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    तीन बार प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए थे प्रणब दा, जानिए कब-कब आया था ये मौका

  • August 31, 2020

    भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का सोमवार को दिल्ली में निधन हो गया। वे भारतीय राजनीति में उन चुनिंदा लोगों में से एक थे जिनका नाम विरोधी भी सम्मान से लेते थे। हर राजनीतिक व्यक्ति की तरह प्रणब मुखर्जी की भी कई महत्वाकांक्षाएं थीं। इन्हें व्यक्त करने में वे कभी झिझके नहीं। उन्होंने प्रधानमंत्री बनने की अपनी महत्वाकांक्षा को भी हमेशा खुलकर सामने रखा।

    प्रणब मुखर्जी के राजनीतिक सफर में तीन बार ऐसे मौके आए जब लगा कि वो प्रधानमंत्री बनेंगे। मगर तीनों बार ऐसा नहीं हो पाया। आज हम आपको बताएंगे उन तीनों मौकों के बारे में जब प्रणब दा प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए।
    साल 1969 : इंदिरा कैबिनेट में नंबर दो का पद
    साल 1969 में प्रणब मुखर्जी राज्यसभा से पहली बार संसद पहुंचे। इंदिरा गांधी प्रणब दा की राजनीतिक मुद्दों की समझ की कायल थीं। इसी वजह से उन्हें प्रणब दा की कैबिनेट में नंबर दो का दर्जा दिया गया। ये बात इस वजह से ज्यादा महत्पूर्ण हो जाती है क्योंकि उसी कैबिनेट में पीवी नरसिम्हा राव, ज्ञानी जैल सिंह, प्रकाश चंद्र सेठी और आर वेंकटरामन जैसे बड़े नाम भी मौजूद थे।

    इंदिरा गांधी की हत्या के बाद प्रणब मुखर्जी के नाम पर चर्चा अगले प्रधानमंत्री के रूप में भी हुई। मगर पार्टी ने राजीव गांधी को इस पद के लिए चुना। दिसंबर 1984 में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 414 सीटों के साथ सत्ता में आई। मगर इस बार प्रणब दा को कैबिनेट में जगह नहीं मिली।

    इस बात से नाराज होकर प्रणब दा ने साल 1986 में बंगाल में राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस का गठन किया। तीन साल बाद 1989 में राजीव गांधी और उनके बीच समझौता हुआ और राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस का विलय कांग्रेस में हो गया।

    साल 1991 : फिर हाथ से निकला मौका
    1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद चुनाव हुए। कांग्रेस फिर सत्ता में आई। इस बार प्रणव मुखर्जी को फिर प्रधानमंत्री पद का दावेदार माना जा रहा था। उनके अलावा कोई और चेहरा पीएम पद की दावेदारी में नहीं था। मगर इस बार भी मौका उनके हाथ से निकल गया। इस बार नरसिम्हा राव को प्रधानमंत्री बनाया गया। प्रणव दा को पहले योजना आयोग का उपाध्यक्ष और फिर विदेश मंत्री बनाया गया।

    साल 2004 :  प्रणब मुखर्जी की जगह मनमोहन बने प्रधानमंत्री
    साल 2004 में कांग्रेस में 145 सीटें और भाजपा को 138 सीटें मिलीं। अब कांग्रेस सरकार बनाने के लिए क्षेत्रीय दलों पर निर्भर थी। सोनिया गांधी का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए सामने आया। भाजपा ने इसका विरोध किया। विरोध को देखते हुए प्रणव दा का नाम फिर चर्चा में आया। लेकिन सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद के लिए चुना।

    पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एक बयान में कहा था कि जब मैं प्रधानमंत्री बना, तब प्रणब मुखर्जी इस पद के लिए ज्यादा काबिल थे, लेकिन मैं कर ही क्या सकता था? कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मुझे चुना था।

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