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    कोरोना काल में दोगुना से ज्यादा बढ़ी गरीबी

  • March 27, 2021

    नई दिल्ली। एक साल पहले कोरोना महामारी की वजह से लगे लॉकडाउन के कारण देश में गरीबों की तादाद में दोगुना (Lockdown doubles the number of poor in the country) से ज्यादा का इजाफा हो गया है। कोरोना संक्रमण के पहले देश में गरीबों की संख्या करीब छह करोड़ थी, जो अब बढ़कर 13.4 करोड़ हो गई है। ये जानकारी अमेरिकी शोध संस्था पिऊ रिसर्च सेंटर की एक रिपोर्ट मे दी गई है।

    कोरोना संक्रमण काल के दौरान जीवन स्तर में आए बदलाव पर पेश की गई इस रिपोर्ट में भारत में मध्यमवर्गीय लोगों की संख्या घटने और गरीबों की संख्या बढ़ने का दावा किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में लॉकडाउन के कारण मध्यमवर्गीय लोगों की संख्या में एक तिहाई की कमी आयी है, जबकि गरीबों की संख्या दोगुनी से ज्यादा बढ़ गई है। इस रिपोर्ट में मध्यमवर्ग के दायरे में उन लोगों को रखा गया है, जिनकी आमदनी रोजाना 700 से 1500 रुपये के बीच है। इसमें अनुमान लगाया गया है कि लॉकडाउन के दौरान व्यवसायों के बंद होने, नौकरियों से हटाये जाने और आमदनी में आई गिरावट के कारण भारत में 3.2 करोड़ लोग मध्यमवर्गीय जीवन-स्तर के दायरे में नहीं रहे।

    रिपोर्ट के मुताबिक भारत में लॉकडाउन में गरीबों की संख्या 7.5 करोड़ बढ़ गई। जबकि लॉकडाउन से पहले देश में गरीबों की संख्या लगभग 6 करोड़ थी। इस तरह लॉकडाउन के बाद मौजूदा समय में गरीबों की तादाद बढ़कर 13.4 करोड़ हो गई है। इस रिपोर्ट में गरीब उन लोगों को माना गया है, जिनकी आमदनी प्रतिदिन 2 डॉलर से कम की है।

    रिसर्च सेंटर की रिपोर्ट के अनुसार महामारी के पहले भारत में 9.90 करोड़ लोग उपभोग के मामले में इस स्तर पर थे कि उन्हें वैश्विक मध्यवर्ग के जीवन-स्तर की बराबरी में रखा जा सके, लेकिन लॉकडाउन के बाद के वक्त में ऐसे लोगों की तादाद घटकर 6.6 करोड़ रह गई है। यानी इसमें कुल एक तिहाई की कमी आई है। इसके विपरीत गरीबों की संख्या बढ़ी है। लॉकडाउन से तुरंत पहले के समय में भारत में 5.90 करोड़ लोग गरीब की श्रेणी में थे, लेकिन लॉकडाउन के बाद के वक्त में ऐसे लोगों की तादाद बढ़कर 13.4 करोड़ जा पहुंची है। यह दोगुने से ज्यादा का इजाफा है।

    रिपोर्ट में दावा किया गया है कि साल 2020 में भारत में गरीबी दर 9.7 फीसदी रही, जो 2020 के जनवरी में लगाये गये 4.3 फीसदी के अनुमान से दोगुनी से भी ज्यादा है। रिपोर्ट में 2020 में मनरेगा के तहत रोजगार मांगने वाले लोगों की संख्या में हुई बेतहाशा बढ़ोतरी को इसके एक लक्षण के रूप में बताया गया है। (एजेंसी, हि.स.)

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