नई दिल्ली: जब देश में मुगलों का शासन था, तब न्यायालय की भाषा (Language of the Court) उर्दू थी. अंग्रेज आए तो कोर्ट-कचहरी में उर्दू, हिंदी के साथ अंग्रेजी (English with Urdu, Hindi) का भी इस्तेमाल होने लगा. आज तक अदालतों में इन्हीं तीनों भाषाओं का इस्तेमाल होते अक्सर देखा गया है. लेकिन आज हम एक ऐसे वकील के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने जब भी अदालत की चौखट पर कदम रखा, संस्कृत भाषा का ही इस्तेमाल किया. इनका नाम है आचार्य श्यामजी उपाध्याय (Acharya Shyamji Upadhyay).
श्यामजी उपाध्याय पेशे से वकील हैं. ये उत्तर प्रदेश के वाराणसी में बीते 45 साल से संस्कृत भाषा में वकालत कर रहे हैं. श्यामजी से जब पूछा गया कि हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू को छोड़ उन्होंने वकालत के लिए संस्कृत क्यों चुना तो उन्होंने 70 साल पुराना अपने जीवन से जुड़ा एक किस्सा सुनाया. वो साल 1954 था, जब श्याम जी उपाध्याय सात साल की उम्र में अपने पिता पंडित संकठा प्रसाद उपाध्याय के साथ मिर्ज़ापुर कचहरी गए हुए थे. पिताजी को किसी से कहते सुना कि यहां अंग्रेजी, हिन्दी और उर्दू में तो बहस हो रही है, लेकिन संस्कृत में नही, बहुत अफ़सोस है कि यहां संस्कृत में कोई बहस करने वाला नहीं है.
सात साल के श्यामजी उपाध्याय ने पिता की इच्छा के लिए प्रण लिया कि अब वकील ही बनना है और संस्कृत में ही मुकदमा लड़ना है.1978 मार्च से बनारस कचहरी में मुकदमा लड़ने की शुरुआत हुई. फौजदारी मामले के वकील श्री श्यामजी उपाध्याय 1978 से अभी तक कई केस लड़ चुके हैं, लेकिन उनका दावा है कि अभी तक कोई केस नही हारे हैं. वह वाराणसी के सेशन कोर्ट में वकालत करते हैं.
श्यामजी कहते हैं कि सुनवाई के दौरान संस्कृत के आसान शब्दों का ही इस्तेमाल करते हैं. पास में ही ट्रांसलेटर रहता है, जो कि वहीं अनुवाद करके समझा देता है. श्यामजी कहते हैं कई बार तो वह खुद भी अदालत को हिंदी में मतलब समझा देते हैं. श्यामजी शपथ पत्र सहित अन्य दस्तावेज भी संस्कृत में ही अदालत में पेश करते हैं.
श्यामजी उपाध्याय अपने चैम्बर में बाबा विश्वनाथ को स्थापित कर रखे हैं. बाबा विश्वनाथ को पुष्प अर्पित कर धूप दिखाकर ही काम की शुरुआत करते हैं. पिछले 70 सालों से गंगा स्नान और बाबा विश्वनाथ का दर्शन करना उनके दिनचर्या का हिस्सा रहा है. 2003 में भारत सरकार ने श्री श्यामजी उपाध्याय को संस्कृत मित्र पुरस्कार से सम्मानित किया. श्यामजी उपाध्याय हिन्दी और संस्कृत में एक दर्जन से ज्यादा किताबें लिख चुके हैं. इनके कानून, संस्कृति, धर्म और दर्शन पर दर्जनों लेख भी छप चुके हैं.
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