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महिलाओं के छोटे कपड़ों पर प्रेमानंद महाराज ने की टिप्पणी, कहा- बोलने पर केस…

  • March 05, 2025

    डेस्क: राधारानी के परम भक्त प्रेमानंद महाराज अक्सर अपने प्रवचन को लेकर सुर्खियों में बने रहते हैं. महाराजजी के पास दूर दूर से लोग अपनी समस्याओं को लेकर आते हैं और वे उन समस्याओं का हल बड़ी सूझबूझ के साथ देते हैं, जिसकी वजह से आए दिन उनके वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होते रहते हैं. सोशल मीडिया पर प्रेमानंद महाराज का एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें महाराजजी से महिलाओं के छोटे कपड़ों को लेकर सवाल किया गया था.

    वायरल वीडियो में भीमाशंकर संस्थान के पुजारी महाराजी से कहते हैं कि महिलाएं छोटे छोटे वस्त्र पहनकर मंदिर में आती हैं. उनको जब इस बारे में टोका जाता है तब वह कहती हैं कि यह हमारी मर्जी है, आपको इस बारे में कहने का अधिकार नहीं है. ऐसा कहकर महिला भक्त लड़ने लगती हैं. महाराजजी इस मामले पर आप हमारा मार्गदर्शन करें.

    इस पर महाराजजी कहते हैं कि मंदिर या फिर किसी भी जगह मन और इंद्रिय की गुलामी को स्वतंत्रता माना गया है. शास्त्रों और गुरुजनों की आज्ञा को परतंत्रता माना गया है इसलिए वचनों का प्रभाव नहीं पड़ सकता है. ऐसे में अगर भक्तों को संतों और शास्त्रों के वचनों में श्रद्धा ही नहीं है तो मन के अनुसार आचरण करना स्वाभाविक होता है.


    महाराजजी आगे कहते हैं कि अगर मेरी बहन हो तो क्या अपनी बहन के अंगों को देखकर काम का भाव आएगा. अगर मेरी बहन बीमार हो तो क्या उसकी सेवा करने से काम आएगा क्या. तो इसके लिए अपनी दृष्टि को पावन करना जरूरी है. समाज को पावन करने का सामर्थ्य भगवान में है या फिर भगवान जिन संतों की वाणी से करवा देते हैं नहीं तो ऐसा करना असंभव सा है. क्योंकि मनमानी आचरण करने का समय चल रहा है और शास्त्र आज्ञा का पालन करना कहीं रह नहीं गया है.

    अगर आपसे इस बारे में प्रश्न किया जाए तो आप उत्तर दे सकते हैं लेकिन अगर आप ऐसी ही बोलेंगे तो बहुत गलत हो जाएगा, रिपोर्ट हो जाएगी. आपके लिए उसके मन में विचार आएगा कि यह व्यक्ति को गलत दृष्टि वाला इंसान है. इसलिए अपने आप को बचा लो और दूसरों को बचाने या सुधारने जाओगे तो खुद भी घसीटे जाओगे.

    प्रेमानंद महाराजजी कहते हैं कि आजकल बच्चा बच्ची गर्लफ्रेड बॉयफ्रेंड बन रहे हैं और ब्रेकअप कर लेते हैं. उसके बाद अगले, फिर अगले और फिर अगले. शास्त्रीय भाषा में इस तरह के कार्यों को व्यभिचार कहते हैं. इस तरह संयम और पवित्रता को पूरी तरह खो चुके. ऐसे में लज्जाहीन या मर्यादाहीन बुद्धि अपने शरीर का या जीवन का सद्पुयोग कैसे कर पाएगी. अब उनके विषय में बोलने का मतलब है कि अपने को गाली खवाना. इसलिए अपनी दृष्टि को ठीक करना ही सबसे बढ़िया है और अपने भावों को शुद्ध रखें.

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