भोपाल। मध्य प्रदेश में विद्युत ताप गृहों में तीन से चार दिन का कोयला बचा है जिससे बिजली संकट की स्थिति बन सकती है। रोजाना 58 मीट्रिक टन कोयले की जरूरत है लेकिन अभी 50 हजार मीट्रिक टन की उपलब्धता हो रही है। इससे मध्य प्रदेश कभी भी अंधेरे में डूब सकता है जिसकी आहट का अहसास होने लगा है।
मध्यप्रदेश में एक बार फिर कोई संकट की आहट हुई है। देशव्यापी कोयला संकट के बीच मध्यप्रदेश भी अब अछूता नहीं रहा है। यहां अब सिर्फ तीन से चार दिनों का कोयला बचा हुआ। यह आंकड़े सरकारी डिस्पेच सेंटर से सामने आए हैं। डिस्पेच सेंटर इन आंकड़ों को जारी किया है।
आंकड़ों के मुताबिक मध्यप्रदेश में फिलहाल 2 लाख 72 हज़ार टन कोयला बचा हुआ है जिसके हिसाब से मध्यप्रदेश सिर्फ 3 से 4 दिनों तक के लिए ही बिजली उत्पादन हो सकता है। गौरतलब है कि देशभर के लगभग सभी पावर हाउस में कोयले की 33 फीसदी उपलब्धता है जबकि मध्य प्रदेश के चार विद्युत ताप ग्रहों में सिर्फ 13 फीसदी कोयला ही उपलब्ध है। विद्युत ताप गृहों में 26 दिन के कोयले की उपलब्धता सही मानी जाती है लेकिन मध्य प्रदेश में चार विद्युत ताप गृह में मात्र तीन-चार दिन का कोयला ही होने से बिजली उत्पादन कंपनी प्रबंधन की चिंता बढ़ी हुई है।
विशेषज्ञों की राय
बिजली उत्पादन कंपनी के रिटायर्ड इंजीनियर एवं विशेषज्ञ राजेन्द्र अग्रवाल बताते हैं कि इकाइयों को 26 दिनों का स्टॉक रखना चाहिए लेकिन मध्यप्रदेश में फिलहाल यह स्थिति नहीं है। विपरीत परिस्थितियों से बचने के लिए राज्य सरकार को चाहिए कि वह भी कर्नाटक की तर्ज पर केंद्र से अतिरिक्त कोयले की मांग करे। रेलवे से कोयला आपूर्ति में सहयोग करने के लिए विशेष प्रयास करना होंगे।
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