नई दिल्ली। हर महीने की त्रयोदशी तिथि (trayodashi date) को प्रदोष व्रत रखा जाता है । धार्मिक मान्यता के अनसुार यह व्रत भगवान शिव (Shiva) को प्रसन्न करने के लिए बेहद खास माना जाता है. शिव पुराण के अनुसार मानसिक, शारीरिक रूप से दु:खी और दरिद्रता (misery and poverty) से पीड़ित व्यक्ति के लिए प्रदोष व्रत का व्रत पार लगाने वाली नौका के समान है. मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष का प्रदोष व्रत 21 नवंबर 2022 को रखा जाएगा. इस बार ये व्रत बहुत खास है क्योंकि इस दिन सोमवार पड़ रहा है, जो भगवान शिव (Lord Shiva) का दिन माना जाता है. ये व्रत सोम प्रदोष कहलाएगा.
शास्त्रों के अनुसार प्रदोष के दिन समस्त जैसे देव,गंधर्व, ब्रह्म बेताल, दिव्यात्माएं अपने सूक्ष्म स्वरूप में शिवलिंग में समा जाती हैं. कहते हैं त्रयोदशी तिथि पर प्रदोषकाल में शिवलिंग के दर्शन मात्र से जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट होते हैं. मान्यता है कि प्रदोष व्रत में पूजा के दौरान जो व्यक्ति स्कंद पुराण में वर्णित प्रदोष स्तोत्र का पाठ करता है शिव उसके तमाम संकट हर लेते हैं और हर कार्य में उसे सफलता मिलती है. आइए जानते हैं प्रदोष स्तोत्र पाठ.
शिव प्रदोष स्तोत्र पाठ की विधि (Shiv pradosh stotram Path vidhi)
इस पाठ को प्रदोष व्रत वाले दिन सुबह या शाम कभी भी किया जा सकता है, लेकिन प्रदोष काल (Pradosh Kaal) में किया जाए तो भोलेनाथ जल्द प्रसन्न होते हैं.
पाठ करने से पहले शिवलिंग की पुष्प, चंदन, गंगाजल से पूजा करें. फिर आठ या बारह मुखी दीपक प्रज्वलित कर इस पाठ की शुरुआत करें.
पाठ पढ़ते समय जल्दबाजी न करें. शब्दों का गलत उच्चारण करने से फल प्राप्त नहीं होता.
प्रदोषस्तोत्राष्टक पाठ (Pradosh Ashtakam)
सत्यं ब्रवीमि परलोकहितं ब्रव्रीम सारं ब्रवीम्युपनिषद्धृदयं ब्रमीमि।
संसारमुल्बणमसारमवाप्य जन्तोः सारोऽयमीश्वरपदाम्बुरुहस्य सेवा॥
ये नार्चयन्ति गिरिशं समये प्रदोषे, ये नाचितं शिवमपि प्रणमन्ति चान्ये।
एतत्कथां श्रुतिपुटैर्न पिबन्ति मूढास्ते, जन्मजन्मसु भवन्ति नरा दरिद्राः॥
ये वै प्रदोषसमये परमेश्वरस्य, कुर्वन्त्यनन्यमनसांऽघ्रिसरोजपूजाम्।
नित्यं प्रवृद्धधनधान्यकलत्रपुत्र सौभाग्यसम्पदधिकास्त इहैव लोके॥
कैलासशैवभुवने त्रिजगज्जनिनित्रीं गौरीं निवेश्य कनकाचितरत्नपीठे।
नृत्यं विधातुमभिवांछति शूलपाणौ देवाः प्रदोषसमये नु भजन्ति सर्वे॥
वाग्देवी धृतवल्लकी शतमखो वेणुं दधत्पद्मजस्तालोन्निद्रकरो रमा भगवती गेयप्रयोगान्विता।
विष्णुः सान्द्रमृदंङवादनपयुर्देवाः समन्तात्स्थिताः, सेवन्ते तमनु प्रदोषसमये देवं मृडानीपातम्॥
गन्धर्वयक्षपतगोरग-सिद्ध-साध्व-विद्याधराम रवराप्सरसां गणश्च ।
येऽन्ये त्रिलोकनिकलयाः सहभूतवर्गाः प्राप्ते प्रदोष समये हरपार्श्र्वसंस्थाः ॥
अतः प्रदोषे शिव एक एव पूज्योऽथ नान्ये हरिपद्मजाद्याः।
तस्मिन्महेशे विधिनेज्यमाने सर्वे प्रसीदन्ति सुराधिनाथाः॥
एष ते तनयः पूर्वजन्मनि ब्राह्मणोत्तमः।
प्रतिग्रहैर्वयो निन्ये न दानाद्यैः सुकर्मभिः॥
अतो दारिद्र्यमापन्नः पुत्रस्ते द्विजभामिनि।
तद्दोषपरिहारार्थं शरणां यातु शंकरम्॥
॥ इति श्रीस्कन्दपुराणान्तर्गत प्रदोषस्तोत्राष्टक संपूर्णम् ॥
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