह से गिद्धों की गणना हर 2 साल में की जाती है। पिछली बार गणना 2021 में की गई थी। वन विभाग के अनुसार तब लगभग 117 गिद्ध पाए गए थे, जिनमें 71 छोटे और 46 बड़े गिद्ध थे। यह सारे गिद्ध इंजिप्शन प्रजाति के थे।
गिद्धों की गणना यहां की जाती है
वन विभाग के अनुसार गिद्धों की गणना देवगुराडिय़ा ट्रेंचिंग ग्राउंड, वांचू पॉइंट, यशवंत सागर, जानापाव, कनेरिया, महू, आशापुर, रतवी, कालाकुंड, चोरल, मानपुर, गिद्धखोह, सीतलामाता फॉल, पेडमी, चिकली, तिंछाफॉल, भड़किया, पातालपानी, मेहंदीकुंड पठान पीपल्या में की जाती है।
साफ-सफाई की कीमत गिद्ध को चुकाना पड़ी
ट्रेंचिंग ग्राउंड में कचरे के पहाड़ होने के कारण साल 2017 से पहले वल्चर यानी गिद्धों की संख्या देवगुराडिय़ा इलाके में ज्यादा थी। ट्रेंचिंग ग्राउंड पर कचरा खुले में पड़ा रहता था, इससे गिद्धों को अपनी खुराक मिल जाती थी। कचरा अपशिष्ट प्रबंधन के चलते शहर के बाहरी इलाकों में कचरे के ढेर गायब हो गए, इसलिए गिद्धों को उनकी खुराक मिलना खत्म हो गई। इस वजह से इस इलाके से गिद्ध गायब हो गए।
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